आज 'विश्व पुस्तक दिवस' के अवसर पर शहीद भगत सिंह लाइब्रेरी, बलौंगी में लेखक और आलोचक गोरा होशिआरपुरी की पुस्तक 'तलाश' रिलीज़ की गयी। गोरा होशिआरपुरी एक फैक्ट्री में काम करते हैं और सिर्फ मैट्रिक पास हैं। वो खुली कविता की विधा में लिखतें हैं और उन्होने यह काव्य-संग्रह 10 साल की मेहनत के बाद लिखा है। पुस्तक में उन्होंने नौजवानो से संवाद रचाया है और अन्धविश्वाश पर तन्ज कस्ते हुए संस्कृति, रोमांस, भावनाएं और मानवी रिश्तों की गहराईयों को शब्दों में बयां किया है। पुस्तक रिलीज़ समारोह में उन्होंने अपने ज़िंदगी के बारे में बात करते हुए पुस्तक में से बहुत सी कवितायेँ भी सुनाई।
अन्धविश्वाश को चीरती कविता
गोरा होशिआरपुरी शुरू से ही अन्धविश्वाश के खिलाफ रहे हैं। उन्हें लगता है कि जब तक लोग अंध विश्वाश में यकीन करेंगे तब तक देश और समाज का विकास नहीं हो सकता। किताब में बहुत सी कवितायेँ अंधश्र्द्धा पे तन्ज कस्ती हैं। एक कविता में वो लिखतें हैं 'नामदान दा चोगा पाके, कन्न विच देंदे कह। हुण तूं साडे जोगा रह, हुण तूं साडे जोगा रह।' 'कुदरत' नाम की कविता में वो लिखते हैं 'अक्खां बंद करके कुदरत दा नाम जपण दी लोड नहीं, कुदरत नू ता अक्खां खोल क़े समझण दी लोड आ।' गोरा होशिआरपुरी अपनी बात बिलकुल सादे अंदाज़ में कहते हैं ताकि आम आदमी को समझ आ सके। उनकी एक कविता कहती है 'अनपढ़ दा वहमी होणा कोई गल नहीं, पढ़े-लिखे दा वहमी होणा कोई हल्ल नहीं'। गोरा मानते हैं कि किसी भी धर्म के होने से पहले सभी ‘मनुष्य’ हैं। धार्मिक कट्टरता पे वो एक जगह लिखतें हैं 'मनुख दा असली दुश्मण तां मनुख ही है, जेहड़ा ओसनु जातां-धर्मां दे नाम ते ही कतल कर दिंदै...।' गोरा को देश में धर्म क़े नाम पे दंगे बहुत परेशान करते हैं। उनकी एक कविता कहती है 'जिथे भीड़ हुंदी ऐ, ओथे कोई न कोई भरम हुंदै।'
रोमांस भी और सिस्टम को बदलने की चुनौती भी
गोरे की कविता में रोमांस भी है और सिस्टम को बदलने की चुनौती भी। एक कविता में वो कहते हैं 'मैं तेरी मोहब्बत दा विरोधी नहीं, मेरी सोच नू ऐना जज़्बाती ना बणा, कियूंके अक्सर मेरी चुप्प किसे युग पलटाऊ कविता दी भाल 'च हुंदी ऐ।'
वातावरण को बचाने की कशिश
गोरा दूषित हो रहे वातावरण की भी चिंता करते हैं।'ज़हर' नाम की कविता में उन्होंने लिखा 'हर ख़ुशी ते चला पटाके, घोलण ज़हर हवावां विच, बिरध ते पंछी दहल जांदे ने, जदों हुँदा शोर फ़िज़ावां विच'। पुस्तक में नोजवानो से संवाद नाम की कविता उन्होंने 67 पन्नों में लिखी है जिसमें एक लड़का और एक लड़की जिंदगी क़े बारे में बात करते हैं। गोरा होशिआरपुरी तर्कशील सोसाइटी की यूनिट मोहाली क़े संस्कृतिक विभाग क़े मुखिया भी है।