ग्रेशियन सुपर स्पैशलिटी अस्पताल मोहाली द्वारा विश्व डायबटिज दिवस के अवसर पर सीनियर सिटीजन के साथ एक हेल्थ टॉक कैंप तथा सेमीनार लगाया गया, जिसमें शुगर की बीमारी के शरीर के अहम अंगों, विशेषकर किडनी पर पडऩे वाले बुरे प्रभाव पर चर्चा की गई। इस अवसर पर 100 के करीब पहुंचे बुजुर्गों को अस्पताल के किडनी की बीमारियों के माहिर तथा कंस्लटेंट डा. छमिंदरजीत सिंह, जनरल मेडीसन के कंस्लटेंटट डा. पूजा चौहान व दिल की बीमारियों के माहिर व कंस्लटेंट डा. टी.पी. सिंह ने संबोधन किया।डा. छमिंदरजीत सिंह ने बताया कि टाइप-1 शुगर वाले मरीजों में से 30 प्रतिशत मरीजों के किडनी खराब होने की संभावना होती है। उन्होंने बताया कि छोटे बच्चों तथा किशोर उम्र के नौजवानों को डायबटिज होने तथा उनको टाइप-1 शुगर के मरीजों के रूप में जाना जाता है, जबकि बालिग तथा बुजुर्गों को टाइप-2 डायबटिज के मरीज शामिल होते हैं। डा. छमिंदरजीत सिंह, जो कि ग्रेशियन अस्पताल में किडनी ट्रांस्पलांट के भी माहिर हैं, ने बताया कि डायबटिज तथा किडनी पर इसके असर का अनुमान इन लक्ष्णों से लगाया जा सकता है, जिसमें पेशाब में अलबुमिन/प्रोटीन आना, उच्च रक्तचाप, टकने तथा टांगों में सोजिश, टांगों में झुनझुनाहट, रात के समय बार-बार पेशाब आना, खून में यूरिया तथा क्रेटेनिन का स्तर बढऩा शामिल है। इसके अलावा सुबह के समय स्वास्थ्य ठीक न लगना, घबराहट, शरीर का पीला पडऩा, कमजोरी महसूस करना तथा खारिश भी किडनी की बीमारी के लक्ष्ण हैं।डा. छमिन्दरजीत सिंह ने बताया कि टाइप-2 (बालिग तथा बुजुर्ग मरीजों) में 10-40 प्रतिशत में किडनी खराब होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि किडनी की बीमारी या नुक्स का जितनी जल्द पता लगा जाए, उतना ही शुगर के मरीजों के लिए अच्छा है, क्योंकि इसका समय पर इलाज शुरू करके किडनी के नुकसान को बचाया जा सकता है।
इससे जहां मरीज लंबी उम्र तथा अच्छी जीवन शैली के योगय हो जाते हैं तथा आर्थिक बोझ से भी बच जाते हैं।ग्रेशियन सुपर स्पैशलिटी अस्पताल के जनरल मेडीसन के कंस्लटेंटट का डा. पूजा चौहान ने सीनियर सिटीजनस के साथ बातचीत करते हुए कहा कि डायबटिक किडनी की बीमारी के प्राथमिक लक्ष्णों में पेशाब में अलबुमिन की मात्रा का बढऩा है। उन्होंने कहा कि यह टेस्ट हर वर्ष करवाना चाहिए। उन्होंने बताया कि भारत में डायबटिज स्वास्थ्य के लिए बड़ी चिंता का विषय बन चुकी है। देश की लगभग आधी आबादी में इसका जोखिम पैदा हो रहा है। भारत में 77 मिलियन (7 करोड 70 लाख) लोगों को डायबटिज है तथा माहिरों का कहना है कि यह 2045 तक बढक़र 13 करोड़ 40 लाख (134 मिलियन) हो जाएंगे। माहिरों ने बताया कि डायबटिज के प्राथमिक लक्ष्णों में बार-बार प्यास लगना, थकावट, धूंदला दिखना, हाथों-पैरों में सुन्नापन या खारिश, जख्म का ठीक न होना, बार-बार पेशाब आना, गला सूखना आदि शामिल है। शुगर के कारण किडनी फेल होने के अलावा दिल का दौरा, स्ट्रोक, पैर खराब तथा तनाव जैसे समस्या पैदा हो सकती है।शुगर के कारण पैर खराब होने की बीमारी के बारे जागरूक करते हुए दिल की बीमारियों के माहिर डा.टी.पी. सिंह ने कहा कि पैरीफैरल वेस्कूलर बीमारी रक्त की नाडिय़ों से संबंधित बीमारी है। उन्होंने बताया कि पैरीफैरल वेस्कूलर बीमारी पहले टांगों के बाहर असर डालती हैं। इससे चलने के समय तकलीफ होती है तथा कई बार लेटने के समय भी दर्द रहता है तथा फिर अलसर (फोड़ा) बन जाता है, आखिर में गैंगरीन हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस बीमारी के कारण 90 प्रतिशत केसों में अंग कटवाने से बचा जा सकता है, इसलिए पूरी जानकारी तथा समय पर इलाज की जरूरत है। इस कैंप में शामिल बुजुर्गों ने माहिर डाक्टरों से बहुत सारे सवाल पूछे तथा अपनी शंका भी दूर की।