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Supreme Court ने राजोआना की दया याचिका पर फैसले में देरी को लेकर केंद्र की खिंचाई की

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नई दिल्ली , 28 Sep 2022

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में फांसी की सजा पाए बलवंत सिंह राजोआना की ओर से दायर दया याचिका पर फैसला करने में देरी को लेकर बुधवार को केंद्र सरकार की खिंचाई की। 

प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित ने कहा कि वह मामले में स्थगन देने के केंद्र के वकील के अनुरोध पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला भी शामिल हैं। 

पीठ ने राजोआना की दया याचिका पर निर्णय लेने में देरी पर सवाल उठाते हुए केंद्र के वकील से कहा कि मई में दिए गए आदेश को चार महीने बीत चुके हैं। शीर्ष अदालत ने संबंधित विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी को गुरुवार तक मामले की स्थिति पर हलफनामा दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को होना तय की। 

राजोआना की दया याचिका पर फैसला करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई को केंद्र को दो महीने का समय दिया था। इसने कहा कि केंद्र द्वारा निर्णय जल्द से जल्द लिया जाना चाहिए, "आज से दो महीने के भीतर"। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के.एम. नटराज ने कहा कि दया याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह किसी अन्य संगठन द्वारा दायर की गई है न कि दोषी द्वारा। 

गृह मंत्रालय (एमएचए) ने यह भी तर्क दिया है कि दया याचिका पर तब तक फैसला नहीं किया जा सकता, जब तक कि शीर्ष अदालत के समक्ष मामले में अन्य दोषियों द्वारा दायर अपील का निपटारा नहीं किया जाता। 

साथ ही, राजोआना ने अपनी दोषसिद्धि या सजा को न तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया था कि किसी अन्य संगठन की ओर से दया याचिका दायर किया जाना मामले पर विचार करने में बाधा नहीं है। 

पीठ ने केंद्र के वकील से कहा कि उसने सितंबर 2019 में गुरु नानक देव की 550वीं जयंती के विशेष अवसर पर राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद की सजा में बदलने का फैसला किया था। इसमें आगे कहा गया है कि दो साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया गया है। 

नटराज इस बात से सहमत नहीं थे कि 2019 में राजोआना की मौत की सजा को कम करने का अंतिम निर्णय लिया गया था। उन्होंने कहा कि यह निर्णय लिया गया कि मौत की सजा को कम करने के प्रस्ताव को अनुच्छेद 72 के तहत संसाधित किया जाना है। 

नटराज ने कहा कि राजोआना ने निचली अदालत को एक बयान दिया था कि उन्हें न्यायपालिका और संविधान में कोई विश्वास नहीं है। न्यायमूर्ति ललित ने कहा, "वे सभी इस देश के नागरिक हैं .. करुणा से केस के निपटारे की जरूरत है ..।"

पीठ ने कहा कि केंद्र के संचार ने राज्य को अन्य दोषियों को छूट देने का निर्देश दिया था। नटराज ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 161 के तहत राज्यों की अपनी स्वतंत्र शक्ति है। शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में भी सरकार द्वारा कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाने पर नाराजगी व्यक्त की थी। 

राजोआना की मौत की सजा को कम करने के लिए राष्ट्रपति को प्रस्ताव भेजने में देरी को लेकर केंद्र से सवाल किया था। शीर्ष अदालत दो साल पहले दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने के लिए सितंबर 2019 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लिए गए एक फैसले को लागू करने की मांग की गई थी। 

अपनी फांसी के इंतजार में राजोआना 25 साल से जेल में है। 2007 में एक विशेष अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। उसकी दया याचिका आठ साल से अधिक समय से लटकी हुई है।

 

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