सभ्यता के विकास के साथ उर्जा की खपत बढती जा रही है । जिस तेजी के साथ उर्जा का इस्तेमाल बढता जा रहा है, उसका परिणाम यह होगा कि जल्दी की लगभग एक शताब्दी मे उर्जा के सभी परम्परागत स्त्रोत समाप्त हो जायेगे । ऐसा ज्ञात है कि हमारे देश का पेट्रोलियम के ज्ञात भंडार सन 2020 तक समाप्त हो जाएँगे । कोयले के भडारों के भी 250 वर्षों तक चलने की आशा है किन्तु ये भंडार जनसंख्या वृद्धि और तेल के भंडारो के ह्रास के कारण पहले भी समाप्त हो सकते हैं । यह एहम बातें डॉ पूनम स्याल , एसोसिएट प्रोफेसर , इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट , एन आई टी टी टी आर , सेक्टर 26 चंडीगढ़ ने युनिवर्सल गु्रप आफ इंस्टीट्यूशंस द्वारा भविष्य के मैनेजरों व इंजीनियरों को प्राकृत्क ऊर्जा का सही उपयोग करने व ऊर्जा बचाने की विधियों से अवगत करवाने के लिए एक सैमिनार दौरानकही।डा. पूनम अनुसार इनके समाप्त होते ही उर्जा का भयकर सकट पैदा हो जायेगा । उर्जा के परम्परागत स्त्रोतों की मात्रा में हम वृद्धि नहीं कर सकते हैं । परमाणु उर्जा बनाने की टेकनालजी बहुत महगी है । अत: इस परिस्थिति में सौर उर्जा सकट का सबसे अधिक महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में है जो सस्ते, निरापद, सर्वसुलभ, बार-बार प्रयोग मे लाये जा सकने वाले हों और जिनके भण्डार अक्षय हो । नदियों के जल से भी उर्जा प्राप्त होती है । उर्जा के सभी परम्परागत स्त्रोत प्रकृति की देन हैं । किन्तु इनके भण्डार सीमित है ।
संजीव कौल, प्रमुख सिविल इंजीनियरिंग विभाग, सी सी ई टी, सेक्टर 26, चंडीगढ़ ने कुदरती ऊर्जा के स्रोतों पैदा करन के लिए इस्तेमाल करी जाने वाली तकनीक सम्बन्धित जानकारी उपस्थित मेहमानों के साथ सांझी की। डा. संजीव अनुसार आज भी देश के बहुत सी इलाकों में कुदरती ऊर्जा का प्रयोग के लिए जागरूकता नहीं है। ऐसे समय भी जब आसान तकनीक के द्वारा भी छोटे स्तर पर ऊर्जा पैदा की जा सकती है उस समय में राष्ट्रीय स्तर पर जागरूक अभ्यान चलाने अनिवार्य हो जाते हैं। संजीव कौल ने आगे कहा कि बेशक भारत सरकार की तरफ से इस लिए जागरूकता दी जा रही है पर परन्तु फिर भी सफलता अभी काफ़ी दूर नजऱ आ रही है।इस मौके पर युनिवर्सल गु्रप के चेयरमैन डा. गुरप्रीत सिंह ने उपस्थित मेहमानों और छात्रों के साथ विचार सांझे करते हुए कहा कि आज हम ऐसे दौर में गुजऱ रहे हैं जब ऊर्जा की तकनीक को बदलना समय की माँग बन चुकी है। इस लिए जहाँ भारत सरकार कुदरती ऊर्जा अपनाने के लिए लोगों को जागरूक कर रही है वहाँ ही हमारा भी फज़र् बनता है कि हम कुदरती स्रोतों का प्रयोग के लिए शिक्षा संस्थानों के माध्यम से जागरूकता पैदा करे । इस मौके पर कई ओर शास्त्रियों और बुद्धिजीवियों ने सबंधित विषय पर अपने विचार सांझे किये।