हिमाचल प्रदेश ऊँची पहाड़ियों पर आधारित एक पर्वतीय प्रदेश है। हिमालया की इन ऊँची ऊँची पर्वतमालाओं से कई छोटी बड़ी नदियों, नालों व खड्डों का उदय हुआ है। जिला कुल्लु उपमण्डल बंजार की तीर्थन घाटी में समुद्र तट से करीब 3500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित तीर्थ टॉप की आसमान को छूने वाली चमकीली बर्फ से ढकी ये चोटियाँ भी हिमालया पर्वत की ही है। हिमालया पर्वत के तीर्थ टॉप में मौजूद हिम के विशाल भण्डारों के पिघलने पर ही मध्यवर्गीय तीर्थन नदी का जन्म हुआ है। हिमाच्छादित पर्वत तीर्थ से निकलने के कारण ही इस नदी का नाम तीर्थन नदी पड़ा और नदी के दोनों छोरों पर बसी वादियाँ ही तीर्थन घाटी कहलाती हैं। तीर्थ से निकली तीर्थन नदी की वजह से ही तीर्थन घाटी का महत्व है।तीर्थ टॉप के हँसकुण्ड नामक स्थान पर तीर्थन नदी का उदगम स्थल है। घाटी में हर नदी नालों के उदगम और संगम स्थलों को पवित्र माना जाता है। स्थानीय देव परम्परा के अनुसार तीर्थन नदी के उदगम स्थल हँसकुण्ड को भी बहुत ही पवित्र स्थान माना गया है। इस हँसकुण्ड नामक स्थान पर दो अलग अलग दिशा से आई जलधाराओं का संगम भी होता है। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के प्रवेश द्वार दरखली से आगे का पूरा तीर्थ क्षेत्र पार्क के कोर जोन में आता है। यह क्षेत्र अति दुर्लभ औषधीय जड़ी बूटियों और जैविक विविधताओं का खजाना है। जड़ी बूटियों के सम्पर्क में आने के कारण इस नदी का पानी भी औषधीय गुणों वाला बनता है।तीर्थ से निकलकर यह नदी अविरल बहती हुई पहाड़ियों के बीच से दहाड़ती और टकराती हुई रोला, रोपा, गुशैनी, खुंदन बंजार, मंगलौर और बालीचौकी नामक स्थानों से होकर करीब 60 किलोमीटर का सफर तय करने के पश्चात आगे लारजी नामक स्थान पर व्यास नदी और सैंज नदी के संगम स्थल पर बने बिजली परियोजना के बांध में जाकर मिलती है। इस बांध को अब पर्यटन की दृष्टि से जलक्रीड़ा के लिए विकसित किया जा रहा है।
तीर्थ टॉप से लेकर गुशैनी नामक स्थान तक इस नदी से सटे दोनों किनारों पर कोई भी बस्ती या आबादी नहीं है।गुशैनी नामक स्थान में भी फ्लाचन और तीर्थन नदी का संगम स्थल है। इस स्थल को भी पवित्र स्थान माना गया है जो बुजुर्ग व्यक्ति या महिला तीर्थ यात्रा पर न जा सकते हो वे इस स्थान पर ही नदी के जल से अपनी शुद्धि कर लेते हैं। तीर्थन नदी के जल को गंगाजल की तरह शुद्ध माना जाता है कई लोग गुशैनी नामक स्थान से पानी भरकर अपने घरों को लेकर जाते हैं। तीर्थन नदी में अनेकों छोटी सहायक नदियां, नालें और झरने आकर मिलते हैं जिसमें फ्लाचन नदी, सुंगचा नाला, खरुंगचा नाला, मन्हार नाला, बशीर नाला, कलवारी नाला, जीभी खड्ड और मंगलौर नाला आदि प्रमुख हैं। समूची तीर्थन घाटी में कई सहायक छोटी नदियों, नालों, झरनों और खड्डों का जाल बिछा हुआ है जो घाटी को भगौलिक दृष्टि के आधार पर ग्राम पंचायतों, कोठी, फाटी, बार्ड और गॉंवों की सीमाएँ भी निश्चित करती हैं। यहाँ पर कई छोटे छोटे मौसमी नाले भी है जो केबल बरसात में ही पानी से भरते हैं और बरसात खत्म होते ही या तो इनका पानी सूख जाता है या बहुत कम हो जाता है। ये सहायक नदियां और नाले भी ट्राउट मछली के विकास और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। मुख्य रूप से तीर्थन नदी का स्त्रोत हिमालया पर्वत के तीर्थ टॉप पर मौजूद विशाल हिमखण्ड है जिस कारण पूरे साल भर यह नदी जल से भरी रहती है इसलिए यह नदी सदानीरा तीर्थन नदी भी कहलाती हैं।ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में उभरती हुई तीर्थन घाटी आज धीरे धीरे अन्तराष्ट्रीय ट्राउट पर्यटन में अपनी पहचान बना रही है। यहाँ का अलौकिक प्राकृतिक सौन्दर्य, जैविक विविधिता, पुरातन संस्कृति, कृषि ,वेशबुषा, रहन सहन और टॉउट मछली का रोमांच सैलानियों को बार बार यहाँ आने को मजबूर करता है।
तीर्थन नदी की लहरों में ट्राउट फिशिंग का रोमांच लेने के लिए प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देसी विदेशी सैलानियों के अलावा कई मछली आखेट के शौकीन भी आते हैं। तीर्थन की जलधारा पर बिजली परियोजनाओं के विरोध में यहाँ के लोगों ने अदालत तक की लम्बी लड़ाई लड़ी है ताकि इस नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व सम्बर्धन किया जा सके। यह सब यहाँ के भूतपूर्व विधायक दिले राम शबाब के अथक प्रयासों से ही सम्भव हो पाया है। प्रदेश की उच्च अदालत ने भी इस नदी की जलधारा पर बिजली परियोजना बनाने पर पावंदी लगाई है।तीर्थन नदी का पानी आमतौर पर निर्मल, पारदर्शी और ठंडा रहता है जिस कारण इसमें ट्राउट मछली बहुतायात में पाई जाती है। गर्मियों के मौसम में पहाड़ों की चोटियों पर बर्फ पिघलने के कारण इस नदी का जल स्तर अक्सर घटता बढ़ता रहता है। वर्ष 1909 में जी.सी.एल. हॉवेल नाम के एक अंग्रेज ने व्यास और तीर्थन नदी में ट्राउट मछली को बढ़ाने का आगाज किया था। निर्मल जल धारा में रहने वाली ट्राउट मछली की यह प्रजाति स्पोर्ट्स फिश के रूप में भी जानी जाती है जो दुनिया के नॉर्बे देश में बहुतायात में पाई जाती है। भूतपूर्व विधायक दिले राम शबाब ने इसके महत्व को समझा और 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉक्टर परमार मन्त्रिमण्डल ने एक अहम फैसला लेकर तीर्थन नदी की चालीस किलोमीटर लम्बी जलधारा को संरक्षित कर दिया था। उस समय इस नदी की देख रेख के लिए जगह जगह पर होमगार्ड के जवान तैनात किए गए थे। इसी का नतीजा है कि आज भी तीर्थन नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व सम्बर्धन हो रहा है और यही ट्राउट मछली फिशिंग के शौकीन देशी विदेशी सैलानियों को खुला निमन्त्रण दे रही है। यहाँ के बुद्धिजीबी लोगों का कहना है कि तीर्थन नदी में ट्राउट मछली का संरक्षण व सम्बर्धन किया जाना जरूरी है क्योंकि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे। घाटी के प्रवुद्ध लोगों ने इस नदी में फैलाए जा रहे प्रदुषण, करंट, फांसी, जाल, झटका, विस्फोटक और ब्लीचिंग पाउडर जैसे तरीकों से मछली की इस प्रजाति पर आ रहे संकट पर चिन्ता व्यक्त की है। लोगों का कहना है कि करीब दो दशक पहले तक इस नदी में असंख्य छोटी बड़ी मछलियां होती थी जिन्हें नंगी आंखों से तैरते हुए देख सकते थे लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है। नदियों की दुर्दशा से पानी प्रदूषित हो रहा है और मछलियों के आवास भी सिकुड़ रहे है यदि यही हाल रहा तो ट्राउट मछली को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
लोगों का सरकार और मत्स्य विभाग से आग्रह है कि ट्राउट मछली के अवैध शिकार को रोकने के लिए स्थानीय लोगों की सहभागिता से कोई विशेष योजना बनाई जाए और इसके साथ ही फील्ड स्टाफ को भी बढ़ाया जाए ताकि इस धरोहर प्राकृतिक मत्स्य सम्पदा का संरक्षण व सम्बर्धन हो सके।टॉउट कॉन्सरबेशन एंड एंगलिंग एसोसिएशन जिला कुल्लु के महासचिव कृष्ण सन्धु का कहना है कि इनकी संस्था ट्राउट मछली के संरक्षण व सम्बर्धन की दिशा में कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन पर लगातार बढ़ते बोझ ने ट्राउट मछली के साथ साथ हर प्रकार के जीव जन्तुओं के प्रजनन,विकास व सम्बर्धन पर बहुत बुरा प्रभाव छोड़ा है इसके लिए ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से कूड़ा कचरा, पॉलीथिन बैग,प्लास्टिक पदार्थ और ई वेस्ट को जंगलों, नदी व नालों में पहुंचने से पहले ही रोकना होगा और अवैध शिकारियों पर शिकंजा कसना होगा। उन्होंने कहा कि इस सम्वन्ध में मत्स्य विभाग अभी भी सख्त करवाई करने में इतना सफल नहीं हो रहा है जितना उसे होना चाहिए था। लॉक डाउन के दौरान करीब दो माह तक अवैध शिकारी जम कर बिना डर के नदी नालों में मत्स्य का समूल नाश करने में लगे रहे। जिस कारण मत्स्य आखेट पर्यटन जैसा कमाई का साधन आने वाले समय में शून्य होकर रह जायेगा और कुल्लू जिला जो पूरे देश में ब्राउन ट्राउट और ट्राउट फार्मिंग का जन्म स्थल है यहाँ पर यदि यह मत्स्य अपना वजूद ही गवां देगा तो यह प्रदेश और देश के लिए शर्म की बात होगी। इन्होंने कहा कि इसके लिए स्थानीय लोगों और आम जनता को जिमेबारी लेकर आगे आना होगा और अवैध मत्स्य शिकारियों के खिलाफ सख्त करवाई करने के लिए विभाग का सहयोग करना होगा तभी सही मायने में इस नदी और इसमें पाई जाने वाली ट्राउट मछली का संरक्षण एवं संवर्धन हो पाएगा।तीर्थन घाटी की ग्राम पंचायत नोहण्डा के पूर्व प्रधान स्वर्ण सिंह ठाकुर का कहना है कि टॉउट मछली के संरक्षण और सम्बर्धन के लिए मत्स्य विभाग के साथ यहाँ की आम जनता को कड़े कदम उठाने होंगे ताकि इस नदी की जलधारा को संरक्षित करके इसमें प्राकृतिक तौर पर लम्बे समय तक मछली उत्पादन किया जा सके। इनका कहना है कि तीर्थन नदी और इसमें पाई जाने वाली ट्राउट मछली की वजह घाटी में पर्यटन बढ़ेगा और यहाँ के स्थानीय लोगों के लिए स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे जिस कारण आजीविका की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले यहां के स्थानीय युवाओं का पलायन भी रुकेगा।
तीर्थन घाटी गुशैनी बंजार से परस राम भारती की रिपोर्ट
स्थान:- गुशैनी