Afghanistan से एक बड़ी खबर सामने आ रही है। वहां भूकंप ने भयंकर तबाही मचाई दी है। खबर है कि अब तक 255 लोगों से ज्यादा की मौत हो चुकी है। सही आकंड़ा अभी बताया नहीं जा सकता। ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है। क्योंकि काफी लोगों के अभी मलबे में दबे होने की आशंका है। वहीं खबर ये भी है कि अफगानिस्तान के अलावा Pakistan में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। अफगानिस्तान में जो भूकंप आया रिक्टर पैमाने पर उसकी तीव्रता 6.1 मापी गई।
Taliban प्रशासन के आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रमुख मोहम्मद नसीम हक्कानी ने इस बारे में ज्यादा जानकारी देते हुए बताया कि भूकंप से सबसे ज्यादा तबाही पक्तिका प्रांत में हुई है, जहां 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है और 250 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। नंगरहार और खोस्त के पूर्वी प्रांतों में भी मौतों की सूचना मिली है और अधिकारी बचाव कार्य में जुट गए हैं। मौतों का सही आकंड़ा अभी बताया नहीं जा सकता। आपकी ये भी बता दें कि भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के खोस्त शहर से करीब 44 किलोमीटर दूर था और 51 किलोमीटर की गहराई में था। ये भूकंप इतना तेज था कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के लाहौर, मुल्तान, क्वेटा में भी लोगों को झटके महसूस हुए। इसके अलावा भारत के कुछ इलाकों में भी झटके महसूस किए जाने की खबर है। लेकिन यहां जान-माल की कोई हानि नहीं हुई है।
भूकंप की कितनी तीव्रता होती है खतरनाक
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रिक्टर स्केल पर 2.0 से कम तीव्रता वाले भूकंप को माइक्रो कैटेगरी में रखा जाता है और यदि इस प्रकार के भूकंम आ भी जाते हैं तो इन्हें महसूस नहीं किया जा सकता। इस तरह के 8,000 भूकंप दुनियाभर में रोजाना दर्ज किए जाते हैं। जिनकी लोगों को जानकारी भी नहीं होती। इसी तरह 2.0 से 2.9 तीव्रता वाले भूकंप को माइनर कैटेगरी में रखा जाता है। ऐसे 1,000 भूकंप प्रतिदिन आते हैं इसे भी सामान्य तौर पर हम महसूस नहीं करते। वेरी लाइट कैटेगरी के भूकंप 3.0 से 3.9 तीव्रता वाले होते हैं, जो एक साल में 49,000 बार दर्ज किए जाते हैं।
इन्हें महसूस तो किया जाता है लेकिन शायद ही इनसे कोई नुकसान पहुंचता है। 4.0 से 4.9 की तीव्रता वाले भूकंप थोड़े खतरनाक होते हैं इनके घर हिलते हुए महसूस किए जा सकते हैं। बता दें कि पृथ्वी के अंदर 7 प्लेट्स हैं, जो लगातार घूमती रहती हैं। जहां ये प्लेट्स ज्यादा टकराती हैं, वह जोन फॉल्ट लाइन कहलाता है। बार-बार टकराने की वजह से प्लेट्स के कोने मुड़ते हैं और जब ज्यादा दबाव बनता है तो प्लेट्स टूटने लगती हैं। इसके बाद नीचे की एनर्जी बाहर आने का रास्ता खोजती है और इस डिस्टर्बेंस के बाद भूकंप आता है।