Kanpur Violence: सिर्फ एक दिन यहां लोगों के हाथों में पत्थर थे लेकिन उन पत्थरों की सीधी चोट उनके कामकाज पर पड़ी है। 3 जून को जब बेकनगंज ने जिस बवाल को सुलगते देखा उसके बाद यहां के हिंदू और मुसलमान कारोबारी अचानक अब एक बुरा नाम बन गया है। अब लोग यहाँ से दूरी बनना ही उचित समझ रहे हैं और यहां से कुछ भी खरिदारी करने से खुद को दूर कर रहे हैं।कानपूर में 3 जून को हुई हिंसा को चाहे अब लोग भुला रहें हों लेकिन इस हिंसा का नुकसान शायद ही इनको इस घटना को भुलाने देगा। आज यहां के लोगों का कारोबार एकदम ठप हो चूका है।
वहीं हिंसा के दौरान पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन अब उनके परिजन रोज पुलिस से उनके ख़िलाफ़ गिरफ्तार करने के आरोपों का सबूत मांग रहे हैं। इन गिरफ़्तार लोगों में से कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिनके बच्चों की कुछ ही महीनों में शादियाँ होनी हैं।उधर, बवाल की जद में शामिल कुछ ऐसे परिवार हैं जिनके घर के सदस्यों को बवाल के आरोप में जेल भेज दिया गया है। अब ऐसे परिवार अपने बेटे-भाई को निर्दोष बता रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं।
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हिन्दू और मुसलिमों में ब्यान किया अपना दर्द
रिपोर्ट के मुताबिक जब उस जगह का दौरा किया गया तो देखने में आया कि वहां कारोबार बिलकुछ मंदा पड़ गया है। हिंसा के बाद दुकाने तो खुली पर धंधा मंदा पड़ गया है इनमें हिन्दू- मुसलिम दोनों समुदाय कि दुकाने हैं जिसमे सबसे ज़्यादा दुकाने कूलर की हैं।
दुकानदारों से बात करने पर एक ही बात सामने निकलकर आई कि इस सीजन में उनका धंधा चौपट हो गया। दुकानदारों ने कहा कि बवाल से हमें क्या लेना? लेकिन उसका सिला तो हमें ही भुगतना पड़ रहा है।
टीम ने जब अन्य दुकानदार ब्रज किशोर मिश्र से बात की तो उन्होंने बताया कि बवाल के दो-तीन दिन बाद तक दुकानें बंद रहीं. अब दुकानें खुली हैं तो ग्राहक नहीं आ रहे हैं। पत्थर किसी ने चलाया, चोट किसी को लगी... लेकिन धंधा हमारा चौपट हो गया। हमारा बवाल से क्या लेना-देना?
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ऐसे में पुलिस का खौफ
पुलिस ने इस मामले में अबतक 13 एफआईआर दर्ज की हैं।अबतक 57 लोगों को जेल भी भेजा जा चुका है। इसमें मुख्य आरोपी जफर हयात और उसके साथी को पुलिस ने कानपुर जेल से दूसरे जिलों की जेलों में शिफ्ट कर दिया है।
पुलिस ने बताया की अभी भी इस हिंसा को बढ़ावा देने वाले 34 पत्थरबाज फरार हैं। और आगे बताया कि बवाल के सूत्रधारों की संपत्ति पर कोई बुलडोजर भी अभी तक नहीं चला है। उल्टा केडीए ने अवैध निर्माण में जिन 10 बिल्डिंगों को सीज किया था उनमें से केवल एक को गिराया है।
ऐसे में वहीं केकुछ छोटे-बड़े स्थानीय लोग अभी भी पुलिस के डर में जीने को मजबूर हैं। पुलिस और बवालियों के बीच व्यापारी और दुकानदार तो बर्बाद हुए ही, कुछ लोग खुद को निर्दोष साबित करने के लिए भी न्याय की मांग तक रखने नहीं जा पा रहे हैं। उन्हें डर है की न जाने किसी भी पूछताछ के तहत कब उन्हें पुलिस गिरफ्तार कर लें।