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पुस्तक गुरु भी, मित्र भी : डॉ. मृदुला सिन्हा

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पटना (बिहार) , 04 Sep 2016

गोवा की राज्यपाल और लेखिका डॉ. मृदुला सिन्हा ने यहां रविवार को कहा कि साहित्य संस्कृति का वाहक है। यदि साहित्य नहीं होता तो बिहार के लोग सीता, भारती, भामती और अहिल्या पर गर्व नहीं करते। बुद्ध, अशोक और चाणक्य जैसी महान विभूतियों की बातें भी गर्व से नहीं कर पाते। पुस्तक गुरु है और मित्र भी। बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में 'पुस्तक चौदस मेला' का उद्घाटन करने के बाद अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पुस्तक पुत्र के समान भी है। गोद में लेकर इसे पढ़ना, फिर पढ़ते-पढ़ते सीने से लगाकर सो जाना कितना सुखकर होता है, यह अनुभव की बात है। डॉ. मृदुला ने कहा, "पुस्तकों का महत्व हमें समझना चाहिए और यह घर-घर पहुंचे, कुछ ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसा एक अभियान चलाया जाना चाहिए।"

उन्होंने कहा कि, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन को एक अभियान आरंभ करना चाहिए, जिससे प्रदेश के प्रत्येक घर में पुस्तकें पहुंचें और सम्मान पाएं। 

डॉ. मृदुला ने कहा कि हिंदी दिवस को 'पुस्तक चौदस' के रूप में मनाने का साहित्य सम्मेलन का यह आह्वान बहुत ही आनंदप्रद है और उन्हें विश्वास है कि सम्मेलन यह कार्य करने में सफल होगा।गोवा की राज्यपाल ने इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार और कथाकार रामनाथ राजेश के कथा-संग्रह 'वाट्स एप' का लोकार्पण भी किया और बिहार की पृष्ठभूमि पर कहानियां लिखने के लिए लेखक को बधाई दी।इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रसिद्ध चिकित्सक और सांसद पद्मश्री डॉ. सी.पी. ठाकुर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए हिंदी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। डॉ. ठाकुर ने कहा, "हमने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई और जीत हिंदी के माध्यम से प्राप्त की। हिंदी के विकास में सबकी भूमिका होनी चाहिए।" 

विश्वविद्यालय सेवा आयोग बिहार के पूर्व अध्यक्ष प्रो. शशि शेखर तिवारी ने कहा कि स्वर्ग में देवी और देवताओं की सभा हुई तो उसकी अध्यक्षता के लिए देवी सरस्वती को चुना गया। उसी भांति वैदुष्य और प्रज्ञा सदैव समाज का मार्ग प्रशस्त करती है। मृदुला जी सरस्वती की भांति संपूर्ण भारत वर्ष और विदेशों में प्रज्ञ-समाज का नेतृत्व कर रही हैं और बिहार का मान बढ़ा रही हैं। उन्होंने कहा कि पुस्तक तो भौतिक वस्तु है, किंतु उसमें लिखा अक्षर होता है, जिसका कभी क्षरण नहीं होता।'वाट्स एप' के लेखक रामनाथ ने कहा, "हम रोज बदल रहे हैं। बदलाव प्रकृति का नियम है। जो इसकी गति के साथ नहीं चलते वे टूट जाते हैं, लेकिन यह परिवर्तन सकारात्मक होना चाहिए।" 

उन्होंने कहा, "हम कई मर्तबा ऐसा पाते हैं कि समाज में कुछ ऐसा हो रहा है जो नहीं होना चाहिए, लेकिन हम प्रतिकार नहीं कर पाते। ऐसे में अपने मनोभाव को व्यक्त करने का बड़ा जरिया लेखन है। रचनात्मक लेखन, जिससे एक परितोष और सांत्वना मिलती है। हम भीड़ में खोते जा रहे हैं। हमें चाहिए कि अपने स्वय से जुड़ें।"अपने अध्यक्षीय उद्गार में सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कहा, "हिंदी दिवस को 'पुस्तक-चौदस' के रूप में मनाने के इस संकल्प और अभियान का उद्देश्य समाज में पुस्तकों के प्रति प्रेम को बढ़ाना है।"इस अवसर पर आयोजन के स्वागताध्यक्ष डॉ. कुमार अरुणोदय, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्रनाथ गुप्त तथा प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। समारोह में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष पं. शिवदत्त मिश्र, बलभद्र कल्याण, डॉ. शांति जैन, डॉ. वासुकीनाथ झा, डॉ. मेहता नगेंद्र सिंह, डॉ. विनय कुमार विष्णुपुरी, शंकर शरण मधुकर, कवि रवि घोष समेत सैकड़ों की संख्या में साहित्यसेवी व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

 

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