युवा वर्ग को नशों की बीमारी से बचाने के लिये सबसे पहले परिवार, फिर समाज और फिर सरकार को अपनी-अपनी जिम्मेदारी दृढ़ता से निभानी होगी। अभिभावकों को अपने घरों में नशा मुक्त माहौल बनाकर बच्चों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बतीत करना होगा। संगत से लेकर उनके हाव-भाव एवं व्यवहार पर पैनी नजर रखनी होगी। यदि कोई जानकार या पड़ोसी बच्चे के बारे में कुछ अप्रिय जानकारी देता है तो उसे सकारात्मक रवैये और गंभीरता से लेना होगा। पुराने वक्त की तरह फिर से सामाजिक चौकीदारा बहाल करना होगा। क्योंकि पंजाब को नशा मुक्त बनाने में सामाज के मोहतबर लोग एवं समाज सेवी संगठन सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। बशर्ते परिवार और सरकार उन्हें बनता सम्मान दें।
सोमवार यहां वन भवन में नशों के खिलाफ जोशी फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक गोलमेज कांफ्रेंस के दौरान यह बात उबर कर आई। इस कांफ्रेंस में भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य सभा सदस्य अविनाश राय खन्ना, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की सदस्य और महिला आयोग पंजाब की चेयरपर्सन बीबी परमजीत कौर लांडरां और जोशी फाउंडेशन के चेयरमैन एवं पंजाब सरकार के सहायक मीडिया सलाहकार विनीत जोशी समेत दो दर्जन से ज्यादा नामचीन हस्तियों ने हिस्सा लिया। इस कांफ्रेंस का संयोजन करते हुये अनिनाश राय खन्ना ने कहा कि पंजाब, देश और पूरी दुनिया में नशा आज एक बड़ी चुनौती का रूप धारण कर गया है। इसके लिये परिवार, समाज और सरकारों को यदि बराबर जिम्मेदार माना जा रहा है तो यदि परिवार, समाज और सरकार एकजुट होकर अपनी-अपनी बनती जिम्मेदारी निभाना शुरू कर देगी तो इस चुनौती का नामों-निशां मिटाया जा सकता है। अकेले कानून का डंडा कुछ नहीं कर सकता। इसके लिये व्यापक स्तर पर जागृति अभियानों की जरूरत है। जिसके तहत युवा वर्ग, अभिभावक और समाजिक नेतृत्व को जागुरूक करने की जरूरत है। जोशी फाउंडेशन इसी मिशन पर लगी हुई है।कांफ्रेंस का आगाज करते हुये विनीत जोशी ने कहा कि इस समय पंजाब में नशे की गिरफ्त में आये युवकों की गिनती को लेकर बहस चल रही है। एक पक्ष कह रहा है युवा वर्ग में बड़े पैमाने पर नशा फैल चुका है तो दूसरा इसे पंजाब को बदनाम करने की साजिश करार दे रहा है।
जबकि अधिकृत और विश्वासनीय आंकड़ा दोनों के पास नहीं हैं, क्योंकि अधिकृत तौर पर नशों पर अभी धरातल स्तर तक कोई विस्तृत स्टडी नहीं हो सकी। असलियत यह है कि नशा न केवल पंजाब बल्कि चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उपतर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, केरल और उत्तरी-पश्चिमी राज्यों समेत पूरे देश की समस्या है, फर्क केवल इतना है कि पंजाब में नशे की समस्या एक ज्वंलित मुद्दे का रूप ले चुकी है। इस लिये इस समस्या से मुनकर होने की बजाए इसके समाधान पर केंद्रित होने की जरूरत है। कारणों के साथ-साथ हर छोटे-बड़े समाधानों के संबंधी समाज को जागुरूक करने की जरूरत है। जोशी फाउंडेशन इस श्रृंखला में चंडीगढ़, पठानकोट, नवांशहर, अमृतसर, होशियारपुर, बटाला, लुधियाना, जैतों, जीरा समेत विभिन्न जगहों पर अपने कार्यक्रम कर चुकी है और करीब ढाई दर्जन शहरों में इस तरह के और कार्यक्रम पंजाब में करने जा रही है। जिसमें अविनाश राय खन्ना के साथ केंद्र राज्य मंत्री एवं होशियारपुर से सांसद विजय सांपला ब्रांड एम्बेस्डर के तौर पर जुटे हुये हैं। लेकिन यह लड़ाई अकेले जोशी फाउंडेशन या खन्ना-सांपला की नहीं बल्कि पूरे समाज और पंजाब की लड़ाई है। जिसमें युवा वर्ग से भी ज्यादा समाज के समझदार एवं सतर्क लोगों को अग्रणी भूमिका निभानी होगी। जोशी ने आगे कहा कि जो बच्चे नशों का शिकार हो चुके हैं उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिये उनके साथ एक मरीज जैसी हमदर्दी वाला व्यवहार होना चाहिये न कि एक अपराधी और नसेड़ी जैसा, क्योंकि वह नसेड़ी नहीं बल्कि नशों की बीमारी का मरीज बन जाता है।
बीबी परमजीत कौर लांडरां ने सनसनीखेज खुलासा करते हुये बताया कि महिला आयोग के पास आने वाले 80 प्रतिशत केसों की असली जड़ पति द्वारा नशों का इस्तेमाल करना निकलता है। उन्होंने संयुक्त परिवारों के बिखरने और बच्चों के समाज एवं आसपास के कटने को इस बीमारी का एक अन्य प्रमुख कारण कहा। इसके साथ ही उन्होंने शहरों में पीजी कल्चर को युवा वर्ग के लिये बेहद घातक बताते हुये कहा कि न केवल लड़के और लड़कियां भी नशों की गिरफ्त में आ रही हैं। उन्होंने इस तरह के जागुरूक अभियानों में पीडि़त परिवारों के सदस्यों एवं पीडि़त बच्चों को मोटिवेट करने की सलाह दी।
गे्रसियन अस्पताल मोहाली के मालिक डा. शिवप्रीत समरा ने बताया कि नशों की बीमारी का पंजाब अकेला शिकार नहीं। लेकिन जो लोग तगड़े मन एवं इरादों वाले होते हैं उनके लिये नशा छोडऩा मुश्किल नहीं हैं। लेकिन उन्हें परिवार और समाज का सहयोग चाहिये होता है। रयात एंड बाहरा ग्रुप ऑफ कॉलेजिज के चेयरमैन गुरविंदर सिंह बाहरा ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि बच्चों के नशों आदि का शिकार होने के पीछे सबसे ज्यादा उनके परिवार और माता-पिता की कमजोर भूमिका रहती है। वह अपने बच्चों के लिये समय नहीं निकालते लेकिन उन्हें जरूरत से ज्यादा पैसा देते हैं। पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग में नहीं आते। बच्चों को कॉलेज के हॉस्टलों में रखने की बजाए पीजी में रखते हैं। बाहरा ने पीजी प्रणाली को बच्चों और शिक्षा दोनों के लिये घातक बताया। जबकि डा. बी एस चंडोक ने भी अभिभावकों को ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों के साथ गुजारने पर बल देते हुये पीजी कल्चर से दूर रखने की नसीहत दी। उन्होंने राज्य में प्राईवेट नशा मुक्ति केंद्रों को बंद करवाकर इनकी जगह सरकारी नशा मुक्ति केंद्रों पर जोर दिया।
दोआबा गु्रप ऑफ कालेजिज के उपचेयरमैन और प्राईवेट टेक्नीकल कॉलेज पर आधारित संगठन पुटिया के पदाधिकारी मनजीत सिंह ने कहा इस समय पुटिया से संबंधित चार लाख विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। जिन्हें इस तरीके से जागुरूक किया जाना वक्त की जरूरत है। उद्योगपति डा. अशोक गुप्ता ने कहा कि बच्चों को भावनात्मक तौर पर मजबूत बनाए जाने की जरूरत हैं। आज केवल बच्चे के आई-क्यू पर ही जोर दिया जाता है जबकि ई-क्यू (इम्मोशनल कोएशन) आई-क्यू से कहीं ज्यादा अहमियत रखता है। उन्होंने बेरोजगारी को भी एक बड़ा कारण बताते हुये ग्रामीण स्तर पर औद्योगिक विकास पर जोर दिया और सरकारों का इस तरफ ध्यान मांगा।सिलवर ओक अस्तपाल के डा. अखिल ने परिवार को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराते हुये एसी उदाहरणें पेश की जिसमें पांच साल का बच्चा भी शराब के नशे का शिकार हो गया था। जिसका उन्होंने खुद उपचार किया। जबकि सेवानिवृत एसपी परमजीत सिंह बल्ल ने बेरोजगारी को नशो का कारण बताते हुये ग्राम स्तर से लेकर शहर तक रोजगार के व्यापक अवसरों पर जोर दिया। जबकि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के पूर्व अधिकारी रणबीर सिंह योगी ने कहा कि जागुरूकता ओर प्रोत्साहन के साथ लोगों का मन बदलने से समाज को नशों से मुक्त किया जा सकता है।
81 बार खून दान कर चुके समाजसेवी एसएस वालिया ने ज्यादातर जिम्मीदार परिवारों पर जमीन बेचकर अपने बच्चों को बिगाडऩे का आरोप लगाते हुये शहरों में पीजी कल्चर को नशों की नर्सरी कहा। उन्होंने अभिभावकों को अपने लड़के-लड़कियों को पीजी की बजाये कॉलेज-यूनिवर्सिटियों के हॉस्टलों में ही डाले जाने की सलाह दी। गुरदीप सिंह अटवाल ने समाज में आई मानसिक गिरावट को नशों का एक कारण बताते हुये बच्चों में योग्य एवं मेडिटेशन आदि को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इंजीनियर एनडी अरोड़ा ने परिवार की भूमिका सबसे अहम करार देते हुये शराब छोडऩे के लिये सौंफ-ज्वाइन का एक देसी नुख्सा दिया। इस मौके दवा बेचने वाले केमिस्टों पर भी और सख्ती की बात बार-बार उबरी।इनके अलावा हरजीत सिंह भुल्लर, आरबी सिंह, शमिंदर सिंह, कर्म सिंह मावी, सुखदीप सिंह, सुरजीत सिंह कलकत्ता, आरपी मल्होत्रा, बच्चितर सिंह, पीपीएस बजाज, परमजीत सिंह, हरदेव सिंह जटाना, रेशम सिंह, परमिंदर सिंह, हरवंत सिंह वैदवान, मोहिंदर सिंह ढिल्लों, बलविंदर सिंह, मनजोत सिंह व अन्य समाजिक हस्तियों ने भी अपने-अपने विचार रखे और जोशी फाउंडेशन के इस मिशन की सराहना की।