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बिहार : सियासी यात्राओं के जरिए जनता की नब्ज टटोलने की कवायद

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पटना (बिहार) , 11 Feb 2018

लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा में अभी एक साल से ज्यादा का समय है, लेकिन राजनीतिक दलों ने अभी से ही आगामी चुनावों में अपनी-अपनी नैया पार लगाने के लिए यात्राओं का सहारा लेना शुरू कर दिया है। वैसे, बिहार में इन सियासी यात्राओं का दौर कोई नया नहीं है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की 'विकास योजनाओं की समीक्षा यात्रा' जहां अब अंतिम दौर में है, तो वहीं बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद प्रमुख लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभालने के प्रयास में जुटे तेजस्वी यादव शनिवार से 'संविधान बचाओ न्याय यात्रा' के जरिए अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने के प्रयास में जुट गए हैं। बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष कौकब कादरी भी एक यात्रा पर निकलने की योजना बनाई है। मुख्यमंत्री अपनी 'समीक्षा यात्रा' के दौरान जहां विकास कार्यो को सरजमीं पर देखने के बहाने लोगों से मिल रहे हैं, वहीं राज्य में चल रही विकास योजनाओं की अधिकरियों के साथ बैठक कर समीक्षा भी कर रहे हैं। अपनी यात्रा के दौरान सभी नेता बिहार के सभी जिलों में पहुंचने की कोशिश करते हैं। 

तेजस्वी ने शनिवार से कटिहार से अपनी न्याय यात्रा की शुरुआत की है। अपने यात्रा के पहले चरण में तेजस्वी सीमांचल के कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया जाएंगे जहां वे जनसभा को संबोधित करेंगे। उल्लेखनीय है कि तेजस्वी इसके पूर्व भी 'जनादेश अपमान यात्रा' कर चुके हैं। राजद उपाध्यक्ष शिवानंद तिवारी का कहना है कि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का हक है। बिहार और देश में आज जो स्थिति बनी हुई है, उसे लेकर तेजस्वी भी संविधान बचाओ न्याय यात्रा के जरिए लोगों के बीच गए हैं। उन्होंने कहा कि इस यात्रा का मकसद बिहार में प्रतिदिन हो रहे घोटालों से लोगों को परिचित कराना है साथ ही केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किए गए कार्यो की वास्तविकता से लोगों को जानकारी देना है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यात्रा कोई नई बात नहीं है। वे सरकार में रहें या न रहें, हमेशा सियासी यात्राओं का सहारा लेते रहे हैं। यात्राओं के मामले में नीतीश अन्य नेताओं से आगे हैं। नीतीश ने पहली यात्रा 'न्याय यात्रा' के रूप में साल 2005 में की थी, जब बिहार के तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह ने विधानसभा भंग कर राज्य में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की थी। इसके बाद समय-समय पर नीतीश विकास यात्रा, धन्यवाद यात्रा, सेवा यात्रा, अधिकार यात्रा, प्रवास यात्रा, समीक्षा यात्रा सहित कई यात्रा कर चुके हैं।

राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद दत्त इन नेताओं के सियासी यात्राओं को दूसरे तरीके से देखते हैं। वे कहते हैं, "नेताओं के लिए अब यह यात्रा मजबूरी बन गई है। पहले पटना के गांधी मैदान में रैली करने के बाद लोग अपने आप चले आते थे, लेकिन अब पैसा खर्च करने के बाद भी लोग नहीं पहुंचते। ऐसे में जनसंपर्क के लिए नेताओं को खुद यात्रा पर निकलना पड़ रहा है।" उनका कहना है कि तेजस्वी भी अपनी स्वीकार्यता देखने के लिए न्याय यात्रा के बहाने लोगों के बीच पहुंचे हैं। दत्त का मानना है कि सभी दल अभी से 'चुनावी मोड' में हैं, इस कारण यात्राएं प्रारंभ हो गई हैं। जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि नीतीश अपने राजनीतिक जीवन में प्रारंभ से ही यात्राओं के दौरान लोगों के बीच जाते रहे हैं। वह कहते हैं कि नीतीश की यात्राओं का मुख्य उद्देश्य सरकार द्वारा किए गए कार्यो को लोगों के बीच बताना और सरजमीं पर उसकी हकीकत जानना है। बहरहाल, बिहार में नेताओं की इन यात्राओं के जरिए सियासी पारा गर्म हो गया है। अब देखना है कि इन सियासी यात्राओं का लाभ किस सियासी दल को अधिक मिल पाता है। 

 

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