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प्रेम, शांति एवं मानवता के दिव्य संदेश के साथ 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम का समापन

संसार में शांति एवं प्रेम फैलाते जायें : सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज

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समालखा (हरियाणा) , 21 Nov 2022

‘‘स्वयं को शांति एवं प्रेम का स्वरूप बनाते हुए पूरे संसार में इन दिव्य भावों को फैलाते जायें।’’ ये उद्गार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने 75वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन सत्र में देश विदेशों से लाखों की संख्या में सम्मिलित हुए विशाल मानव परिवार को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।

सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज के आशीर्वचनों द्वारा प्रेम, शांति एवं मानवता का दिव्य संदेश प्रसारित करने वाले इस पंचदिवसीय समागम का आज सफलतापूर्वक समापन हुआ। समागम के मध्य संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल का प्रांगण श्रद्धा, भक्ति, प्रेम के प्रकाशपुंज से दीप्तिमान हो रहा था। अध्यात्म के इस पावन और सुंदर उत्सव पर निश्चय ही हर भक्त का हृदय आनंदविभोर हो रहा था। समागम में शामिल हुए श्रद्धालुओं के चेहरों पर शांति, सन्तुष्टि एवं खुशी का नूर झलक रहा था।

शांति एवं अमन के संदेश की महत्ता को समझाते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि यह संदेश दूसरों को देने सेे पहले हमें स्वयं अपने जीवन में धारण करना होगा। किसी के प्रति मन में वैर, ईर्ष्या का भाव न रखते हुए सबके प्रति सहनशीलता एवं नम्रता जैसे गुणों को अपनाते हुए सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना होगा।

गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा दिये गए विश्व शांतिदूत सम्मान के प्रति अपने भाव प्रकट करते हुए सत्गुरु माता जी ने कहा कि यह उपलब्धि इन संतों की ही देन है जो इस एक प्रभु को जानकर एकत्व के सूत्र में बंध गए हैं। जब तक हम इस परमात्मा की पहचान से अनभिज्ञ थें तब तक हम सभी एक दूसरे से अलग अलग थे। किन्तु ब्रह्मज्ञान के द्वारा जब हमें यह बोध हुआ कि हम सभी इस परमपिता की ही सन्तान है, इसी का ही अंश है, तब हमारे हृदय में परोपकार के दिव्य गुणों का समावेश हो गया। संसार में मिशन की शांति एवं एकत्व की पावन छवि बनी हुई है इसमें मिशन के हर एक संत का बहुमूल्य योगदान है।

इसके पूर्व समागम समिति के समन्वयक एवं सन्त निरंकारी मण्डल के सचिव श्री जोगिंदर सुखीजा जी ने सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता रमित जी का हृदय से आभार प्रकट किया जिनकी असीम कृपा से समागम सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इसके साथ ही सभी सरकारी विभागों एवं प्रशासन का हार्दिक धन्यवाद किया जिन्होंने समागम को सफल बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया।

समागम के इतिहास को प्रदर्शित करने वाली दृकश्राव्य डॉक्युमेंटरी समागम के अवसर पर तीन भागों में श्रद्धालुूओं को दिखाई गई। इस डॉक्युमेंटरी द्वारा समागम के 75 वर्षों के गौरवपूर्ण इतिहास पर प्रकाश डाला गया और यह दर्शाया गया कि समागमों का प्रारूप प्रारंभ में कैसा था और वर्तमान में इसका विस्तारण किस प्रकार हुआ है। साथ ही मिशन के पूर्व गुरुओं एवं सन्तों ने जो अमूल्य योगदान दिया है उसे भी इस डॉक्युमेंटरी के माध्यम से दर्शाया गया जिसे देखकर वहां उपस्थित सभी श्रद्धालु भक्त अत्यधिक प्रभावित हुए।

यह समागम 600 एकड़ क्षेत्र में फैले संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल के विशाल मैदानों में आयोजित किया गया। समागम से सम्बधित विभिन्न सेवाओं को निभाने हेतु मंडल से अनेक विभागों के सेवादारों के अतिरिक्त करीब 1,50,000 सेवादल के भाई-बहन समागम स्थल पर सेवाओं में अपना योगदान दे रहे थे।

 स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्गत समागम स्थल पर 5 एलोपैथिक और 4 होम्योपैथिक डिस्पेन्सरियां थी। इसके अतिरिक्त 14 प्राथमिक चिकित्सा केंद्र, 1 कायरोप्रैक्टिक चिकित्सा पद्धति शिविर तथा 4 एक्युप्रैशर/फिजियोथेरेपी सुविधा केन्द्र बनाये गए। समागम स्थल पर मंडल की ओर से 12 एवं हरियाणा सरकार की ओर से 20 एम्बुलैन्स की व्यवस्था की गई थी।

समागम में सुरक्षा व्यवस्था हेतु हरियाणा सरकार के सहयोग से 50 चैक पोस्ट बनाये गए थे। साथ ही साथ मिशन के सेवादार दिन-रात ट्रैफिक कंट्रोल की सेवा में कार्यरत थे। समागम मे यातायात प्रबंधन के लिए प्रशासन एवं भारतीय रेलवे ने नियमित आवागमन की यात्रा हेतु दिल्ली के आनंद विहार, हजरत निजामुद्दीन व पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भक्तों को उचित सुविधाएं उपलब्ध करवाई। समागम स्थल के निकट भोड़वाल माजरी रेलवे स्टेशन पर आम दिनों में न रुकने वाली ट्रेनों को भी समागम के दिनों में रुकवाने की व्यवस्था रेलवे प्रशासन द्वारा की गई थी।

समागम में आये हुए सभी श्रद्धालु भक्तों के लिए समागम के चारों मैदानों में लंगर की उचित व्यवस्था की गई थी। इसके अतिरिक्त समागम स्थल पर 22 कैन्टीनों का प्रबंध किया गया था जिसमें रियायती दरों पर चाय, कॉफी, शीतपेय एवं अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाई गई थी।

समागम स्थल पर स्वच्छता का विशेष रूप से ध्यान दिया गया जिसमें लंगर को केवल स्टील की थालियों में ही परोसा गया न कि प्लास्टिक में ताकि वातावरण की शुद्धता एवं स्वच्छता को किसी प्रकार की कोई क्षति न पहुंचे और समागम का सुंदर स्वरूप बना रहे।

 

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