कृषि पर आयोजित की जा रही राष्ट्रमंडल देशों की कामनवेल्थ पार्लिआमेंट्री एसोसिएशन (सीपीए) की बैठक के दूसरे दिन की गई चर्चा में कहा गया कि दुनिया में हो रहे जनसं या विस्फोट के बाद छा रहे खाद्यन संकट के चलते वर्ष 2०3० तक कृषि उत्पादन 5० फीसद बढ़ाने का एक्शन प्लान जारी किया गया है। इस ब्लू प्रिंट में बताया गया है कि जितनी भूमि पर आज खेती हो रही है उतनी पर ही खेती करते हुए लक्ष्य प्राप्त किया जाए।बैठक में हरित क्रांति के बाद ज्यादा पानी की खपत करने वाली फसलों पर चर्चा करते हुए वैज्ञानिकों से कहा गया कि कम पानी लेने वाली फसलों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। इसके साथ ही अधिक गर्मी को सहन करने के साथ ही उत्पादन भी बेहतर करने वाली फसलों के बीजों की खोज की जाए। दूसरे दिन आयोजित की गई बैठक में दुनिया भर में कृषि की स्थिति, पेश आ रही चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर विचार विमर्श करते हुए खाद्यन संकट से निपटने की बात की गई है।
इसी संबंध में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए यूनिवर्सिटी आफ ग्रीनविच (इंग्लैंड ) के प्राकृतिक संसाधन संस्थान के प्रो. गे पॉल्टर ने बताया कि यह बेहद चिंता की बात है कि दुनिया भर में 1.2 अरब लोग एक डॉलर प्रतिदिन से भी कम की आय पर गुजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2०5० में एशिया की जनसं या वृद्धि 4.4-5.2 अरब से बढ़ कर छह से नौ अरब के बीच होने का अनुमान है। ऐसे में दुनिया में वर्तमान कृषि क्षेत्र में ही 2०3० तक 5० फीसद अधिक खाद्य और ऊर्जा का उत्पादन करना होगा। ताजा पानी और ऊर्जा की उपलब्धता के चेतावनी भरे आंकड़े देते हुए प्रो. पॉल्टर ने बताया कि वर्तमान में कृषि क्षेत्र ताजा पानी का 7० फीसद उपयोग किया जा रहा है जबकि जिस प्रकार के उत्पादन के अनुमान लगाए जा रहे है उन फसलों के बीजों के लिए 3० फीसद अतिरिक्त ताजा पानी की आवश्यकता होगी। इससे विश्व भर में पानी का संकट पैदा होना तय है। उन्होंने कहा कि हमे हरित क्रांति के बाद हो रहे नुकसान से सबक लेना होगा और कम पानी की खपत के साथ गर्मी बर्दाश्त करते हुए अधिक पैदावार वाली फसलों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
अगले चार दशकों में एशिया में बेहतर कृषि विकास दर के साथ दुनिया को दिशा देने वाला बताते हुए प्रो. पॉल्टर ने कहा कि 6० के दशक के बाद एशिया की आर्थव्यवस्था में खासी वृद्धि हुई है और बढ़ती समृद्धि के साथ दुनिया में अधिक भोजन लेने वाले भी अधिक पैदा हुए है जो अधिक खाना खरीदने की क्षमता रखते हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी इस समृद्धि के बावजूद एशिया में एक चौथाई अरब लोग हर रात भूखे सोने के लिए मजबूर हैं। हमे उनके लिए भी खाने की व्यवस्था करनी होगी जब वे अपनी पर्याप्त कमाई के साथ भोजन खरीदने की क्षमता पा लेंगे। उन्होंने कहा कि एशिया में 8० फीसद लोग कृषि क्षेत्र पर निर्भर हैं और 87 फीसद किसानों के पास छोटे खेत हैं ऐसे में नई नीति को अधिक प्रभावशाली होना होगा।
199० के बाद खाद्यन उत्पादन में आए ठहराव पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रो. पॉल्टर ने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों को बढ़ती हुई जनसं या के अनुपात में ही खादन उत्पान बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। साथ ही उन्होंने कृषि उत्पादन क्षेत्र, कृषि उपज में वेल्यू एडीशन के अलावा कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश खोलने, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने, जनसं या में कुपोषण से निपटने और छोटे किसानों की आकांक्षाओं को पूरा करने पर जोर देना होगा।
सांसदों से कृषि विकास के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित करने के आह्वान के साथ प्रो. पॉल्टर ने कृषि कानूनों की समीक्षा और कृषि क्षेत्र के विकास अड़ंगा बनने वाली नीतियों को बदलने की बात भी की है। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हो रहे बदलावों पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में दुनिया के तापमान में चार डिग्री तक की बढ़ोतरी हो जाएगी वहीं एशिया में 65 फीसद कृषि की निर्भरता बरसात पर ही है। ऐसे में यहां के देशों को मौसम के और अधिक सटीक पूर्वानुमान प्रणालियां विकसित करनी होंगी। साथ ही उन्होंने पॉलीनेटिड हाइब्रिड बीजों और आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) फसलों की ओर रूख करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में हुए अनुसंधान का लाभ खेत में लेना होगा और हर देश को अपने गांवों तक एक्सटेंशन नेटवर्क को मजबूत करना पड़ेगा।