दर्शन व संस्कृति स्कूल (एसओपीसी) के सहयोग से भारतीय परिषद परिषद (आईसीएचआर), नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित ‘आदि शंकराचार्य के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव:एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य’ पर एक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (एसओपीसी ) एसएमवीडी विश्वविद्यालय में शुरू हुई। उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि अध्यक्ष, जम्मू-कश्मीर विधान सभा प्रोफेसर निर्मल सिंह थे। भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, डॉ सिंह ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शंकरचार्य की प्रासंगिकता की व्याख्या की। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत और वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला। सत्र के अध्यक्ष एसएमवीडी विश्वविद्यालय के उप कुलपति डॉ संजीव जैन ने समकालीन दुनिया में वैदिक अध्ययन के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रमुख भाशणों में, प्रोफेसर रजनीश कुमार शुक्ला, सदस्य सचिव आईसीएचआर और डॉ बलमुकुंड पांडे, आयोजन सचिव अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना ने भारतीय इतिहास को नष्ट करने और निश्कर्षों को प्रमाणित करने की आवश्यकता पर बल दिया। प्रोफेसर अरविंद पी जमखेड़ेकर, अध्यक्ष आईसीएचआर पश्चिम ने इम्मानुएल कांत के साथ शंकरचार्य की प्रतिष्ठा को समझाया। उद्घाटन सत्र में प्रोफेसर बैद्यनाथ लाथ, कला के डीन संकाय, जम्मू विश्वविद्यालय और संगोष्ठी के अकादमिक सलाहकार भी उपस्थित थे। डॉ अनिल के तिवारी, प्रमुख एसओपीसी ने आयोजकों और प्रतिभागियों का आभार जताया। इस संगोष्ठी में, पूरे देश के प्रतिभागी आने वाले दिनों में आदि शंकराचार्य के दार्शनिक निश्कर्षों के अनुरूप सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करेंगे और चर्चा करेंगे। संगोश्ठी का वैदिक सत्र 02 जून 2018 के शाम सत्र में निर्धारित है।