चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में आज सात देशों के वैज्ञानिकों की प्रतिभागिता से गेहूं पर अन्तराष्ट्रीय समूह बैठक प्रारम्भ हुई। उद्घाटन अवसर पर मुख्य अतिथि जाने-माने वैज्ञानिक भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के पूर्व महानिदेशक व पूर्व योजना आयोग के सदस्य पदम भूषण प्रो. वी.एल. चोपड़ा ने कहा कि जलवायु पारंगत प्रयासों द्वारा गेहूं के उत्पादन में वृद्धि लाना समय की मांग है तथा एक विचारणीय विषय है। उन्होंने कहा कि गेहूं के उत्पादन में ठहराव आ चुका है और इस स्तर को उपर ले जाना वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है। उन्होंने सुझाव दिया कि इस विषय पर शोध के लिए अन्तराष्ट्रीय सहयोग लिया जाना चाहिए क्योंकि गेहूं पर शोध कार्य करने वाले वैज्ञानिक सभी सुविधाओं से सुसज्जित हैं। मुख्य अतिथि ने कहा कि अब समय आ गया है कि समय की जरूरत व मौसमी बदलाव को देखते हुए गेहूं पर शोध कार्य किए जाएं क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण इसके उत्पादन में नई वैश्विक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय शुष्क क्षेत्र कृषि केंद्र (ईकारडा), मोरक्को में जैव विविधता व फसल सुधार ईकाई के निदेशक डा. माईकल बाॅन ने इस अवसर पर गेहूं प्रजनन व कृषि में उन्नति पर विस्तार से जानकारियां दी और कहा कि भारत कृषि शोध में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर गेहूं पर एक कार्यक्रम संचालित किया जा रहा ताकि अनाधिकृत प्रतिलिपिकरण से बचा जा सके। डा. बान ने वर्षाश्रित खेती तथा पीला रतुआ पर शोध कार्य करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकारी सहायता आवश्यक है और पूरे विश्व में यह जरूरत महसूस की जाती है।
मेजवान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने कहा कि गेहूं उत्पादक देशों में भारत दूसरे स्थान पर आता है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के 65 प्रतिशत खेती योग्य भूमि में गेहूं का उत्पादन होता है। उन्होंने कहा कि बीज प्रजनन के लिए हिमाचल अत्यन्त अनुकूल है क्योंकि यहां वर्ष में दो फसलें ली जाती हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि गेहूं पर यह अन्तर्राष्ट्रीय समूह बैठक सभी के लिए लाभकारी होगी विशेषकर स्नातकोतर विद्यार्थियों के लिए क्योंकि वे विश्व के बड़े-बड़े वैज्ञानिकों से चर्चा कर सकेंगे और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में कमी लाने तथा गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने के लिए शोध कार्यों पर भली-भान्ति कार्य कर सकेंगे।भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् के करनाल स्थित भारतीय गेहूं व जौ अनुसन्धान संस्थान के निदेशक डा. जी.पी. सिंह ने इस अवसर पर कहा कि अब से पहले गेहूं की उत्पादकता बढ़ाने पर भरपूर कार्य हो चुके हैं और अब गेहूं की उपज के मूल्य सम्बर्द्धन पर ध्यान दिया जाना चाहिए तथा इस प्रमुख फसल को नई-नई बिमारियों से बचाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के डीन डा. पी.के. मेहता, आयोजक सचिव डा. सिन्द्धू सरीन तथा स्थानीय आयोजक सचिव डा. एच.के. चैधरी ने भी अन्तराष्ट्रीय समूह बैठक पर विस्तार से जानकारियां दीं और कहा कि यू.के., ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा, मैक्सिको, जाॅर्डन, मोरक्को तथा भारत के 200 जाने-माने वैज्ञानिक इस बैठक में भाग ले रहे हैं। मुख्य अतिथि ने इस अवसर पर कुछ प्रकाशनों का भी विमोचन किया।