शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के विधायकों को विधानसभा छोडऩे से पहले अपने फैसले पर पुर्नविचार करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि कांग्रेसी विधायकों का इस्तीफा अभी भी स्पीकर के पास लंबित पड़ा है। विधायकों को पंजाब के हितों को देखते हुए अगले सप्ताह होने वाले आपातकालीन सत्र में भाग लेना चाहिए।शनिवार को यहां जारी एक बयान में दल के वरिष्ठ नेता रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने कहा कि कांग्रेसी विधायकों को अमरेंदर के बहकावे में न आकर अपने विवेक से काम लेना चाहिए। अमरेंदर कांग्रेसी विधायकों के बूते पंजाब के हितों की रक्षा करने की बजाए राज्य में अशांति फैलाना चाहते हैं।उन्होंने कहा कि वर्ष 2004 में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट अधिनियम बिल पारित किए जाने को लेकर शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब के हितों को सर्वोपरि मानते हुए कांग्रेस सरकार का समर्थन किया था। जबकि कांग्रेसी पंजाब पर आए इस गंभीर संकट में उल्टा रवैया अख्तियार कर अपनी मातृभूमि और कर्मभूमि के प्रति अपराध कर रहे हैं।
शिरोमणि अकाली दल की तरह कांग्रेस को भी सरकार का साथ देने के लिए इस सत्र में भाग लेना चाहिए और इस स्थिति से निबटने के लिए अपने विचार रखने चाहिए।ब्रह्मपुरा ने कहा कि विधानसभा में चुनाव लडऩे के इच्छुक अमरेंदर का दिल लोकसभा में कभी नहीं लगा। जबकि उन के साथी सांसद रवनीत सिंह बिट्टु, संतोख चौधरी और राज्य सभा सांसद अंबिका सोनी, शमशेर सिंह दूलों और प्रताप सिंह बाजवा अभी भी वहीं जमे हुए हैं।ब्रह्मपुरा ने कहा कि अमरेंदर का दावा है कि सभी पार्टी सांसदों ने इस मुद्दे पर त्यागपत्र देने की पेशकश की थी। मगर उन्होंने ही अपने सांसदों को संसद में रह कर एसवाईएएल मुद्दे पर संर्घष करने की सलाह दी। लेकिन यह बात पूरी तरह से बेमानी भी है और अविवेकपूर्ण भी। अगर अमरेंदर वास्तव में पार्टी के जरिए इस जंग को लडऩा चाहते थे तो साथियों का नेतृत्व करके उन्होंने संसद में रह कर यह लड़ाई खुद क्यों नहीं लड़ी। अगर वह इतने ही दमदार होते तो घर में बैठने की बजाए संसद में इस लड़ाई को लड़ते।