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मेरे लिए 'आराधना' है मिथिला पेंटिंग : बउआ देवी

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5 Dariya News

पटना , 27 Jan 2017

मिथिला पेंटिंग ने एक बार फिर बिहार के मधुबनी जिले को देश के मानचित्र पर स्थापित किया है। इस जिले की कलाकार 75 वर्षीय बउआ देवी को पद्मश्री सम्मान के लिए चुने जाने की घोषणा के बाद स्थानीय कला प्रेमियों में अपार खुशी है। वह इस कला को अपनी 'आराधना' मानती हैं। मिथिला पेंटिंग के गढ़ माने जाने वाले जितवारपुर गांव की निवासी और दिवंगत जगन्नाथ झा की पत्नी बउआ देवी फिलहाल नई दिल्ली में अपने पुत्र के साथ रहती हैं। उन्हें पद्म पुरस्कार के लिए चुने जाने की जानकारी गृह मंत्रालय की ओर से फोन पर दी गई।अप्रैल, 2015 में अपनी जर्मनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेयर स्टीफन शोस्तक को बउआ देवी की पेंटिंग उपहार में दी थी, जिसकी जानकारी इस कलाकार को बहुत बाद में मिली।
पद्मश्री सम्मान के लिए चुने जाने से खुश कलाकार ने आईएएनएस से फोन पर अपनी भाषा मैथिली में कहा, "यदि अहां खुश छी त हमहूं खुश छी। हमरा सम्मान स' बेसी खुशी अहि बातक अछि जे आब ई कला गाम स' निकलि देश-दुनिया में पहुंचि गेल अछि। (अगर आप खुश हैं तो मैं भी खुश हूं। मुझे सम्मान से ज्यादा इस बात की खुशी है कि यह कला गांव से निकलकर देश-दुनिया में पहुंच गई है)।" बउआ 13 वर्ष की उम्र से ही मिथिला पेंटिंग कला से जुड़ गई थीं।
उन्होंने कहा, "अब तो मरने के बाद ही यह कला मेरे शरीर से अलग होगी।" वह पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ी हैं। उनकी शादी मात्र 12 वर्ष की उम्र में ही हो गई थी। शादी के बाद भी उनकी कला साधना अनवरत जारी रही। कहा, "आज भी याद है कि किस तरह मुझे प्रारंभिक वर्षो में प्रति पेंटिंग सिर्फ डेढ़ रुपये मिला करते थे, जिनकी कीमत अभी लाखों में है।" उन्होंने बताया कि मिथिला पेंटिंग बनाने की प्रेरणा उन्हें अपनी मां चंद्रकला देवी से मिली। विवाह में कोहबर, जनेऊ संस्कार, मंडप और पूजा के मौके पर दीवारों पर की जाने वाली पेंटिंग को देखकर उनके मन में भी पेंटिंग करने की जिज्ञासा जगी। इसी दौरान जब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ ही रही थीं, तो उनकी शादी हो गई। ससुराल आने के बाद से वह मिथिला पेंटिंग से निरंतर जुड़ी हुई हैं। बउआ देवी मधुबनी पेंटिंग की उन कलाकारों में एक हैं, जिन्होंने मधुबनी पेंटिंग की परंपरागत शैली 'दीवार पर चित्रकारी' को कागज पर उतारकर दुनिया के सामने पेश किया है। उनकी 'नागकन्या श्रृंखला' की 11 पेंटिंग दुनियाभर में चर्चित हुई हैं।वह कहती हैं, "अब इस कला का विस्तार गांव-घर से देश-दुनिया तक हो गई है। मैं खुद 11 बार जापान गई हूं और वहां महीनों रहकर कई कार्यक्रमों में मिथिला पेंटिंग कर चुकी हूं।
इसके अलावा फ्रांस, ब्रिटेन, लंदन में भी मेरी पेंटिंग मौजूद हैं। देश के विभिन्न राज्यों से मेरी पेंटिंग की मांग की जाती है, जिससे मुझे खुशी होती है।"आज के फाइन आर्ट और मिथिला पेंटिंग की तुलना करने पर बउआ कहती हैं, "हमलोग कोई फाइन आर्ट नहीं कर रहे हैं जो घालमेल कर दें। मेरी मिथिला पेंटिंग अलग है, उसे अलग ही रहने दें। अलग रहेगी, तभी इसकी पहचान भी रहेगी।"वह वर्ष 1986 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त कर चुकी हैं। उनका पूरा परिवार इस कला से जुड़ा हुआ है। वह अपने दो बेटों- अमरेश कुमार झा व विमलेश कुमार झा और चार बेटियां- रामरीता देवी, सविता देवी, कविता और नविता झा को भी मिथिला पेंटिंग की विधा में दक्ष बना चुकी हैं।आज के कलाकारों को संदेश देते हुए वह कहती हैं, कलाकारों को मेहनत के साथ अपना कार्य जारी रखना चाहिए। मिथिला पेंटिंग बिहार के मधुबनी और दरभंगा जिलों के अलावा नेपाल के कुछ इलाकों की प्रमुख लोककला है। पहले इसे घर की महिलाएं दीवारों पर प्राकृतिक रंगों (फूल-पत्तियों के रस) से बनाती थीं। आधुनिक युग में तरह-तरह के रंग बाजार में मौजूद होने के बावजूद बउआ देवी अपनी पेंटिंग में प्राकृतिक रंगों को ही तरजीह देती हैं।



 

Tags: KHAS KHABAR

 

 

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