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राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच न्याय के संघर्ष में अकेले डटे हैं कश्मीरी पंडित

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 27 Mar 2022

निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' को लेकर हो रहे शोर-शराबे के बीच कश्मीरी पंडित न्याय के लिए अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं। हां, यह सही है कि फिल्म ने इस समुदाय के प्रति लोगों के दिल में बहुत सहानुभूति पैदा की है, लेकिन उनकी दुर्दशा पर की जा रही राजनीति आतंक की गोलियों के शिकार हुये हर कश्मीरी पंडित के न्याय की लड़ाई को कमतर कर रही है। चाहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हो, कांग्रेस हो, आम आदमी पार्टी (आप) हो, टीआरएस हो या तृणमूल कांग्रेस हो, इन सबके लिये यह फिल्म एक-दूसरे कीचड़ उछालने का जरिया बन गई है। सभी दल राजनीतिक लाभ के लिए एक विशेष छवि बनाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके और 16 मार्च को भाजपा के संसदीय दल को दिए संबोधन में खुले रूप से फिल्म की सराहना की। प्रधानमंत्री ने तो यहां तक कहा कि कुछ लोग फिल्म को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि इसमें सच्चाई दिखाई गई है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, बिहार और अब गोवा सहित कई भाजपा शासित राज्यों ने फिल्म को कर मुक्त कर दिया है। जब भाजपा विधायकों ने दिल्ली विधानसभा में इसी तरह की मांग की तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फिल्म को कर-मुक्त किए जाने आलोचना की और कहा कि फिल्म निर्माता को इसे सभी को मुफ्त में दिखाने के लिए यूट्यूब पर अपलोड कर देना चाहिए। विधानसभा में मौजूद आप विधायकों की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच केजरीवाल ने भाजपा विधायकों पर निशाना साधते हुए कहा कि वे फिल्म के पोस्टर लगाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए भाजपा विधायकों से कहा, "क्या आप यही करने राजनीति में आए थे?"इसके तुरंत बाद भाजपा ने केजरीवाल पर तीखा हमला किया। 

दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल और आप विधायकों को हंसता दिखाते हुए एक तस्वीर पोस्ट करके भाजपा महासचिव बी. संतोष ने ट्वीट किया, "कभी नहीं भूलना, ये उन लोगों पर हंस रहे हैं, जिन्होंने आतंकवाद के कारण जम्मू-कश्मीर में अपनी जान गंवाई .. उन माताओं पर हंस रहे हैं, जिन्होंने अपने बच्चों को खो दिया.. अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चे .. मारे गए सुरक्षा बल के जवान . जिन महिलाओं को काटा गया था .. जिन बच्चों को गोली मारी गयी थी .. बेशर्म अराजकतावादी।"दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर भाजपा और आप दोनों एक दूसरे के आमने-सामने हैं और दोनों ही 'द कश्मीर फाइल्स' को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। कश्मीरी हिंदुओं की दुर्दशा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुजरात में कहा, "'द कश्मीर फाइल्स' दिखाती है कि कैसे कांग्रेस के शासन में कश्मीर में अत्याचार और आतंकवाद फैल गया।"कश्मीरी पंडित होने का दावा करने वाले राहुल गांधी ने फिल्म या यहां तक कि कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर भी कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, पार्टी के कई अन्य नेता मैदान में कूद पड़े हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने एक ट्वीट में कहा, "कुछ फिल्में बदलाव को प्रेरित करती हैं। 'द कश्मीर फाइल्स' नफरत को उकसाती है। सत्य न्याय, पुनर्वास, सुलह और शांति की ओर ले जा सकता है।

 दुष्प्रचार तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है, क्रोध को भड़काने और हिंसा को बढ़ावा देने के लिए इतिहास को विकृत करता है। नेतृत्व करने वाला घावों को ठीक करता है। प्रचारक भय और पूर्वाग्रहों का लाभ उठाकर फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाता है।"छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 16 मार्च को अपने कैबिनेट सहयोगियों और पार्टी विधायकों के साथ रायपुर के एक मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखने के बाद कहा, "फिल्म अर्धसत्य को दर्शाती है और बिना कोई संदेश दिये केवल हिंसा दिखाती है।"पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और कई अन्य नेताओं ने फिल्म और जिस तरह से भाजपा इसे बढ़ावा दे रही है, उसकी आलोचना की है। राजनीतिक दल कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा का भरपूर फायदा उठा रहे हैं, लेकिन वास्तव में कोई भी उन्हें न्याय दिलाने के लिए कुछ नहीं कर रहा है। भाजपा बहुसंख्यकों के जुनून को भड़काने के लिए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का प्रदर्शन करती रही है, लेकिन वास्तव में कोई कार्रवाई नहीं की गई है। नरसंहार के 32 साल बाद भी कश्मीरी पंडितों के पलायन की जांच के लिए कोई न्यायिक आयोग या जांच आयोग भी नहीं गठित किया गया। कश्मीरी पंडितों के खिलाफ हुई लगभग 95 प्रतिशत हिंसक घटनाओं में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई और जहां मामले दर्ज किए गए हैं, वहां कोई कार्रवाई नहीं हुई। भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार कश्मीरी पंडितों की वापसी और पुनर्वास की योजना बनाने में विफल रही है। कश्मीरी पंडित समुदाय की दुर्दशा अभी तक भाजपा और अन्य दलों के लिए महज एक चुनावी मुद्दा है, लेकिन जो मानवता और मानवाधिकार की बात करते हैं, वे भी इस ओर ध्यान देने में विफल रहे हैं।

 देश के किसी भी मानवाधिकार संगठन ने इस समुदाय का मुद्दा नहीं उठाया है। 'द कश्मीर फाइल्स' का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन 24 मार्च को 200 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया । यह 'आरआरआर' की रिलीज से पहले महामारी के बाद सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म बन गई। निर्माताओं को निश्चित रूप से समर्थन दिया जाना चाहिए और राजनीतिक दलों को उचित लाभ प्राप्त करने के लिए आगे आना चाहिए लेकिन कश्मीरी पंडित समुदाय के लिए यह एक बार फिर से उसी दर्दनाक असहनीय अनुभव को दोबारा जीने जैसा है। यह कश्मीर के अल्पसंख्यक समुदाय का अकेला संघर्ष है। वह समुदाय, जिसकी जड़ें 5,000 साल पुरानी हैं, लेकिन वह आज अपनी जड़ों, संस्कृति और पहचान को कायम रखने तथा गंजू, टिकालाल टपलू, गिरजा टिक्कू, प्राण चट्टा, नीलकंठ गंजू, चुन्नी लाल शाला, नवीन सप्रू, सतीश टिक्कू, भूषण लाल, ओंकार नाथ मोटा, बंसीलाल काक, शीला कौल.. के पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने के लिए संघर्षरत है।

 

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