पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने पंजाब में लगाए कांग्रेस के एसवाईएल नाम के बोए कांटे को हमेशा हमेशा के लिए उखाड़ कर फेंक दिया है। युवा अकाली दल के महासचिव और उपमुख्यमंत्री के ओएसडी परमिंदर सिंह बराड़ ने शुक्रवार को यहां जारी एक बयान में शिरोमणि अकाली दल भाजपा गठबंधन के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि किसानों को उनकी जमीनें लौटाना एक बड़ा कदम है। इस फैसले से न केवल पंजाब के सिर पर लटकती एसवाईएल की तलवार ही निकल गई बल्कि किसानों को खेती के लिए जमीन भी मिल गई। ऐसा फैसला बादल जैसे किसान हितैषी नेता का नेतृत्व और किसान मित्र सरकार ही कर सकती है।कांग्रेस पर एसवाईएल मुद्दे पर पंजाब और पंजाबियों के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए अकाली नेता ने कहा कि सबसे पहले 1976 में कांग्रेस ने पंजाब और हरियाणा के बीच पानी बंटवारे का फरमान जारी किया था। इसके बाद 1981 में इंदिरा गांधी ने जबरदस्ती दरबारा सिंह से पंजाब का पानी लूटने वाले समझौते पर दस्तखत करवाए। वर्ष 1982 में जब इंदिरा गांधी लिंक नहर की नींव खोदने के लिए पंजाब पहुंची तो अमरेंदर सिंह उन्हें चंादी का फावड़ा पेश कर खुदाई का उदघाटन करवाया था।
उन्होंने कहा कि अब कांग्रेसी त्याग पत्र दे कर या राष्ट्रपति से मुलाकात कर एसवाईएल मुद्दे पर पंजाब का पक्ष रखने का नाटक कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिन नेताओं ने खुद नहर की खुदाई करवाने की साजिश रची हो उनके मुंह से पानी की रक्षा की बात जंचती नहीं है।एसवाईएल मुद्दे पर कांग्रेसी नेताओं के विधान सभा से दिए इस्तीफे पर चुटकी लेते हुए बराड़ ने कहा कि पानी के मुद्दे पर कांग्रेसी नेताओं के इस्तीफे की कीमत पुराने पांच सौ रुपये जैसी हो गई है। कल के बादशाह की कीमत आज रद्दी के टुकड़े जैसी होकर रह गई है। यही हाल कांग्रेस का है। उन्होंने कहा कि कांग्रेसी नेताओं की पानी पर जारी बयानबाजी सियासी स्टंट से कम नहीं है। यदि कांग्रेस को पंजाब के हितों की रत्ती भर भी चिंता होती तो वह विधानसभा के विशेष सत्र में अपनी आवाज बुलंद करते। मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। दरअसल कांग्रेस की नीयत पंजाब के हितों की बजाए इस संवेदनशील मुद्दे पर सिर्फ सियासत करने की है।बराड़ ने कहा कि अमरेंदर सिंह के इस्तीफे की कोई बुक्कत नहीं है। उन्होंने 2007 के चुनाव हारने के बाद जो इस्तीफा दिया था वह आज भी ज्यों का त्यों कायम है। महाराजा चुनाव जीतने के बाद ना तो विधानसभा में जाते हैं और ना ही लोक सभा में। ऐसा नेता के इस्तीफे को कोई अहमियत नहीं होती।बराड़ ने कहा कि कांग्रेस एसवाईएल के मुद्दे पर पंजाबियों की पीठ में छुरा भोंक कर अपना असली रंग दिखा चुकी है। इसलिए आज कांग्रेस के पास पानी की रक्षा करने का दावा करने का कोई भी नैतिक अधिकार नहीं है। दूसरी ओर अकाली दल ने ना केवल पंजाब की पानी की रक्षा के लिए ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया बल्कि किसानों को उनकी जमीनें वापस कर किसानों का रक्षक होने का भी सबूत दिया है।