राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को यहां महालेखाकारों के 27वें सम्मेलन का उद्घाटन किया जिसका विषय है 'सुशासन को बढ़ावा देना और सार्वजनिक लेखा-परीक्षा के जरिए जवाबदेही।' इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि लेखा-परीक्षा के निष्कर्ष सुशासन के मापदंड हैं, इनकी उपयोगिता तभी पता चलती है जब सभी साझेदार खासतौर से कार्यपालिका, न्यायपालिका और नागरिकों को इनके निष्कर्षो की विश्वसनीयता पर यकीन हो और इसका इस्तेमाल शासन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए किया जाए। उन्होंने कहा कि इससे सार्वजनिक लेखा-परीक्षक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह पेशेवराना तरीके से लगन के साथ और स्वतंत्र होकर लेख-परीक्षा करे और उसकी निष्पक्ष होकर जानकारी दे। राष्ट्रपति ने कहा कि सार्वजनिक सेवा देने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मंच लेखा-परीक्षा की प्रणाली को प्रभावित करते हैं। चूंकि 'डिजीटल इंडिया' सरकार के काम-काज की रीढ़ बन चुका है, यह लेखा-परीक्षा के परंपरागत तरीके में बदलाव की मांग करता है।