दो साल बाद दिल्ली में शब्द-सुरों का महाकुंभ साहित्य आजतक 2022 शुरू हो गया है. 18 नवंबर से 20 नवंबर तक दिल्ली में ये साहित्य का मेला चलेगा. इस आयोजन में पहले दिन 'क्या कहूं जो कही नहीं' सेशन में जानी-मानी लेखिका उर्मिला शिरीष और गीताश्री ने साहित्य से जुड़ी तमाम बातें कीं. दिल्ली में आज से शुरू होने वाले सुरों और अल्फाजों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक' में कई जाने-माने मेहमान शामिल हो रहे हैं.
साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2022' के मंच से पहले दिन कई हस्तियों ने भाग लिया. आज 'क्या कहूं जो नहीं कही' सेशन में मशहूर लेखिका मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित लेखिका डॉ. उर्मिला शिरीष और जानी मानी लेखिका गीताश्री शामिल हुईं.इस सेशन के होस्ट रहे सईद अंसारी, जिन्होंने दोनों लेखिकाओं से बातचीत की.
गीताश्री ने कई कहानियां लिखी और पत्रकार की हैसियत से भी काम किया है. वहीं उर्मिला शिरीष की भी दर्जनों किताबें आ चुकी हैं. इस सेशन में स्त्री विमर्श पर चर्चा की गई. कार्यक्रम में गीताश्री ने कहा कि ऐसा काफी कुछ है जो कभी कहा नहीं गया. उन्होंने महफिल उनकी साकी उनका, आंखें अपनी बाकी उनका.. शेर पढ़कर अपनी बात की शुरुआत की. स्त्री-पुरुष संबंधों पर अभी बहुत कुछ कहा जाना बाकी है.
उन्होंने कहा कि मैंने प्रिंट मीडिया में काम किया है. मुझे छपे हुए अक्षरों से बेहद लगाव रहा है. गीताश्री ने कहा कि मैंने पत्रकारिता का स्वर्णकाल देखा है. मैं बागी तेवर की स्त्री रही हूं. मैंने जीवन में काफी गैर बराबरी झेली है. इस दौरान उन्होंने श्रद्धा हत्याकांड पर भी अपनी बात रखते हुए कहा कि यथास्थिति स्वीकार करने का परिणाम है कि श्रद्धा के 35 टुकड़े हुए हैं.
स्त्रियों का जीवन सुधारने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत हैः गीताश्री
गीताश्नी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि आज शराब और सिगरेट आधुनिकता नहीं है. हम जवान होती हुई शताब्दी में हैं. आज ईंट, भट्टों पर काम करने वाली स्त्रियां तस्करी करके लाई जाती हैं. उनका जीवन बेहद दर्दनाक है. गांवों में रहने वाली स्त्रियों का जीवन सुधारने के लिए जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है. एक महिला के लिए आदर्श स्थिति क्या है.
इसके जवाब में कहा कि आज आदर्श स्थिति अंडरस्टैंडिंग है. हर माता-पिता अपनी बेटी को संपत्ति में हिस्सा दें, उनके लिए एक दरवाजा खुला रखें. लड़कियों को पराया धन कहना बंद करें
लड़कियां खुद निर्णय लें, वह निर्णायक रूप में आगे आएंः डॉ. उर्मिला शिरीष
इस दौरान डॉ. उर्मिला शिरीष ने कहा कि कई कहानियां लिखी हैं, लेकिन आज भी मुझे उन स्त्रियों के बारे में लिखना है, जो गांवों में अभाव में रहकर जीवन गुजारती हैं. मैं गांव में रही हूं, देश और विदेश में स्त्रियों का जीवन देखा है, जीवन गुजारती हैं. मैं गांव में रही हूं, देश और विदेश में स्त्रियों का जीवन देखा है, उन सभी में एक दर्द है. रोती हुई मनुष्यता, बच्चों के रोते बचपन और मानवता पर लिखना मेरे लिए बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि सत्ता अगर महिलाओं के लिए काम नहीं करती तो उस पर भी लिखना है.
उन्होंने कहा कि शुरू में मेरा प्रशासनिक सेवा के लिए सेलेक्शन हो गया था, लेकिन कई कारणों से नहीं जा सकी. इस बात का आज भी मुझे बेहद मलाल है कि मैंने उस समय वह रास्ता क्यों नहीं चुना. खामोशी की भाषा को प्रतिरोध को कैसे बदला जाए, इस पर सोचने की जरूरत है. मैंने लड़कियों को हमेशा आगे बढ़ने पर जोर दिया है. अपनी कहानी में भी इस विषय को उठाया है.
डॉ. उर्मिला शिरीष ने कहा कि मैं चाहती हूं कि लड़कियां खुद निर्णय लें, आगे बढ़ें, वह निर्णायक रूप में आगे आएं. इससे वह सही गलत का चयन कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि कोई किसी के टुकड़े कैसे कर सकता है. अगर लड़कियां खुद फैसले करने लगेंगी तो हिंसा, मारपीट से बच सकती हैं. गांव और शहर की महिलाओं और बच्चों के जीवन में बहुत ज्यादा अंतर है. मैंने बेहद करीब से देखा है.
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