हिमाचल प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांगडा-चम्बा से वर्तमान लोकसभा सदस्य शांता कुमार पिछले पांच दिन चम्बा जिला में सब भाई-बहनों से मिल कर आये है।उन्होने कहा कि पिछले 30 वर्षों से कांगड़ा-चम्बा के लोग उन्हें लोकसभा में भेजते रहे। इसके लिए उन्होने उनका धन्यवाद किया और सासंद के रूप में अब वह विदा ले रहे है। चम्बा के भटियात विधानसभा क्षेत्र ने एक इतिहास बनाया था।वह कभी चुनाव हारते भी थे परन्तु वहां से सदा उन्हें कांग्रेस से अधिक वोट मिलते थे।उन्होने कहा है कि हिमाचल में राजनीति का स्तर सदा ऊंचा रहा है।इस बार कुछ अपवाद अच्छे नहीं लग रहे है। वीरभ्रद सिंह द्वारा जयराम ठाकुर के संबंध में कुछ कड़वे शब्द कहे गये। उन्होने जयराम ठाकुर को शातिर कहा, सत्ता का नशा और अपने आप से बाहिर होने की बात की है। मुझे विश्वास नही हो रहा कि वीरभद्र सिंह ने जयराम ठाकुर जैसे एक शालीन मुख्यमंत्री के संबंध में ऐसे शब्द कहे होगें। उन्हें लगता है कि यह सब वीरभ्रद सिंह ने दिल से नहीं कहा, गुस्से से उनसे कहा गया होगा।शांता कुमार ने कहा कि जयराम ठाकुर ने थोडे ही समय में अपनी अच्छी पहचान बनाई है। एक सर्वेक्षण में पूरे भारत में बडे-2 दिग्गज 27 मुख्यमन्त्रियों में लोकप्रियता में जयराम ठाकुर दूसरे स्थान पर आये है। यदि वीरभद्र सिंह अपने कहे गये शब्दों पर विचार करेगें तो उन्हें लगेगा कि वे गुस्से में बहुत कुछ गलत कह गये। उन्होने हिमाचल के सभी नेताओं से अपील की है कि हम विरोध करे परन्तु लोकतंत्र की मर्यादाओं को भंग न होने दे।
उन्होने कहा है कि वे वीरभद्र सिंह के मन की स्थिति को समझ रहे हैं। वे एक मजबूरी में मण्डी क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार कर रहे है। उन्होने मंच पर कहा कि वे आयाराम गयाराम के खिलाफ है। उन्होने यह भी कहा कि सुख राम ने उन्हें धोखा दिया था वे उसे भी कभी नही भूल सकते। यह सब कुछ उन्होने दिल से कहा था परन्तु वे बहुत अधिक समझदार है। उन्हे पता था कि पार्टी अनुशासन की मजबूरी में उन्हें प्रचार करना पडेगा। इसलिए उन्होने पहले ही कह दिया था कि ‘अकलमंद को तो इशारा ही काफी होता है।’ अब वे जो कह रहे है वो दिल से नही कह रहे और मण्डी की अकलमंद जनता को इशारा तो उन्होने पहले ही कर दिया है।शांता कुमार ने कहा है कि जो मण्डी में हुआ वह शायद कांग्रेस ने पूरे भारत में कभी नहीं किया होगा। जिस पौते ने अभी राजनीति में जन्म भी नहीं लिया था।किसी पार्टी का सदस्य भी नहीं था वह जन्म से पहले ही दल-बदलू बन गया। सुख राम उसे लेकर भाजपा के दरवाजे पर गये। टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस के दरवाजे पर पहुंचे।सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस से कोई भी चुनाव नहीं लड़ना चाहता था। सभी को लगता था यदि कांग्रेस के सबसे बडे नेता वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी रामस्वरूप के सामने नहीं जीत सकी तो अब तो कोई भी नहीं जीत सकता। कोई चुनाव नहीं लड़ना चाहता था।इसलिए सुख राम के पौते को टिकट दे दिया। यदि वीरभद्र सिंह अपने आपको कांग्रेस में इतने बडे नेता समझते है तो मण्डी के चुनाव मे स्वंय क्यों नही उतरे।रामस्वरूप जैसे एक साधारण कार्यकर्ता के मुकावले उनकी धर्मपत्नी की हार उन पर हमेशा के लिए एक प्रश्नचिन्ह रहेगा। उन्हे चाहिए था कि वे स्वयं चुनाव लड कर इस निशान को मिटा देते। मंडी में तो कांग्रेस का उम्मीदवार भी उधार का है और अब चुनाव प्रभारी सुरेश चंदेल भी उधार के है। हमारे सभी नेता उधार के नही परिवार के है।लोकसभा में अनुभवी नेताओं को भेजा जाता है। ऐसे अनुभवहीनों को नही।दिल्ली में लोकसभा है पौता-सभा नहीं। सुख राम परिवार हिमाचल की भजन-मण्डली बन गया।