''मोहब्बत का मतलब मुझे तब पता चला जब सेब 4 थे और हम 5.. तो मां ने कहा- मुझे सेब पसंद नहीं।'' ऐसी होती है मां। कोख में 9 महीनें पालने वाली मां, पाल पोस कर बड़ा करने वाली मां के लिए ना जानें लोगों के घर के कमरे छोटे क्यों पड़ जाते हैं। शादी के बाद बीवी घर आती है और इंसान 2-4 साल के प्यार को मां के प्यार से तौलना शुरू कर देता है। मां की आंखों के चश्में बनाने के लिए पैसे नहीं और पत्नी के पास सैंडलों की भरमार है। मां ने खाना खाया या नहीं ये पता नहीं लेकिन पत्नी को अपने हाथ से खाना खिलाना है। ये आज लगभग हर तीसरे घर की कहानी है। देश की सबसे बड़ी अदालत ने आज अपनी सुनवाई में बड़ी अच्छी बात कही.. मां का ख्याल रखने को बड़े घर की नहीं, बड़े दिल की जरूरत होती है। एक बुजुर्ग महिला की बेटे द्वारा सेवा न किए जाने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज यह यह टिप्पणी की।
बुजुर्ग महिला की बेटियों ने अदालत में अर्जी दाखिल कर कहा था कि उनका भाई मां का ख्याल नहीं रख रहा है, ऐसे में उन्हें उनकी कस्टडी देनी चाहिए। बेटियों का कहना था कि उनके भाई ने मां की बड़ी संपत्ति अपने नाम करा ली है, लेकिन अब उनकी देखभाल नहीं कर रहा है। इस पर अदालत ने आदेश दिया है कि अब महिला की कोई भी चल या अचल संपत्ति ट्रांसफर नहीं हो पाएगी। इसके अलावा उसने मां की कस्टडी बेटियों को सौंपने को लेकर बेटे से मंगलवार तक जवाब मांगा है। मां डिमेंशिया से पीड़ित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डिमेंशिया किसी एक बीमारी का नाम नहीं है बल्कि ये एक लक्षणों के समूह का नाम है, जो दिमाग की हानि से सम्बंधित हैं। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि बेटियां अपनी मां की जिम्मेदारी ले सकती हैं। बेटा भी अपनी मां से मुलाकात कर सकता है। इस बात पर बेटे की तरफ से दलील देते हुए वकील ने कहा कि पुष्पा और गायत्री अपने परिवार के साथ रहती हैं और बेटियों के पास मां को रखने लिए जगह नहीं है।
इस पर कोर्ट ने कहा, सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना बड़ा एरिया है, बल्कि यह है कि आपके पास अपनी मां की देखभाल करने के लिए कितना बड़ा दिल है।इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि महिला की कोई भी संपत्ति अब ट्रांसफर नहीं हो पाएगी। साथ ही अदालत ने मां की कस्टडी, बेटियों को देने के सवाल पर, बेटे से मंगलवार तक जवाब मांगा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 89 वर्षीय मां वैदेही सिंह की लोकेशन का पता बताने के लिए कोर्ट ने बेटे को नोटिस जारी किया था। इस पर उसने बताया कि वह बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित अपने घर पर मां को ले गया था। उसके बाद अदालत ने आदेश दिया था कि महिला की बेटियों को उनसे मिलने दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणा उन सभी बेटों के लिए नजीर है जो अपनी मां को घर से निकाल देते हैं। घर में रखते भी है तो देखभाल ठीक से नहीं करते। क्योंकि जिंदगी में इंसान हर चीज हासिल कर सकता है लेकिन वो एक मां का मोल कभी नहीं चुका सकता। एक मां अपनी औलाद के लिए जो कुछ भी करती है उसका कर्ज कभी औलाद उतार नहीं सकती।