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रामचंद्र गुहा को इस्तीफा देने के लिए किसने विवश किया?

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5 Dariya News

01 Jun 2017

रामचंद्र गुहा द्वारा बीच में ही क्रिकेट प्रशासक समिति (सीओए) को छोड़ने की घटना ने एक बार फिर से हमें माननीय लोढ़ा समिति की स्थिति रिपोर्ट पर विचार करने के लिए विवश कर दिया है जिसमें कहा गया था कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अयोग्य हो चुके पदाधिकारियों के रहते सिफारिशें लागू कराना नामुमकिन है। सर्वोच्च न्यायालय ने लोढ़ा समिति की खेल प्रशासन में सुधार से संबंधित सिफारिशों को लागू करने के लिए विनोद राय की अध्यक्षता में चार सदस्यीय प्रशासक समिति बीसीसीआई की निगरानी के लिए बनाई थी। लेकिन, इस समिति से अलग बीसीसीआई के तमाम नाकारा हो चुके पदाधिकारी लगातार खेल जगत को बेवकूफ बना रहे हैं।माननीय प्रशासनिक समिति (सीओए) को इसे सुलझाने में भी कश्मकश करना पड़ रहा है। बीसीसीआई जिस प्रकार देश की शीर्ष अदालत के आदेश की अवमानना करती आ रही है, उस पर टिप्पणी या अप्रिय भाषा का उपयोग कर हमारे जैसे लोग बीसीसीआई का क्या बिगाड़ लेंगे?

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 27 फरवरी, 2015 को दिए आदेश के बाद भी बीसीसीआई के संयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी ने बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष को बीसीसीआई की बैठक में बुलाकर जानते बूझते कानून का मखौल उड़ाया। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन लोग हैं जिन्होंने रामचंद्र गुहा जैसे अच्छे छवि वालों को त्याग पत्र के लिए विवश कर दिया।मैं एक याचिकाकर्ता होने के नाते पूछना चाहता हूं कि क्रिकेट तो पूरे साल खेला जाता है, सिफारिशें कब लागू होंगी? बिहार के साथ और गैर मान्यता प्राप्त राज्य संघों को कब बीसीसीआई की मुख्य धारा से जुड़ने का मौका मिलेगा? खासकर बिहार को, जिसे चालबाजी के तहत बीसीसीआई से बाहर कर दिया गया। इस साल भी अगर बिहार को रणजी में खेलने का मौका नहीं मिलता है तो शायद बीसीसीआई कार्यालय के सामने आत्मदाह ही करना पड़े!! क्या बोलूंगा अपने राज्य के निरीह खिलाड़ियों से जो आशा भरी निगाहों से टकटकी लगाए अपनी पारी का इंतजार कर रहे हैं।

बीसीसीआई की प्रशासनिक समिति से मेरा निवेदन है कि (ऑडिट कंपनी) डेलॉयट की रिपोर्ट में सामने आए भ्रष्टाचारियों को जांच कर जेल भेजा जाए। पैसा जनता का है, जो खिलाड़ियों के खेल से बीसीसीआई की तिजोरी में आया है।माफियागिरी का अंत होना चाहिए। समय आ गया है कि खेल जगत अब हल्ला बोले। कानून का पालन न करने वाले बीसीसीआई के अयोग्य हो चुके पदाधिकारीयों को एक मिनट भी पद पर बने रहने देना सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का घोर अपमान है। सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आए 318 दिन हो गए हैं, लेकिन कुछ नहीं हो रहा है। कानून के पंडित भी बीसीसीआई मामले में चुप्पी साधे हुए हैं और कोई भी अवाज नहीं उठा रहा है।लेकिन, मैं चुप नहीं रह सकता। कानून का आदर करना हर सच्चे भारतीय का धर्म है।

(लेखक बिहार क्रिकेट संघ के सचिव हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

 

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