राफेल सौदे की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली अपनी याचिकाओं को खारिज होने पर आश्चर्य जताते हुए पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण ने शुक्रवार को कहा कि फैसले में न तो दस्तावेज के तथ्यों और न हीं फ्रांसीसी लड़ाकू विमान की खरीद के मामले में जांच के उनके मुख्य आग्रह को माना गया। सिन्हा, शौरी और भूषण ने एक बयान में कहा, हमारी याचिकाओं में वर्णित दस्तावेज के तथ्यों और यहां तक कि मामले में जांच की हमारी मुख्य मांग पर विचार नहीं किया गया। वास्तव में, अदालत के निर्णय में वर्णित कुछ तथ्य न केवल ऑन रिकार्ड नहीं हैं बल्कि पूरी तरह से गलत हैं। उन्होंने कहा कि राफेल सौदे पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक(कैग) की कोई भी रपट न तो शामिल की गई और न ही उसका निरीक्षण किया गया। बयान के अनुसार, फैसला हमारे लिए स्तब्ध करने वाला था, क्योंकि यह कैग रपट पर पूरी तरह गलत सूचना पर आधारित था और यह निराशाजनक है कि अदालत ने ऊंचे स्तर पर संलिप्त रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार के मामले में न्यायिक समीक्षा में रूढ़िवादी रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि याचिका उन तथ्यों पर आधारित थी, जो उन्होंने सीबीआई को अपनी शिकायत में दिया था और दावा किया कि फैसले में बताए गए कुछ तथ्य न केवल रिकार्ड में नहीं है, बल्कि पूरी तरह से गलत हैं। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि कीमत की जानकारी कैग के साथ साझा की गई है और कैग के रिपोर्ट का लोक लेखा समिति(पीएसी) ने निरीक्षण किया है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कैग की रपट के किसी भी भाग को संसद के समक्ष या सार्वजनिक क्षेत्र में रखा ही नहीं गया है। उन्होंने कहा, अदालत ने उन सूचनाओं पर भरोसा किया, जोकि तीन स्तरों पर तथ्यात्मक रूप से गलत है। यह दिखाता है कि बंद लिफाफे में किसी बयान पर भरोसा करना और इस आधार पर फैसला सुनाना अदालत के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। याचिकाकर्ताओं ने कहा, अदालत ने यह भी बताया कि भारतीय वायुसेना के प्रमुख ने कीमत की जानकारी का खुलास करने को लेकर अपनी आपत्ति जताई, क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को काफी हानि पहुंचती। यह कथित तथ्य भी रिकार्ड में नहीं है और यह समझ में नहीं आया कि अदालत को यह कैसे और कहां से मिल गया। याचिकाकर्ताओं ने अदालत द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 2015 में 36 राफेल विमान खरीदने से संबंधित सौदे की प्रक्रिया को पूरी तरह नजरअंदाज करने पर भी आश्चर्य जताया। सिन्हा, शौरी, भूषण ने कहा, अदालत ने चूंकि जांच नहीं की और न ही कहा कि उसने विस्तार में जांच की है और संविधान की धारा 32 के अंतर्गत केवल अपने न्यायाधिकार की धारणा के आधार पर याचिका को खारिज कर दिया, इस वजह से फैसले को सौदे में सरकार को क्लीन चिट दिए जाने के रूप में नहीं माना जा सकता।