सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) - रक्षा मंत्रालय का एक ऐसा महत्वपूर्ण विंग है जो रणनीतिक दृष्टि से अहम राजमार्गों की देखरेख करता है। हिमाचल के बर्फीले पहाड़ों को काटते हुए इसने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। कोरोनावायरस महामारी के बीच हिमस्खलन और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के बावजूद इसने हिमाचल प्रदेश पर्यटन स्थल मनाली को लेह के लद्दाख से निर्धारित समय-सीमा से दो महीने पूर्व ही जोड़ने में कामयाबी हासिल की है। अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि बर्फ हटाने का काम पूरा हो जाने के बाद 28 मार्च को 428 किलोमीटर लंबे इस मनाली-लेह राजमार्ग को मोटर चालकों के लिए फिर से खोल दिया गया। यह राजमार्ग सशस्त्र बलों के आवागमन और उनके लिए सामानों की आपूर्ति की दृष्टि से रणनीतिक महत्व का है। यह लद्दाख क्षेत्र के उन अग्रिम इलाकों को जोड़ता है जो चीन और पाकिस्तान दोनों की सीमाओं से बेहद नजदीक हैं। बीआरओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, "इस बार हमारे पास केवल एक चुनौती थी, यानी कि सर्दियों की बर्फ को साफ करने के बाद बरलाचा दर्रा (16,020 फीट) को आवागमन के योग्य बनाना।" इससे पहले रोहतांग र्दे (13,050 फीट) के रास्ते को आवागमन के लिए सुगम बनाना वाकई एक दुष्कर कार्य था। यहां से लगभग 30 किमी दूर पीर पंजाल रेंज में रोहतांग र्दे के नीचे दुनिया की सबसे लंबी मोटरेबल सुरंग 9.02 किलोमीटर लंबी अटल सुरंग के खुलने के साथ ही यह दर्रा अब लेह के लिए इकलौता वैकल्पिक प्रवेश द्वार है। बीआरओ के चीफ इंजीनियर (प्रोजेक्ट दीपक) ब्रिगेडियर एम.एस. बागी ने मीडिया को बताया कि पिछले नवंबर में बर्फबारी की शुरूआत से ठीक पहले हमने सरचू में बरलाचा र्दे में मशीनरी और राशन का भंडारण कर रखा था। उन्होंने कहा कि फरवरी के दूसरे सप्ताह में बीआरओ के 6 लोगों की टीम ने अपनी जान जोखिम में डालकर बरलाचा र्दे की ट्रेकिंग की थी ताकि जल्द से जल्द इस मार्ग को आवागमन के लिए सुगम किया जा सके। ब्रिगेडियर बागी ने कहा, "वे भारी हिमपात और हिमस्खलन और हिमपात की आशंका वाले खतरे के बावजूद दो प्रयासों के बाद बरलचा र्दे को पार करने में सफल रहे। किलिंग सेराई तक पहुंचने के बाद उन्होंने पास के उत्तरी छोर से बर्फ हटाने का अभियान शुरू किया।"