लंबे समय से तीन तलाक एवं राम मंदिर मुद्दे पर सड़क से सदन तक एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। इन दोनों ही मामलों में मुस्लिमों की अहम भूमिका मानी जाती है। इसे लेकर राजधानी लखनऊ के नदवा कालेज में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दो दिवसीय मैराथन बैठक हुई। हालांकि इस बैठक में इन दोनों ही मामलों में कोई ठोस निर्णय नहीं निकल पाया लेकिन तीन तलाक देने वालों का सामाजिक बहिष्कार करने तथा अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय मानने का निर्णय लिया गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी ने प्रेस वार्ता में कहा कि बोर्ड ने तीन तलाक की व्यवस्था में किसी भी तरह का परिवर्तन करने से इंकार किया है। साथ ही तलाक के लिए एक आचार संहिता भी जारी की है। इसकी मदद से तलाक के मामलों के शरई निर्देशों की असली सूरत सामने रखी जा सकेगी।
उन्होंने बताया कि बोर्ड ने यह फैसला किया है कि बिना किसी शरई कारण के एक ही बार में तीन तलाक देने वाले लोगों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए। बोर्ड तमाम उलेमा और मस्जिदों के इमामों से अपील करता है कि इस कोड आफ कंडक्ट को जुमे की नमाज के खुतबे में पढ़कर नमाजियों को जरूर सुनाएं और उस पर अमल करने पर जोर दें। अगले डेढ़ साल में तीन तलाक को खत्म कर दिया जाएगा। इस मामले में उन्होंने सरकार को दखल न देने को कहा।उन्होंने कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि तीन तलाक औरत को मुश्किलों से बचाने के लिए है। हम दूसरे मजहब में दखल नहीं करते हैं, तो दूसरा मजहब भी हमारे मामले में दखल न दे। तलाक का मामला शरीयत के हिसाब से ही रहेगा। जब कोर्ट का फैसला आएगा, तब हम उसे देखेंगे। ट्रिपल तलाक मामले में अगर कोड ऑफ कंडक्ट को फॉलो नहीं किया गया है या शरिया में बताए गए कारणों के अलावा यदि कोई अन्य बहाने से तीन तलाक देता है, तो उसका सोशल बायकॉट किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि अगर शरियत के हिसाब से व्हाट्सएप, पोस्टकार्ड, कुरियर से भी तलाक भेजा गया, तो वो मान्य होगा। जिस तरह से शादी के लिए पोस्टकार्ड से दावतनामा भेजा जाता है, वो भी माना जाता है। इसी तरह अगर कोई किसी माध्यम का प्रयोग करते हुए तलाक देता है तो वह भी जायज होगा। इस्लाम में मर्द औरत दोनों को बराबर का हक दिया गया है। इसलिए हमने यह फैसला लिया है कि माता-पिता निकाह में अपनी बेटियों को दहेज देने की जगह उन्हें जायदाद में हिस्सा दें।रहमानी ने कहा कि अयोध्या के विवादित ढांचे पर बोर्ड सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानेगा। आज की बैठक में कहा गया कि बाहर इस विवाद को सुलझाने की कोशिशें नाकाम हुई हैं।
मौलाना ने कहा कि मुल्क में मुस्लिम पर्सनल लॉ को लेकर बोर्ड के हाल में चलाए गए हस्ताक्षर अभियान के माध्यम से मुसलमानों ने एक बार फिर यह बता दिया कि हिन्दुस्तान का संविधान इस देश के तमाम नागरिकों को अपने धार्मिक मामलों पर अमल करने की आजादी देता है। उन्होंने कहा कि मुसलमान मर्द और औरतें शरई कानूनों में कोई भी बदलाव या हस्तक्षेप नहीं चाहते। बोर्ड ने इस बात को साफ किया कि धार्मिक आजादी हमारा संवैधानिक अधिकार है। हमारे शरई मामलों में सरकार का हस्तक्षेप बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस दौरान मौलाना सैयद अरशद मदनी, जलालुद्दीन उमरी, कल्बे सादिक, खालिद सैफुल्ला रहमानी सहित कई मुस्लिम धर्मगुरु मौजूद रहे।