वातावरण प्रदूषण से होने वाले नुकसान प्रति जागरूक पटियाला जिले के गांव माजरी अकालियां के किसान स. करनैल सिंह माजरी और उनके सुपुत्र स. जगतार सिंह बॉबी की तरफ से अपनी 80 एकड़ जमीन में बिना आग लगाए सफलतापूर्वक खेती करके दूसरे किसानों के लिए भी रोशनी की किरन बनने का काम किया जा रहा है। अपनी सफल कृषि बारे जानकारी देते प्रगतिशील किसान स. जगतार सिंह बॉबी ने बताया की उन्होंने अपनी 80 एकड़ जमीन में पिछले तीन सालों से आग नहीं लगायी जिसके चलते जहां खेत की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि हुई है वहीं उपज बढ़ने से आमदन भी बढ़ी है।प्रगतिशील किसान स. करनैल सिंह माजरी ने बताया की वह अपनी 80 एकड़ जमीन में धान के बाद 50 एकड़ में गेहूं और 25 एकड़ में पहले आलू और फिर मक्की की काश्त करते हैं और कुछ जमीन में पशुआंे के लिए हरा- चारा बीजा जाता है। उन्होंने बताया की जिस जमीन में आलू लगाए जाते हैं वहां धान की पराली के गट्ठे बनाए जाते हैं और जहां गेहूं की बिजाई की जाती है वहां हैपी सीडर की मदद से पराली को खेतों में ही बाह दिया जाता है। खेत में पराली बाहने से अगले सीजन में धान में यूरिया खाद का प्रयोग बहुत कम होता है।
प्रगतिशील किसान जगतार सिंह बॉबी ने हैपी सीडर से गेहूं की बिजाई बारे जानकारी देते हुए बताया की हैपी सीडर वातावरण सहयोगी तकनीक होने के साथ- साथ इसके और भी कई लाभ हैं जिसमें प्रमुख तौर पर इस के प्रयोग से जहां गेहूं की बिजाई एक बार में ही हो जाती है वहीं समय की बहुत बचत होती है। हैपी सीडर से बिजी गेहूं को आग लगाकर बीजी गए खेत वाली गेहूं की अपेक्षा एक पानी कम लगता है वहीं एक एकड़ जो पहले 5 घंटो में पानी के साथ भरता था अब हैपी सीडर के साथ बिजाई के बाद वह खेत साढ़े तीन घंटो में भर जाता है।किसान जगतार सिंह बॉबी ने बताया की हैपी सीडर से बिजी गई गेहूं का एक बड़ा लाभ यह भी है की इससे बिजी गेहूं पकते समय चलने वाली हवा के साथ गिरती नहीं और जिससे उपज में भी वृद्धि होती है।उन्होंने बताया की खेतों को कई सालों से आग ना लगाने से जमीन की उर्वरा शक्ति में वृद्धि हुई है और हैपी सीडर से बिजी गेहूं में घास फूस की भी कमी आई है। इस तकनीक के साथ बिजी गेहूं का झाड़ भी अधिक होता है। करनैल सिंह और स. जगतार सिंह बॉबी ने अन्य किसानों से भी अपील करते हुए कहा की खेती के लिए आधुनिक मशीनरी का प्रयोग करके हम सभी को वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है। आधुनिक मशीनरी से जहां पैसे और समय की बचत होगी वहें ही जमीन की उपजाऊ शक्ति में भी वृद्धि होगी।