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राष्ट्रध्वज तिरंगा पर बखेड़ा के औचित्य का सवाल

राजीव रंजन तिवारी
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5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

13 Jan 2016

आरएसएस के संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने देशभर के मदरसों को गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराने को कहा है। संगठन ने दारूल उलूम देवबंद और नदवा को लिखे पत्र में मदरसों में तिरंगा फहराने का अनुरोध किया है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के उत्तर प्रदेश के संयोजक मोरध्वज सिंह ने कहा कि पूरे देश में तिरंगा फहराने का अभियान चलाया जाएगा। इस पर पलटवार करते हुए देवबंद ने भी पूछा कि क्या संघ अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराएगा। दरअसल, राष्ट्रीय ध्वज किसी भी देश की पहचान होता है। उसे देश के प्रमुख मौकों पर सार्वजनिक रूप से फहराकर खुशियां मनाई जाती है। जिसमें स्वतंत्र दिवस और गणतंत्र दिवस प्रमुख है। इस बार २६ जनवरी (गणतंत्र दिवस) को संघ ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया कि गणतंत्र दिवस के मौके पर सभी मदरसे तिरंगे को फहराएं। लेकिन लोगों को नसीहत देना वाला संगठन खुद अपने कार्यलयों में औऱ कार्यक्रमों में तिरंगे को नहीं फहराता। आरोप तो यह भी है आजादी के दौरान संघ ने तिरंगे का अपने पैरों से रौंदकर काफी अपमान किया था।  संघ और उसके कार्यकर्ता यह बताना चाह रहे हैं कि संघ के कार्यक्रमों में राष्ट्रीय ध्वज फैलाया जाता रहा है। उन्हें यह बताने की जरूरत सोशल मीडिया पर उस हंगामे के बाद पड़ी  जिसमें संघ द्वारा तिरंगा झंडा फैलाने बात उठी थी। संघ समर्थकों ने बाकायदा यह बताया कि किस तरह से संघ प्रमुखों ने तिरंगा फहराया। गौरतलब है कि कुछ दिन पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा मदरसों पर राष्ट्रीय झंडा फैलाने संबंधी आदेश पर सोशल मीडिया पर मुस्लिम समाज और प्रगतिशील खेमे का जो गुस्सा फूटा, उसका निशाना संघ पर था। उन्होंने सीधे-सीधे कहा था कि संघ को भी तिरंगा फहराना चाहिए। इसके जवाब में संघ ने बाकायदा बताया कि किस तरह से संघ प्रमुखों ने राष्ट्रीय ध्वज फैलाया। वर्ष २००२ में संघ ने यह घोषणा की थी कि उसकी तमाम शाखाओं में राष्ट्रीय झंडा फैलाया जाएगा। उस समय संघ के राष्ट्रीय कार्य़कारी सदस्य के.सूर्यानारानण ने इसकी घोषणा की थी। इस बारे संघ समर्थक बताते हैं कि किस तरह से नागपुर में २०१४ में संघ सरचालक मोहन भागवत ने संघ मुख्यालय पर झंडा फैलाया था। इसी तरह यह बताने की कोशिश हो रही है कि संघ का तिरंगा प्रेम पुराना है।

जानकार बताते हैं कि संघ के निर्देश पर पलटवार देवबंद ने पूछा है कि क्या संघ नागपुर के अपने मुख्यालय पर तिरंगा फहराता है? देवबंद के प्रेस सचिव मौलाना अशरफ उस्मानी ने कहा है कि संघ को किसी ने यह हक नहीं दिया कि वह मदरसों को ऐसी नसीहत दे। स्वतंत्रता संग्राम में मदरसों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। स्वतंत्रता दिवस पर देवबंद ने ही सभी मदरसों को नसीहत दी थी कि तिरंगा फहराएं। तब अशरफ उस्मानी ने कहा था कि ये हमारा मुल्क है, हमारी जमीन, हमारी जगह है। हम अपने वतन से प्यार करते हैं और इसे लेकर हर तरह के भ्रम को दूर कर देना चाहते हैं। हम जश्न-ए-आजादी में शरीक हैं।ज् देवबंद की सामाजिक सभा च्जमीयत उलेमा ए हिंदज् से जुड़े कई मदरसे तिरंगा फहराते है और १५ अगस्त व २६ जनवरी को छुट्टी भी रखते हैं। जबकि संघ खुद सिर्फ एक रंग के झंडे को मानता है और उसी की वंदना करता है। संघ के स्वयंसेवक अपने सभी कार्यक्रमों में सिर्फ अपने झंडे के सामने सिर झुकाते हैं। यदि संघ ऐसी नसीहत देता है तो पहले नागपुर मुख्यालय में तिरंगा फहराए। बताते हैं कि कुछ साल पहले कुछ कांग्रेसी तिरंगा लेकर आरएसएस के नागपुर मुख्यालय पर फहराने निकले थे। उन कांग्रेसियों को रास्ते में रोककर उन पर लाठियां बरसाई गयी थी। सवाल ये है कि उस वक़्त बीजेपी जो महाराष्ट्र में अपनी सरकार का इस्तेमाल करके तिरंगा फहराने जा  रहे कांग्रेसियों को पिटवाया था। जब उमा भारती ने २००४ हुबली में झंडा फहराने के लिए यात्रा की थी तो इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने एक लेख में सवाल किया था कि बीजेपी क्यों इतनी ज्यादा राष्ट्रप्रेम की बात करती है। शायद इसलिए कि बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस ने आज़ादी की लड़ाई में कभी हिस्सा नहीं लिया था। १९३० और १९४० के दशक में जब आज़ादी की लड़ाई पूरे उफान पर थी तो आरएसएस उसमें शामिल नहीं हुआ था। यहाँ तक कि जहां भी तिरंगा फहराया गया आरएसएस वालों ने कभी उसे सैल्यूट तक नहीं किया। ३० जनवरी १९४८ को महात्मा गाँधी की हत्या के बाद खबरें आई थीं कि संघ के लोग तिरंगे झंडे को पैरों से रौंद रहे थे। 

आज़ादी के संग्राम में शामिल लोगों को संघ की इस हरकत से तकलीफ हुई थी। उनमें जवाहरलाल नेहरू भी एक थे। २४ फरवरी १९४८ को उन्होंने अपने एक भाषण में अपनी पीड़ा को व्यक्त किया था। उन्होंने कहा कि आरएसएस के सदस्य तिरंगे का अपमान कर रहे हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान करके वे अपने को देशद्रोही साबित कर रहे हैं। तिरंगे झंडे की बात सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मसुलीपट्टम के कांग्रेसी कार्यकर्ता पिंगली वेंकैया के दिमाग में उपजी थी। १९१८ और १९२१ के बीच हर कांग्रेस अधिवेशन में वे राष्ट्रीय झंडे को फहराने की बात करते थे। महात्मा गाँधी को यह विचार तो ठीक लगता था लेकिन उन्होंने वेंकैया की डिजाइन में कुछ परिवर्तन सुझाए। यह आकलन है कि जब पिंगली वेंकैया ने ये तिरंगा डिज़ाइन किया तो उन्होंने नारंगी पट्टी यह सोचकर ड्राइंग बोर्ड पर बिछाई होगी कि भारत का हर व्यक्ति अपने ज़मीर का जवाबदेह होते हुए बहादुरी के साथ हर तरह की क़ुर्बानी के लिए तैयार होगा। उन्होंने नारंगी पट्टी के साथ सफ़ेद पट्टी जोड़ी। उनका ख़्याल था कि सफ़ेद रंग सच्चाई और पवित्रता की निशानी है। पर उन्हें क्या मालूम था कि इस सफ़ेद पट्टी की छाँव में इतना झूठ फैलाया जाएगा कि वो सच लगने लगेगा। फिर उन्होंने उस सफ़ेद पट्टी में २४ डंडों वाला नीला अशोक चक्र ये समझकर लगाया होगा कि हर व्यक्ति २४ घंटे ईमानदारी के साथ अपना काम निपटाकर खुद को और देश को आगे बढ़ाएगा। पर उन्हें क्या पता था कि उनके बाद के लोग इस अशोक चक्र को घनचक्र के तौर पर चलाएंगे। फिर वैंकया ने हरी पट्टी यह सोचकर जोड़ी होगी कि सब इस तिरंगे के साए में फले फूलेंगे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि इस तिरंगे के साए में सिर्फ़ ताक़तवर फलेंगे और कमज़ोर सिर्फ़ फूलेंगे। इसी तरह सीमा पार अमीरूद्दीन क़िदवई ने जब पाकिस्तान का परचम डिज़ाइन किया होगा तो वेंकैया की तरह क़िदवई के भी बड़े पवित्र ख़्यालात रहे होंगे। जैसे ये कि इस झंडे में अस्सी फ़ीसदी रंग हरा होना चाहिए जिससे ये मालूम हो कि इस मुल्क में बहुसंख्या मुसलमानों की है। 

यह सर्वविदित है कि संघ ने १८५७ में शुरू हुई आजादी की पहली लड़ाई से लेकर १९४७ तक नब्बे सालों तक चले राष्ट्रीय आंदोलन को, उसके नेतृत्व को, उसकी विचारधारा को और उस आधार पर बने देश के संविधान को कभी स्वीकार नहीं किया। १९८० से भाजपा के रूप में राजनीति करने वाले संघ की क्या विचारधारा को जानना जरूरी है।  संघ जिन्हें अपना पुरखा मानता है और स्वयंसेवक जिनके मानस पुत्र हैं, वे हैं विनायक दामोदर सावरकर व संघ के दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर। सावरकर और जिन्ना के विचारों में समानता है। दोनों दो-राष्ट्रवाद के सिद्धांत को मानते थे और दोनों का कहना था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं। इसके अलावा, हिटलर और गोलवलकर के विचारों में समानता है और अगर यह कहा जाए कि गोलवलकर हिटलर की विचारधारा से प्रभावित थे तो गलत न होगा। गुरुजी की एक किताब है च्वी आर आवर नेशनहुड डिफाइंडज्। १९४७ में प्रकाशित इस किताब के चतुर्थ संस्करण में गुरुजी लिखते हैं, च्हिंदुस्तान के सभी गैर-हिंदुओं को हिंदू संस्कृति और भाषा अपनानी होगी, हिंदू धर्म का आदर करना होगा और हिंदू जाति या संस्कृति के गौरव गान के अलावा कोई विचार अपने मन में नहीं रखना होगा।ज् इसी किताब के पृष्ठ ४२ पर वे लिखते हैं कि च्जर्मनी ने जाति और संस्कृति की विशुद्धता बनाए रखने के लिए सेमेटिक यहूदी जाति का सफाया कर पूरी दुनिया को स्तंभित कर दिया था। इससे जातीय गौरव के चरम रूप की झांकी मिलती है।ज् वे लिखते हैं कि ये जितने इज्म हैं यानी सेक्युलरिज्म, डेमोक्रेसी, सोशलिज्म, कम्युनिज्म, ये सब विदेशी धारणाएं हैं। इनका त्यागना चाहिए। बहरहाल, स्थितियां अनुकूल नहीं हैं। देखना है कि ये संघ पर अब नया क्या करते हैं।

 

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