Saturday, 27 April 2024

 

 

खास खबरें माझा में गरजे मान! शैरी कलसी के लिए गुरदासपुर में किया चुनाव प्रचार अमृतसर में बोले मान - माझा वाले जब मन बना लेते हैं तो फिर बदलते नहीं है, इस बार 'आप' को जीताने का मन बना लिया है कांग्रेस महिलाओं को नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण देगी: लांबा लोकसभा चुनाव में मतदान बढ़ाने की अनोखी पहल राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए लोगों को गुमराह कर रहा अकाली दल : परनीत कौर राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने सड़क सुरक्षा पुरस्कार प्रदान किए युवा देश का भविष्य, लोकतंत्र के पर्व में भागीदारी करें सुनिश्चित : हेमराज बैरवा हरियाणा विधानसभा द्वारा गठित तथ्य-जांच समिति में प्रदेश सरकार के दो मंत्री शामिल बोलने का हक भी छीन रही पंजाब सरकार कैथल में अंबाला रोड पर भगवान विश्वकर्मा चौक के निकट चुनावी कार्यालय का शुभारंभ किया ज़मीन के इंतकाल के बदले 10,000 रुपए रिश्वत लेता हुआ पटवारी विजीलैंस ब्यूरो द्वारा काबू 20,000 रुपए की रिश्वत लेता हुआ सीनियर सहायक विजीलैंस ब्यूरो द्वारा काबू आर.टी.ओ ने सेफ स्कूल वाहन स्कीम का उल्लंघन करने वाली 23 बसों के काटे चालान कांग्रेस देश को धर्म और जाति के नाम पर बांटने का काम कर रही : डॉ. सुभाष शर्मा ‘मानव एकता दिवस’ के अवसर पर निरंकारी मिशन द्वारा 296 युनिट रक्त दान किया गया मार्कफैड के एम.डी. ने निर्विघ्न खरीद कार्यों को सुनिश्चित बनाने के लिए सम्बन्धित डिप्टी कमिश्नरों के साथ लुधियाना, मोगा और फिऱोज़पुर की मंडियों का किया दौरा जिला एवं सत्र न्यायधीश की ओर से जिला कानूनी सेवाएं अथारटीज के सदस्यों के साथ बैठक जिला एवं सत्र न्यायधीश की ओर से जिला कानूनी सेवाएं अथारटीज के सदस्यों के साथ बैठक हीट-वेव से बचाव के लिए आवश्यक कदम उठाने के निर्देश राजीव के हाथ के खाने का स्वाद आज तक नहीं भूले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल से प्रशिक्षु अधिकारियों ने भेंट की

 

राजनीति में भाषाई मर्यादाओं का सवाल

Listen to this article

Web Admin

Web Admin

5 Dariya News

19 Feb 2017

उत्तर प्रदेश का चुनावी मैदान राजनीतिक दलों के लिए जंग बन गया है। राजनीतिक दल और राजनेता चुनावी झोली से नित्य नए जुमले निकाल कर रहे हैं। निजी हमले भी किए जा रहे हैं और 30-35 साल पुराने गड़े मुर्दे भी उखाड़े जा रहे हैं, जिसका कोई औचित्य नहीं है। लेकिन सत्ता और सिंहासन की लालच में सब कुछ जायज है। लेकिन आम आदमी और प्रधानमंत्री के बयान में फर्क है। एक सामान्य राजनेता कुछ भी बोल दे, उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता है, लेकिन जब उसी बात को देश का प्रधानमंत्री सार्वजनिक सभा में बोले तो उसके कुछ अलग मायने हैं। हालांकि यह राजनीतिक निहितार्थ से कुछ अधिक नहीं है। लेकिन सवाल पद और गरिमा का है।राजनीति में गिरने की सीमा किस हद तक होनी चाहिए, क्या इसका पैमाना नहीं होना चाहिए? वह भी प्रधानमंत्री और राहुल गांधी जैसे नेताओं के लिए, जिससे देश बड़े बदलाव की उम्मीद रखता है।दो दिन पूर्व कन्नौज की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस और सपा के गठबंधन पर बड़ा हमला बोला। प्रधानमंत्री ने कहा कि अखिलेश कुर्सी की लालच में पिता की हत्या की साजिश रचने वाली कांग्रेस से गठबंधन कर लिया। जब मुलायम सिंह विधान परिषद में विपक्ष के नेता थे, तो उनके कड़े विरोध के कारण कांग्रेस तंग आगर उनकी हत्या की साजिश रची थी और गोलियां चलवाईं, लेकिन वह बच गए। 

खुद गठबंधन की सरकार चलाने वाले प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस की गोद में बैठने के पहले उस घटना को याद कर लेना चाहिए था।प्रधानमंत्री को क्या किसी सार्वजनिक मंच से इस तरह का बयान देना चाहिए था? यह घटना 33 साल पुरानी है, जिसका उप्र की वर्तमान राजनीति से कोई लेनादेना भी नहीं है। जब की यह घटना है, तब से अब तक उप्र की एक पीढ़ी पूरी तरह जवान हो चली है और समय के दरिया में बहुत पानी बह चुका है। इस तरह की अनगिनत घटनाएं बंद फाइलों में धूल चाट रही हैं और नित राजनीतिक हत्याएं हो रही हैं। फिर प्रधानमंत्री ने इस तरह का बयान क्यों दिया?

घटना उस समय हुई थी, जब मुलायम सिंह चार मार्च, 1984 को इटावा से लखनऊ जा रहे थे और उन पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई गई थीं। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, लेकिन इस घटना से कांग्रेस का कोई लेनादेना नहीं था। हां, इसमें स्थानीय कांग्रेस नेता बलराम सिंह का नाम आया था। बीते तैंतीस साल में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के रिश्तों में जाने कितने उतार-चढ़ाव आए। यह सच है कि वर्ष 2004 में सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बानाने का मुलायम सिंह यादव ने मुखर विरोध किया था, लेकिन अमेरिका से परमाणु अप्रसार संधि में कांग्रेस के साथ खड़े हुए। जिस बलराम सिंह यादव पर मुलायम सिंह की हत्या की साजिश रचने का इल्जाम लगा, उन्हें ही मुलायम ने 1998 में समाजवादी पार्टी में शामिल किया था। भाजपा के लोगों ने प्रधानमंत्री को ब्रीफ करते समय यह बात क्यों नहीं बताई?

प्रधानमंत्री ने जिस घटना का महिमा मंडन किया, आरोपी उन्हीं बलराम सिंह को 2004 ने भाजपा ने मैनपुरी से सांसद का उम्मीदवार बनाया था। भाजपा ने उन्हें क्यों उम्मीदवार बनाया? हालांकि मुलायम सिंह यादव पब्लिक फोरम पर कुछ अवसरों पर कांग्रेस पर अपनी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा चुके हैं। उसी बयान को आधार बना प्रधानमंत्री ने बाप-बेटे के बीच बढ़ी तल्खी का मनोवैज्ञानिक लाभ लेने की कोशिश की। वर्ष 1998 में मुलायम सिंह ने खुद हत्या की साजिश के आरोपी बलराम सिंह को गले लगाया और उन्हें मैनपुरी से टिकट देकर सांसद बनाया। बलराम सिंह 1971 में कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। 1980 में उन्होंने जसवंतनगर से मुलायम सिंह को हराया था, जहां से आज शिवपाल सिंह यादव चुनाव लड़ रहे हैं, कभी वह मुलायम सिंह का गढ़ था। बलराम सिंह कांग्रेस सरकार में 1980 से 1984 तक वह कैबिनेट मंत्री थे। 1988 मंे मैनपुरी से कांग्रेस सासंद चुने गए थे। नरसिंह राव सरकार मंे भी वह कैबिनेट मंत्री थे। हालांकि प्रधानमंत्री की तरफ से दिया गया बयान सियासी मानोविज्ञान की परिभाषा से अधिक कुछ नहीं है। राजनीतिक दल चुनावी महासंग्राम को अपने पक्ष में करने और वोटरों को लुभाने के लिए कोई हथकंडा नहीं छोड़ता चाहते हैं। भाजपा और मोदी के लिए यह चुनाव किसी 'अग्निपरीक्षा' से कम नहीं है। उप्र राजनीतिक लिहाज से बड़ा राज्य है। 

कहते हैं, दिल्ली का रास्ता लखनऊ होकर गुजरता है। दूसरी बात, 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की अगुवाई में भाजपा ने यहां से 71 सीटें जीतीं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है। पूरी लड़ाई प्रधानमंत्री मोदी को सामने रखकर लड़ी जा रही है। मोदी लोकसभा चुनाव में किए वादों को भूल सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी की उपलब्धियों के सामने रख चुनाव मैदान में हैं। 14 साल से भाजपा राज्य की सत्ता से बाहर है। ऐसी स्थिति में वह राममंदिर, लव जेहाद, नोटबंदी, तीन तलाक जैसे मसलों को सामने रखकर हिंदूमतों का ध्रुवीकरण भी चाहती है।उप्र में सीधा मुकाबला कांग्रेस और सपा के गठबंधन से है। मुख्यमंत्री अखिलेश युवा हैं और परिवारिक झगड़े के बाद एक नई ताकत के रूप में उभरे हैं। राहुल और अखिलेश की युवा जोड़ी है। इस वजह से भाजपा को कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है। इसलिए भाजपा की तरफ से बार-बार गठबंधन पर प्रहार किया जा रहा है। यहां त्रिकोणीय लड़ाई दिख रही है।उधर, बसपा प्रमुख मायावती मनमोहन वैद्य के आरक्षण वाले बयान को लेकर हल्ला बोल रही हैं। कांग्रेस और सपा के साथ से मुस्लिम मतों का बिखराव रुक सकता है, यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस पर हमलावर हैं। उन्हें मालूम हैं कि अगर कांग्रेस और सपा का गठबंधन उप्र में मजबूत हुआ तो यह 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अच्छा नहीं होगा। 

दूसरी वजह कि भाजपा का राज्यसभा में बहुमत नहीं हो पाएगा। सियासी लिहाज से यह उसकी सबसे बड़ी पराजय होगी। बिहार में हार से भी बड़ी हार।मोदी पर 17 करोड़ लोगों ने भरोसा जताया है। दुनियाभर में उनकी शख्सियत का कोई जोड़ नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर प्रधानमंत्री को सत्ता के लिए 'जुमलेबाजी' का सहरा लेना पड़े, यह राजनीति के लिए अच्छी बात नहीं है। संसद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ भी उनका रेनकोट वाला बयान मीडिया में काफी चर्चा का विषय रहा। उन्होंने मर्यादा तोड़ी तो राहुल गांधी चुप कैसे रहते, उन्होंने भी काउंटर अटैक करते हुए सारी मर्यादाएं लांघ दीं। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को बाथरूम मंे झांकने की आदत है।प्रधानमंत्री और राहुल गांधी दो राष्ट्रीय दलों के नेतृत्वकर्ता हैं, उनसे ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। सियासी जुमलेबाजी की लक्ष्मणरेखा तो होनी चाहिए। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)

 

Tags: Election Special

 

 

related news

 

 

 

Photo Gallery

 

 

Video Gallery

 

 

5 Dariya News RNI Code: PUNMUL/2011/49000
© 2011-2024 | 5 Dariya News | All Rights Reserved
Powered by: CDS PVT LTD