Friday, 26 April 2024

 

 

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लाहुल में जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से मच सकती है तबाही

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5 दरिया न्यूज( धर्मचंद यादव )

कुल्लू , 09 May 2014

जल विद्युत परियोजनाओं में बांध निर्माण जल प्रबन्धन या तबाही, इस पर आज पूरे प्रदेश में बहस छिड़ चुकी है। पूरा प्रदेश वायु,जल प्रदूषण , वनों का विनाश , दुर्लभ प्रजातियों का विलुप्तीकरण,मौसम में बदलाव,तापमान में वृद्वि जैसे अनेकों समस्याओं की गिरफत में है। अकेले हिमाचल में ही अब तक जल विद्युत परियोजनाओं की भेंट सात हजार से ज्यादा हैक्टेयर भुमि चढ़ चुकी है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश के शीत मरूस्थल लाहुल स्पीति में प्रस्तावित 13 छोटी व बड़ी परियोजनाएं क्या गुल खिलाएंगी यह तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। जब बांधों को बनाने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ तो बांधों को उन्नति का पर्याय माना जाने लगा। लेकिन बांधों की वजह से उजडऩे का दर्द वही जानते है,जो आज तक पुर्नवास के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भाखड़ा व पौंग बांध के विस्थापितों को बसाने की लंबी लड़ाई जग जाहिर है। लाहुल में प्रस्तावित 300 मैगावाट जिस्पा परियोजना में चार गांव दारचा,सुमदो,दारचा-दांगमा,रागयो बारयो,लिमक्सुम जल मग्न होंगें तथा 74 परिवार विस्थापित होंगे। 

राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार 865 बिघा निजी भूमि भी जल मग्न क्षेत्र में आंएगे। इस के अलावा 420 मैगावाट सैली बांध परियोजना में 22 परिवार विस्थापित होंगे तथा सैकड़ों बिघा जमीन जल मग्न होगी। वन तथा निजी भूमि ही नहीं बल्कि हजारों पेड़ों की बलि भी चढ़ेगी,जो कि शीत मरूस्थल के लिए कब्रगाह साबित हो सकती है। भू-वैज्ञानिकों ने चिन्ता जाहिर की है कि बांध भूकंप,भूसख्लन तथा हिमसख्लन जैसी घटनाओं को सामान्य से अधिक बढ़ा देती है। इन्हीं कारणों से लाहुल स्पीति के कबायली लोग बांधों का विरोध कर रहे हैं। परियोजनाओं से आदिवासियों की धर्मिक,सांस्कृतिक,भौगोलिक तथा सामाजिक परिवेश पर पडऩे वाले संभावित प्रभावों को देखते हुए घाटी के कई स्वंय सेवी संस्थांए लामबंद हो रही हैं। इन संस्थाओं का यह भी कहना है कि लाहुल की भौगोलिक संरचना अति संवेदनशील है और यहां के पहाड़ लूज स्टराटा रेंज में आती है,जिस वजह से यहां के पहाड़ विस्फोटों का दंश नही झेल पांएगे। प्रदेश के अधिकतम ग्लेशियर इसी जिले में अवस्थित होने के कारण इन का भी वजूद खतरे में पड़ सकता है। बड़ा शिगरी,गेग्स्टंग,सोना पानी,पैराद,मैन्तोसा,मुलकिला,कांगला आदि ग्लेशियर यहां के प्राणं एवं जीवनदायिनी है। रेन शेडो में अवस्थित यह इलाका फसलों की सिंचाई के लिए पूर्णतया ग्लेशियर पर निर्भर है। बड़े बड़े बांधों की इन योजनाओं से विकास तो सिर्फ पूंजीपतियों का होता है,जब कि सच तो यही है कि कबायली और पर्वतीय लोगों की जीवन पद्वतियों को लगभग उजाड़ कर रख देता है। बांध नदियों की परिस्थतियों को नष्ट करता है तथा विस्थापितों को नकदी और मुआवजा के नाम पर बेरोजगारी की विरासत सौंपी जाती है। बांधों के निर्माण से हरी भरी घाटियां रेतीले गढ़ों में तबदील हो सकती हैं तथा पर्यावरणिय संतुलन बिगडऩे के साथ साथ कबायली जनजाति के जनजीवन पर विपरित असर पड़ सकता है।

 

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