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कुटनीतिक सफलता की मिसाल है प्रतिबंध मुक्त ईरान

राजीव रंजन तिवारी
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5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

18 Jan 2016

ईरान पर से हटाया गया आर्थिक प्रतिबंध ने यह सिद्ध कर दिया कि धैर्यपूर्वक कुटनीतिक कार्य किए जाएं तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। १४ जुलाई, २०१५ को वियना में ईरान और गुट पांच धन एक, जेसीपीओए को अंतिम रूप देने में सफल हुए थे। इस समझौते के तहत ईरान के ख़िलाफ़ पाबंदियां हटने के बदले में ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित किया गया। १६ जनवरी, २०१६ दुनिया के इतिहास में याद किया जाएगा। इसी दिन वियना में इस्लामी गणतंत्र ईरान के परमाणु कार्यक्रम के ख़िलाफ़ लगायी गयी पाबंदियां उठा ली गयी। ईरान पर लगाए गए प्रतिबंध हटाने का फ़ैसला करते हुए अमरीका के विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा कि हम जहां पहुंचे हैं इस पर बहुत सारे लोगों को शक था कि ऐसा कभी हो भी पाएगा या नहीं। ईरान ने अपना वादा पूरा किया है उसके मद्देनज़र अमेरिका और यूरोपियन यूनियन ने उस पर लगे सभी आर्थिक प्रतिबंध हटा दिए हैं। यह ऐसा ऐतिहासिक दिन है जब ईरान ने जो वादे कागज़ पर पूरे किए थे उसे अमली जामा पहना दिया। ईरान की प्रतिबद्धता की अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगायी गयीं पाबंदियां हटाई गईं। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी फ़ेडरिका मोगरिनी ने वियना में १६ जनवरी की रात ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ के साथ संयुक्त प्रेस कान्फ़्रेंस में पाबंदियां हटने का एलान किया। इस दौरान कहा गया कि ईरान ने अपनी प्रतिबद्धताएं पूरी की हैं। इसलिए ईरान के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी बहुपक्षीय एवं राष्ट्रीय आर्थिक व वित्तीय पाबंदियां हटायी जा रही हैं। सभी पक्ष इस बात से आश्वास्त हैं कि यह ऐतिहासिक समझौता सही व मज़बूत है और इससे सभी पक्षों की ज़रूरतें पूरी होती हैं। यह उपलब्धि साफ़ तौर पर यह दर्शाती है कि राजनैतिक इच्छा शक्ति, दृढ़ता और बहुपक्षीय कूटनीति के ज़रिए हम सबसे मुश्किल मुद्दों को हल कर सकते हैं।

ईरान पर से प्रतिबंध हटने का सबसे बड़ा सकारात्मक असर भारत पर होगा। भारत का ईरान से कच्चे तेल का आयात बढ़ेगा। भारत की मैंगलोर रिफ़ाइनरी ईरान से आने वाले तेल के परिशोधन करने के लिए ख़ास तौर पर डिज़ाइन की गई थी। सबसे पहले मैंगलौर रिफ़ाइनरी को तेल मिलने लगेगा। भारत अब ईरान से अधिक तेल और गैस आयात करना चाहेगा। ईरान में एक रुके हुए बड़े गैस प्लांट को लेने की भी पेशकश भारत ने की है। इस प्लांट पर पहले एक जर्मन कंपनी काम कर रही थी। इस योजना में भारत अरबों डॉलर के निवेश का इच्छुक है। इस दिशा में भी काम आगे बढ़ सकेगा। भारत ने ईरान में कई तेल भंडार भी लिए हुए हैं। इस दिशा में भी समझौते हो सकेंगे। ईरान की सरकार ने नया निवेश आमंत्रित किया है। भारत अब इसमें भी शामिल हो सकेगा। ईरान भारत के लिए एक बड़ा बाज़ार भी साबित होगा। ख़ासकर सूचना प्रौद्योगिकी और तेल परिशोधन के क्षेत्र में भारत के पास अच्छे अवसर होंगे। वहां का रिफ़ाइनरी इंफ्रास्ट्रक्चर काफ़ी पुराना है और उसके आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। भारतीय कंपनियां इस दिशा में भी आगे आ सकती हैं। ईरान भारत के लिए अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया के रास्ते भी खोलता है। दरअसल, ईरान के परमाणु मामले को सुरक्षा के विषय से निकालने के बाद ईरान के परमाणु अधिकार को सुनिश्चित बनाते हुए इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ अमानवीय प्रतिबंधों को हटाया गया। अब विश्व अर्थव्यवस्था से ईरान की अर्थव्यवस्था जुड़ जाएगी। इससे ईरान के दोस्त तो ख़ुश हैं ही, प्रतिस्पर्धियों को भी चिंता घटी है। इरान ने स्पष्ट कहा कि हम किसी भी राष्ट्र व सरकार के लिए ख़तरा नहीं हैं। ईरान की संप्रभुता की रक्षा के लिए पूरी तरह तैयार रहने के साथ ही यह समझौता पूरी दुनिया में शांति, स्थिरता और सुरक्षा के संदेशवाहक हैं। दुनिया के कई बड़े नेताओं ने इसे कूटनीति की ऐतिहासिक सफलता की संज्ञा दी है। 

ईरान की प्रतिबद्धताओं की पुष्टि किए जाने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने वियना में कहा कि ईरान के परमाणु समझौते के काग़ज़ पर महत्वकांक्षी वचनों से निकल कर व्यवहारिक चरण में दाख़िल होने के लमहे काफी संतोषजनक हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने भी जेसीपीओए के लागू होने की सराहना की। आईएईए के महानिदेशक यूकिया अमानो ने कहा कि ईरान और आईएईए के बीच संबंध, नए चरण में दाख़िल हो गए हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए अहम दिन है। हम उन सभी को बधाई देते हैं जिन्होंने इसे व्यवहारिक बनाने में मदद की। ब्रितानी विदेश मंत्री फ़िलिप हैमन्ड ने कहा कि वर्षों के धैर्य और निरंतर कूटनीति तथा कठिन तकनीकी काम का नतीजा सामने आया जैसा कि अब हम इस समझौते को लागू कर रहे हैं। फ़्रांसीसी विदेश मंत्री लॉरेन फ़ैबियस ने कहा कि यह शांति और सुरक्षा को लागू करने की दिशा में एक अहम क़दम है। दूसरी ओर लगभग २०० से ज़्यादा परमाणु वारहेड्स से संपन्न इस्राईल के प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने ईरान के ख़िलाफ़ तेलअबिब के निराधार दावों को दोहराते हुए कहा कि परमाणु समझौते पर दस्तख़त के बाद भी ईरान ने परमाणु हथियार हासिल करने की महत्वकांक्षा नहीं छोड़ी है। वहीं ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा कि हमने वो कर दिखाया जिसका हमने वादा किया था। जबसे हमने संधि पर हस्ताक्षर किए तभी से हमने इस पर बहुत मेहनत की और आपसी प्रतिबद्धताओं व सामूहिक इच्छा के बल पर परिणाम हासिल किया। उस संधि पर हस्ताक्षर के लगभग छह महीने बाद आईएईए ने भी ये माना है कि हमने अपना वादा निभाया है। प्रतिबंध हटने के बाद दुनिया भर के बैंकों में रखे अपने अरबों डॉलर को ईरान दोबारा हासिल कर सकेगा जो कि प्रतिबंध लगने के बाद उन बैंकों ने फ़्रीज़ कर लिए थे। इसके अलावा ईरान अपने तेल को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बेच सकेगा। 

वहीं दूसरी तरफ़ रिपब्लिकन हाउस स्पीकर पॉल रायन ने प्रतिबंध हटाने के फ़ैसले की निंदा की है। उन्होंने कहा कि अब ईरान को बतौर मदद जो एक अरब डॉलर की राशि मिलेगी उसका इस्तेमाल वो चरमपंथ को बढ़ावा देने में करेगा। इसराइल ने भी ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटाने के फ़ैसले का विरोध किया है। यह भी उल्लेखनीय है कि ईरान और अमेरिका के बीच ६० वर्षों से भी ज़्यादा वक़्त से एक पेचीदा संबंध क़ायम था। ईरान और अमरीका के बीच तल्ख़ रिश्तों की शुरुआत उस वक़्त हुई थी, जब १९५३ में ईरान के लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मुसद्दिक़ का अमेरिका और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने एक योजना के तहत तख़्तापलट कर दिया था। अमेरिका समर्थित ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी को १६ जनवरी, १९७९ को धर्मनिरपेक्ष और धार्मिक विपक्ष के महीनों तक विरोध करने के बाद देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। १९७९ के नवंबर में दोनों देशों के बीच रिश्ते उस वक़्त बदतर हो गए जब चरमपंथी ईरानी छात्रों ने तेहरान में मौजूद अमेरिकी दूतावास पर हमला कर दर्जनों कर्मियों को बंधक बना लिया। ३ जुलाई, १९८८ को अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस विंसेनेस ने एक ईरानी यात्री जेट विमान को मार गिराया। इस विमान पर सवार सभी २९० लोग मारे गए। साल २००२ में राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इराक़ और उत्तर कोरिया के साथ ईरान को भी 'बुराई की धुरी' कहकर उसकी निंदा की। वर्ष २०१० में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में अपने भाषण के दौरान ईरानी राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने दावा किया कि ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि ९/११ के हमले के पीछे अमेरिकी सरकार का हाथ था। २०१३ में ईरान के राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के कुछ ही हफ़्तों के बाद हसन रुहानी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से फ़ोन पर बात की। यह तीस वर्षों में अमरीका और ईरान के शीर्ष नेताओं में पहली बातचीत थी। 

कई वर्षों तक तक चली बातचीत के बाद २०१५ में ईरान अपनी परमाणु गतिविधियों को सीमित करने को लेकर दुनिया के ताक़तवर देशों के साथ एक समझौते पर पहुंचा। इसके बदले में ईरान को मिलने वाली अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मदद को बढ़ाने पर सहमति बनी। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी चाहते थे कि ईरान अपनी संवेदनशील परमाणु गतिविधियों को सीमित करें। जबकि ईरान का कहना था कि परमाणु ऊर्जा रखना उसका हक़ था और इस पर ज़ोर दिया कि उसके परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही था। बहरहाल, ईरान पर से हटा प्रतिबंध संतोषजनक है। इससे भारत समेत दुनिया के कई देशों को लाभ मिल सकता है।

 

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