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ब्रिटेन में मुस्लिम महिलाओं के अंग्रेजी सीखने की अनिवार्यता पर सवालये सशक्तिकरण है या भाषा थोपने का प्रयास?

(आशा त्रिपाठी)
आशा त्रिपाठी
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5 Dariya News (आशा त्रिपाठी)

19 Jan 2016

ब्रिटेन में मुस्लिम महिलाओं को अंग्रेजी भाषा सीखना अनिवार्य है। इसके लिए वहां की सरकार तीन करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करेगी। यह सुनने में तो बहुत अच्छा लग रहा है कि क्योंकि ज्ञान कभी भी बुरा नहीं होता। यदि मुस्लिम महिलाएं अंग्रेजी सीख जाती हैं और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने लगती हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है। निश्चित रूप से कुछ अज्ञानी मुस्लिम महिलाओं के लिए इसे सशक्तिकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना जाएगा। साथ ही जिन वजहों से अंग्रेजी सीखने की बाध्यता कायम की जा रही है, वह ब्रिटेन की सरकार की मंशा पर संदेह पैदा कर रहा है। यदि उस संदेह का गहन आकलन करें तो इसे मुस्लिम महिलाओं पर जबरन भाषा थोपने का प्रयास भी कहा जा सकता है। यहां यही सवाल काबिल-ए-गौर है कि डेविड कैमरन की सरकार मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रयास कर रही है या उन पर जबरन अंग्रेजी भाषा थोपने की कोशिश? यदि मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण के उद्देश्य से उन्हें अंग्रेजी सीखाने की कोशिश है तब तो बेशक इसकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम होगी। लेकिन वहीं यदि इसे कुछ प्रतिशत अनपढ़ मुस्लिम महिलाओं को अंग्रेजी सीखने के लिए जबरन विवश किया जाता है तो इस अभियान की नकारात्मकता ही परिलक्षित होगी। क्योंकि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पिछले दिनों कहा कि ब्रिटेन में रह रहीं विदेशी मुस्लिम महिलाएं अगर अच्छी अंग्रेजी सीखने में नाकाम रहती हैं, तो उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ सकता है। कैमरन के अनुसार, कमजोर अंग्रेजी भाषा के चलते लोगों के इस्लामिक स्टेट (आईएस) के संदेशों से आसानी से प्रभावित होने की आशंका रहती है। उनके अनुसार, यह नियम उन माताओं पर भी लागू हो सकता है जो यहां आकर बसीं हैं और अब उनकी संतानें हो चुकी हैं। 

ब्रिटिश पीएम के मुताबिक अंग्रेजी सीखने की कोशिश करने वाली मुस्लिम महिलाओं को ढाई साल बाद एक टेस्ट से गुजरना होगा जो उनकी अंग्रेजी की परख करेगा कि उनमें कितना सुधार हुआ है। सरकारी आंकड़ों के एक अनुमान के मुताबिक 1,90,000 मुस्लिम महिलाएं इंग्लैंड में रह रही हैं। उनमें करीब 22 प्रतिशत यानी लगभग चालीस हजार ऐसी हैं, जिन्हें बहुत कम अंग्रेजी आती है या बिल्कुल अंग्रेजी आती ही नहीं। एक सरकारी आकलन के मुताबिक 53 मिलियन आबादी वाले ब्रिटेन में करीब 2.7 मिलियन आबादी मुस्लिम समुदाय की है। एक साक्षात्कार में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने मुस्लिम महिलाओं को अंग्रेजी सिखाने पर 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च करने की भी घोषणा की है। ब्रिटेन की नागरिकता नियम के अनुसार, विदेश से जाकर वहां बसने वाले लोगों की संतानों को भी ब्रिटेन की नागरिकता मिल जाती है। उसे वहां रहने की इजाजत होती है, लेकिन अपने पिता के साथ। माताओं पर यह नियम लागू नहीं होता। कहा गया है कि जो मुस्लिम महिलाएं स्थायी रूप से ब्रिटेन में बसना चाहती है, उन्हें ब्रिटिश पासपोर्ट की अर्हता प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी में धाराप्रवाह हो जाना चाहिए। ब्रिटेन में अलग-अलग समुदायों की 'निष्क्रिय सहिष्णुता' एक मजबूत समाज के निर्माण में मदद करेगी। सरकार मानती है कि लैंगिक अलगाव व भेदभाव और समाज से कुछ महिलाओं के कटे रहने से कट्टरता और उग्रवाद में बढ़ोतरी होगी। इसीलिए ब्रिटिश सरकार का मानना है कि उसका लक्ष्य मुस्लिम महिलाओं का सशक्तीकरण करना और उनके अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को बढ़ाना है। इससे ब्रिटेन के समाज को एकजुट रखते हुए एक मजबूत समाज का निर्माण कर सकते हैं। मुस्लिम महिलाओं के लिए प्रस्तावित अंग्रेजी की कक्षाएं उनके घरों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थानों पर लगाई जाएंगी। ब्रिटेन के नए वीजा नियमों के मुताबिक जीवनसाथी वीजा पर ब्रिटेन आने वाली महिलाओं को अंग्रेजी में धाराप्रवाह होना ही होगा।

जानकार बताते हैं कि ब्रिटेन में भारतीयों की संख्या अधिक है। यही वजह है कि लंदन में हर आठ-दस क़दम पर अपने जैसे चेहरे दिखाई देते हैं। कहीं स्टेशन पर टिकट काटते तो कहीं बस-ट्रेन चलाते, कहीं पुलिस की वर्दी में तो कहीं कॉलेजों के कैम्पस में, कहीं दुकानों पर यानी करीब-करीब हर तरफ अपने जैसे चेहरे। कुछ इलाके तो ऐसे भी हैं, जहां लगता है कि हम भारत में ही हैं और वहां के मूल निवासी अग्रेज यानी गोरे विदेशी लगते हैं। इसका वजह ये है कि लंदन में आबादी में गोरे अंग्रेज़ों का हिस्सा घटकर आधे से भी कम हो गया है। यूं कहें कि पहली बार सब मिलाकर दूसरे देशों के लोग यहां बहुसंख्यक हो गए हैं जिनमें भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश-श्रीलंका जैसे देशों के लोग क्रमशः सबसे ज़्यादा हैं। ब्रिटेन में जनगणना करने वाले विभाग ऑफ़िस फ़ॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स के वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार ब्रिटेन की जनसंख्या करीब 6 करोड़ 32 लाख है। इसके अनुसार लंदन में गोरे अंग्रेज़ों की आबादी घटकर 45% रह गई है, जो दस साल पहले 58% हुआ करती थी। यानी अभी लंदन में 55% लोग विदेशों के या विदेशी मूल के हैं जो एशियाई, यूरोप के दूसरे देशों, कैरीबियाई देशों और अन्य देशों के हैं। सबसे बड़ी संख्या एशियाई लोगों की है जिनमें भारतीय सबसे अधिक हैं। वैसे लंदन के बाहर, पूरे ब्रिटेन में अभी भी गोरे अंग्रेज़ ही बहुसंख्यक हैं। हालाँकि आबादी में उनका अनुपात दस साल में घटा है। 2001 में ये 87 फ़ीसदी था, अभी करीब 78 फ़ीसदी रह गया है। ब्रिटेन के जनसंख्या अनुपात में पिछले 10 वर्षों में आए बदलाव के लिए मुख्य कारण आप्रवासियों का ब्रिटेन आना बताया जाता है। ब्रिटेन के मुख्य प्रांतों इंग्लैंड और वेल्स में हर आठवाँ व्यक्ति विदेशी है।

ब्रिटेन में आप्रवासियों में सबसे अधिक भारत से जुड़े लोग हैं। यानी ऐसे लोग जो या तो ब्रिटेन की नागरिकता प्राप्त भारतीय हैं, या यहां रह रहे भारतीय। पिछले करीब दस-पंद्रह वर्षों में ब्रिटेन की आबादी में भारतीय और भारतीय मूल के लोगों का हिस्सा ढाई से बढ़कर करीब तीन प्रतिशत हो गया है। इस हिसाब से ब्रिटेन में भारतीय और भारतीय मूल के लोगों की संख्या लगभग 18  लाख होती है। इनमें से 8 लाख, यानी लगभग आधे ऐसे भारतीय हैं जिनका जन्म ब्रिटेन से बाहर हुआ और जो अब ब्रिटेन में रह रहे हैं। ब्रिटेन में हिन्दुस्तानियों की संख्या बढ़ने  के तीन कारण हैं। पहला ये कि शुरू-शुरू में भारत से लोगों को काम के लिए यहाँ बुलाया गया जिसे बाद में बंद कर दिया गया। दूसरा ये कि अफ़्रीकी देशों की आज़ादी के बाद वहाँ से भारतीय ब्रिटेन आकर बसे व तीसरा ये कि ग्लोबलाइजेशन के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने काम के लिए भारत से पेशेवर लोगों को ब्रिटेन लाना शुरू किया। यह दिलचस्प है कि ब्रिटेन में रह रहे भारतीयों की संख्या चीनी व अमेरिकी की तुलना में चार गुना अधिक है। भारत के बाद पोलैंड के (8.88 लाख), पाकिस्तािन के (5.15 लाख), आयरिश के (3.78 लाख), जर्मनी के (2.97 लाख) और बांग्लांदेश के (2.28 लाख) निवासी रहते हैं। दक्षिण अफ्रीकी मूल के 2.2 लाख, अमेरिका के 1.97 लाख, चीन के 1.91 लाख और नाइजीरिया के 1.85 लाख लोग ब्रिटेन में रहते हैं। ताजे आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटिश समाज में भारतीयों की संख्या बढ़ रही है। ब्रिटेन के लिए भारत के महत्व का पता इसी बात से चलता है कि वर्ष 2010 में पीएम बनने के बाद डेविड कैमरन तीन बार भारत आए। 

बहरहाल, इन आंकड़ों को दर्शाने का तात्पर्य यह था कि पता चले किस देश के लिए ब्रिटेन में ज्यादा रहते हैं। आंकड़ों से स्पष्ट हो गया कि भारतीय मूल के लोग ही वहां अधिक संख्या में हैं। स्वाभाविक है, भारतीय मुसलमान भी वहां अधिक होंगे और भारतीय मुस्लिम महिलाएं भी। इस हालात में अंग्रेजी भाषा को लेकर ब्रिटेन में जो फरमान जारी किया गया है, उस पर भारत सरकार को भी सोचने की जरूरत है। यह सही है, साक्षर होना चाहिए, किन्तु साक्षर न होने पर ‘देश निकाला’ जैसी सजा मिलने लगे, यह भी तो ठीक नहीं है। यूं कहें भाषा थोपने के प्रयास में कड़े कानून बनाने की जगह थोड़ी ढील भी दी जानी चाहिए।

 

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