जीवन का अंतिम चरण यानी बुढ़ापे में मनुष्य के लिए घर-परिवार का त्याग करने का विधान रहा है। 'मनु स्मृति' में कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति की त्वचा सिकुड़ रही हो और उसके केश सफेद हो रहे हैं और उसका पौत्र भी धरती पर आ चुका हो तो उसे वन की ओर प्रस्थान कर जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नवोदित 'कर्णधार' नरेंद्र मोदी भी अपनी पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को भौतिक जगत की माया से अलग रखकर मनु स्मृति के प्रति सम्मान का भाव जता रहे हैं। जहां कुछ वरिष्ठ नागरिकों को पार्टी के बुरे और अच्छे दिनों में भरोसा बनाए रखने का इनाम पदों के रूप में दिया गया है, वहीं कई ऐसे भी हैं जिन्हें प्रतीक्षा सूची में रखा गया है। ऐसे लोगों में पुराने कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी हैं। इन नेताओं ने एक समय रथयात्रा निकाल मुस्लिम कब्जे से हिंदू तीर्थस्थलों की आजादी का बिगुल फूंक देश में हिंदू भावना को जागृत करने या भगवा इतिहास का लेखन कराया था।
आडवाणी का दुर्भाग्य ही है कि कभी भाजपा में वे नंबर दो के नेता माने जाते थे और जब पार्टी सत्ता में आने को हुई तो उन्हें सरकार की कमान सिर्फ इसलिए नहीं सौंपी गई थी क्योंकि वे 'रथयात्री' रह चुके थे। भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश में जिस मृदुल छवि को नेता के रूप में स्वीकार किया जा सकता था उसकी तलाश अटल बिहारी वाजपेयी में पूरी हो गई थी। चाहे राजनीति हो या जीवन, व्यक्ति के जीवन में उतार-चढ़ाव आता है। देखते ही देखते मनुष्य का भाग्य बदल जाता है और देखते ही देखते तबाही आ जाती है। आडवाणी की हाशिए पर सिमटी मौजूदा हालत को दूसरी स्थिति में माना जा सकता है।