यहाँ के लेक क्लब में आज शुरू हुए मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में फ़ौज से सम्बन्धित साहित्य से लोगों को जोडऩे की कड़ी के अंतर्गत द ब्यूगल कॉल्स-ए लाईफ़ इन द इंडियन आर्मी किताब पर विचार -विमर्श किया गया। विचार-विमर्श सैशन का मुख्य बिंदू रही यह किताब फ़ौज में भर्ती होने वाले अफ़सर के जज़्बात को उजागर करने समेत अन्य विभिन्न पहलूओं को रूपमान करती है।विचार-विमर्श सैशन के दौरान पैनल में मुख्य लेखक लेफ्टिनेंट कर्नल (सेवा मुक्त) नरेश रस्तोगी, सह लेखक किरण दोषी और लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा मुक्त) हरभजन सिंह शामिल हुए जबकि विचार-विमर्श की कार्यवाही लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा मुक्त) विजय ओबराए ने निभाई।फ़ौज में कैडिट और एक अधिकारी के तौर पर अपने दिनों को याद करते हुये लेफ्टिनेट कर्नल रस्तोगी ने कहा कि किताब का पहला हिस्सा फ़ौज में नौकरी करते हुये उनके जज़्बात के साथ जुड़ा हुआ है जबकि दूसरा भाग 1950 और 1960 के दशक के भारत के साथ सम्बन्ध रखता है, जो आज की अपेक्षा बिल्कुल अलग था।अपने विचार प्रकट करते हुये लेफ्टिनेंट जनरल (सेवा मुक्त) हरभजन सिंह ने कहा कि किताब का सबसे अहम हिस्सा सन 1965 की आसल -उताड़ जंग से सम्बन्धित है जिसका लेखक 1971 की जंग समेत हिस्सा रहा है। उन्होंने याद किया कि कैसे आसल -उताड़ की जंग के दौरान पाकिस्तानी हथियारबंद कार्यवाहियों को बेकार कर दिया गया था।इसके अलावा अन्य पहलू पर प्रकाश डालते हुये लेफ्टिनेंट जनरल हरभजन सिंह ने कहा कि फ़ौज में स्थापित रेजिमेंटल प्रणाली जीवन जीने का ढंग और इस संस्था की रीढ़ की हड्डी है। हालाँकि इस में मामूली सी कमियां हैं, जिनको दूर करने की ज़रूरत है।