लोकसभा चुनाव आते ही सियासी दलों का मिजाज भी बदलता नजर आ रहा है। बड़े-बड़े नेताओं के दर्शन पहले जहां दुर्लभ होते थे, अब न सिर्फ वो अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध हैं, बल्कि मीडिया के सामने भी अपनी शांत और स्वच्छ छवि पेश करने में जुटे हैं, ताकि जनता के सामने उसका सबसे ज्यादा बेहतर और बड़ा रहनुमा होने की तस्वीर पेश की जा सके। चुनावी फिजा में नेताओं के जुबान की मुलामियत और मिठास से जनता को पांच साल बाद ही सही खुद के आम नहीं, बल्कि बेहद खास होने का एहसास हो रहा है। बड़े से बड़ा और रसूखदार नेता जहां अपनी लग्जरी गाड़ियों के काफिले से उतर उसकी चैखट पर आकर हाथ जोड़ता है और उन्हें चाचा, ताऊ या चाची कहकर संबोधित करता है तो कुछ पल के लिए ही सही लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र जरूर नजर आता है।
अपने सख्त मिजाज के लिए मशहूर कुछ प्रमुख सियासी हस्तियों की बात करें तो इसमें बसपा मुखिया मायावती सबसे अव्वल हैं। मायावती चाहे सत्ता में हों या विपक्ष में, अपने सख्त अंदाज को नहीं छोड़तीं। खासतौर से अपने विरोधी सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव पर तो उनका अंदाज कभी मुलामियत वाला नहीं रहा। हालांकि चुनावी बयार आते-आते मायावती भी अपने अंदाज में तल्खी कम करती नजर आ रही हैं। विरोधियों पर तो उनके पुराने तेवर बरकरार हैं, लेकिन जनता और मीडिया पर उनका अंदाज जरूर बदला हुआ है। कुछ इसी अंदाज में मायावती के खास सिपहसालार नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी फतेहपुर में अपने बेटे अफजल को चुनाव जीतने के लिए हाथ जोड़ते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस के तीखे अंदाजों वाले नेता बेनी प्रसाद वर्मा भी अब अपने ऊल-जुलूल बयान से परहेज कर रहे हैं, ताकि जनता के बीच अपनी विवादित छवि को बेहतर बना सकें। अपनी फायर ब्रांड छवि और धार्मिक भाषणों के लिए कभी मशहूर रहे भाजपा के वरुण गांधी भी इस बार विवादित मुद्दों से परहेज कर रहे हैं और खुद को सिर्फ विकास के जड़े मुद्दों से जोड़ रहे हैं। कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल भी अब नरेंद्र मोदी और दूसरे विरोधियों को कोसते-कोसते शायद थक चुके हैं, इसलिए वह भी संप्रग सरकार की उपलब्धियों को जनता के सामने सधे हुए अंदाज में पेश कर रहे हैं। पदयात्राओं के जरिये मुस्कराते हुए नेता के रूप में लोगों से मिल रहे है। हालांकि अपवाद के तौर पर सियासी दलों की इस फेहरिश्त में कुछ ऐसे नेता भी हैं, जो जनता से लेकर विरोधियों के बीच अपनी खुशमिजाज छवि के लिए मशहूर है। फिर चाहे वक्त चुनाव का हो या फिर बाकी दिन।
उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार के मुखिया अखिलेश यादव इन्हीं में से एक हैं। सपा और बसपा की तीखीं तकरार भले ही जनता के बीच हमेशा से सुर्खियां बनती हों, लेकिन बसपा के कई नेता भी अखिलेश के मिजाज के कायल हैं। खुद स्वामी प्रसाद मौर्य भी अखिलेश की इस बारे में तारीफ कर चुके हैं। युवा नेताओं की भीड़ में अखिलेश अपने इस अंदाज के कारण खासे चर्चित हैं। यहां तक कि मीडिया भी उनकी इस बारे में तारीफ करने से नहीं पीछे हटता। हालांकि अखिलेश का यही मिजाज कई बार उन बार भारी भी पड़ चुका है।ज्यादा दिन नहीं हुए जब खुद उनके पिता और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एक कार्यक्रम में उनके इस मिाज की आलोचना करते हुए उन्हें चाटुकारों से दूर रहने और सख्त होने की नसीहत दे डाली थी। हालांकि ये बात अलग है कि खुद मुलायम सिंह भी अपने 'मुलायम' रवैये के कारण मशहूर हैं। कुछ एक मौकों को छोड़ दें तो मुलायम विरोधियों पर हमला करते वक्त भी सामान्य शिष्टाचार का पालन करते ही नजर आए हैं। पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिए हर भाषण में मुलायम उन्हें उत्तेजित नहीं होने और सत्ता के मद में चूर नहीं होने की सलाह देते नजर आते हैं।कुल मिलाकर लोकसभा के महाकुंभ में डुबकी लगाने से पहले सभी दलों के सियासी दलों के नेता अपनी मीठी जुबान और शांत मिजाज से आचमन करते नजर आ रहे हैं, जिससे चुनाव के दौरान विवाद से दूर-दूर तक उनका नाता न रहे और वह खुद को पूरी तरह शुद्ध बताकर वोटों क अंकगणित अपने पक्ष में कर सकें।