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‘संघर्ष के बच्चे ' ने कोच्चि —मुजिरिस बिनाले के परिद्रश्य में एक अनोखापन जोड़

कश्मीर के कला छात्र बिनाले की रचनात्मक आजादी से जुड़े

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कोच्चि , 22 Dec 2016

'क्या आपको मेरी आवाज सुनाई नहीं देती ?' दर्द के सागर में ? क्या आप कभी दर्द के सागर में लौट कर आएंगे ? कभी नहीं ? ये शब्द चिली के कवि और क्रांतिकारी राउल जुरिता की कलाक्रति 'दर्द का सागर' की दीवारों पर उकेरे गए शब्द हैं जो कोच्चि मुजिरिस बिनाले, केएमबी में लगायी गयी है। ये शब्द किसी परिचय के मोहताज हुए बिना अपना दर्द खुद ब्यां करते हैं ।एस्पिन वाल में जहां इस विशाल जगह को भरने के लिए समुद्र का पानी नजर आता है, वहां से गुजरते हुए, कश्मीर से आए 11 कला छात्र 'दर्द के पहाड़' से भर जाते हैं। सीरियाई शरणार्थी संकट के पीड़ितों को श्रद्धांजलि देते कवि के ये शब्द 'संघर्ष की इन संतानों' से एक रिश्ता अपने आप ही बना लेते हैं ।फाइन आर्ट  के प्रथम वर्ष के छात्र नुमैर कादरी कहते हैं, ''यहां बिनाले में, हम सही मायने में जुरिता की कला से जुड़ा महसूस करते हैं  क्योंकि कवि ने दिल की गहराइयों से सीरियाई शरणार्थी संकट से जो दर्द पैदा हुआ है उसे बाखूबी अपनी रचना में उतारा है। हम उस दर्द को भी समझते हैं जो संघर्ष अपने साथ लाता है, फिर चाहे यह कश्मीर में हो या दुनिया के किसी अन्य हिस्से में।''

कश्मीर ​विश्वविद्यालय के फैकल्टी ऑफ म्यूजिक एंड फाइन आर्ट्स के छात्र बिनाले के तीसरे संस्करण में रचनात्मक स्वतंत्रता को अनुभव करने और यहां प्रदर्शित आर्ट वर्क को देखने के लिए श्रीनगर से यहां आए हैं। इनका विश्वविद्यालय उन 55 फाइन आर्ट्स स्कूलों में से एक था जिसने स्टूडेंट्स बिनाले : एसबी : के दूसरे संस्करण में योगदान दिया था। यह कोच्चि बिनाले फाउंडेशन : केबीएफ : की महत्वपूर्ण कला शिक्षा और संपर्क पहल था।मत्तानचेरी ज्यू टाउन एरिया में सात एसबी आयोजन स्थलों में से एक कोटाचेरी ब्रदर्स एंड कंपनी वेयरहाउस में 12 वीडियो का एक सेट प्रदर्शित किया गया है। इन वीडियो में विश्वविद्यालय के छात्रों को एक 60 फुट ऊंचे चिनार के पेड़ पर कश्मीर के पेपरमैशी कला पर काम करते दिखाए गए हैं।

हालांकि ये छात्र आर्ट वर्क को बनाने में सीधे तौर पर शामिल नहीं थे लेकिन उनकी मौजूदगी ने कला आयोजन के परिद्रश्य ''पीपुल्स बिनाले'' में विविधता का पुट जोड़।फाइन आर्टस के प्रथम वर्ष के ही छात्र काजी ताबिया कहते हैं, ''कश्मीर पिछले 300 सालों से संघर्ष में रहा है और हम हमेशा से दमन के डर के तले जीये हैं। इन सायों के नीचे जिंदगी जीने का हमारा अनुभव और एक आतंकी माहौल से तालमेल बिठाने की जद्दोजहद अपने आप ही हमारी कला में समा गयी है।''

थोडे बड़े और इस समूह में अधिक परिपक्व आवाज बने अहमद मुजामिर कहते हैं, ''हमारे गृह प्रदेश को दो ताकतवर मुल्कों के बीच जंग का मैदान मत बनाइए। हम भी महात्मा गांधी, नेहरू और भगत सिंह को मानने वाले हैं। हम भी उन्हीं की तरह आजादी चाहते हैं। वक्त का फैसला अल्लाह को करने दो। तब तक, हम अपना काम करेंगे।'' घाटी में लगातार बनी अशांति के चलते उनके कालेज बंद हो गया, पढाई ठप हो गयी। मुजामिर कहते हैं, ''हम अपने ही कालेज में बंदी बन गए जो चार महीनों तक बंद रहा। कोई क्लास नहीं, कोई आर्ट का सामान नहीं।''वह बताते हैं, ''पढाई ठप होने के बीच हमने एक 60 फुट ऊंचे चिनार को फेविकोल की मदद से न्यूजपेपरों से कवर कर दिया। उसके बाद हमने पेड़ पर डूडल, पेंटिंग और टैटू बनाने शुरू कर दिए। हमने अशांत माहौल को अपने काम में रूकावट नहीं बनने दिया। इसके उलट हमने अपनी हताशा को अपने काम में ईंधन की तरह इस्तेमाल किया। बतौर एक कलाकार, मैं सही मायने में यह महसूस करता हूं कि हम संघर्ष की संतानें हैं।'' केएमबी 2016 में ये छात्र रचनात्मक अभिव्यक्ति और कलात्मक स्वतंत्रता की दुनिया में एक परिसर से दूसरे परिसर में घूम रहे हैं। इनमें से कई को जिंदगी के अनुभवों ने सख्त कर दिया है। केएमबी के सह संस्थापक और कार्यक्रम निदेशक रियास कोमू कहते हैं, ''छात्रों के लिए यह एक शानदार अनुभव है जहां उन्होंने रचनात्मक संस्कृति और कलात्मक लाइसेंस की रचनाओं को अनुभव किया है जो कोच्चि मुजिरिस बिनाले के चरित्र को बयां करता है। यही भावना स्टूडेंट्स बिनाले में भी समाहित है जो की फाउंडेशन का अधिक व्यापक पहुंच वाली और महत्वपूर्ण पहल है। यह पूरे भारत भर से छात्रों, उनके अभ्यास, प्रोडक्शन और नजरिए को एक साथ लेकर आती है।''

 

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