आर्यन्स इंस्टीच्यूट ऑफ नॢसंग (एआईएन) ने अपने कॉलेज कैंपसमें वर्ल्ड अस्थमा डे मनाने के लिए एक सैमीनार का आयोजन किया। डॉ रणजीत सिंह, एपीजैन हॉस्पीटल इस अवसर पर मुय वक्ता थे। एएनएम, जीएनएम के विद्यार्थियों ने इस सेशन में भाग लिया। यह उल्लेखनीय है कि वल्र्ड अस्थमा डे ग्लोबल इनीशीएटिव ऑफ अस्थमा (जीआईएनए) द्वारा हर साल अस्थमा के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए आयोजित किया जाता है। वर्ल्ड अस्थमा डे मई महीने के पहले मंगलवार को होता है। डॉ रणजीत सिंह ने विद्यार्थियों के साथ बातचीत करते हुए इस बीमारी के विभिन्न पहलुओं के बारे में चर्चा की जैसे कि कारण, लक्षण, सावधानी, निवारक उपाय आदि।रणजीत सिंह ने बोलते हुए कहा कि बहुत सी एलर्जी और उत्तेजनाएं है जो अस्थमा के अटैक को जन्म दे सकती है।
ऐसे ट्रिगर प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग होते है लेकिन इसमें तंबाकू का धुआं, बाहरी वायु प्रदूषण, धूल के कण, पालतू भोजन और कई अन्य तत्व शामिल है।सिंह ने आगे कहा कि अस्थमा दो तरह के होते है: एलर्जीक (एक एलर्जीन के संपर्क में होने के कारण) और नोनएलर्जीक (तनाव, व्यायाम, ठंड या फलू जैसे बीमारियां और चरम मौसम के संपर्क में, हवा में परेशानी या कुछ दवाओं से)। लक्षणों के बारे में बताते हुए उन्होने कहा कि खाँसी, सांस की तकलीफ, छाती में जकडन, घुटने का दर्द (सांस लेते समय छाती में सीटी या चीखी ध्वनि की आवाज आना) आदि सबसे आम लक्षण है।नॢसंग डिपार्टमेंट की लेक्चरार, मिस पारूल गुलेरिया ने बोलते हुए कहा कि अस्थमा से ग्रस्त लोग अस्थमा के अटैक को रोक सकते है यदि वह जान जाएं कि अस्थमा ट्रिगर्स से कैसे बचे जैसे कि धुम्रपान, ढालना, बाहरी वायु प्रदुषण, ठंड और फलू। अस्थमा के एपिसोड को इंहेल्ड काॢटसोस्टिरिओड्स और अन्य नियन्त्रण दवाईयों के दीर्घकालीन उपयोग से रोका जा सकता है।रिपोर्टो के अनुसार भारत में 1/10 के साथ विश्व भर में 300 मिलियन अस्थमा के मरीज है। 15 महामारियों के हाल ही के अध्ययनों की समीक्षा से पता चला है कि बच्चों में अस्थमा का औसत स्त्तर 7.24' है। भारत में बढते वायु प्रदुषण के कारण पिछले 10 वर्षो में अस्थमा का प्रसार बढ रहा है।