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नकदी की तंगी से जूझते आंध्र को मिली नई राजधानी

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विजयवाड़ा , 29 Dec 2016

आंध्र प्रदेश के लिए दो हिस्सों में विभाजित होने के बाद की चुनौतियों के बीच 2016 एक महत्वपूर्ण साल रहा। इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती प्रशासन को विजयवाड़ा के पास बन रही नई राजधानी अमरावती में स्थानांतरित करना रहा। आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम-2014 के तहत हालांकि हैदराबाद को 10 सालों के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों की राजधानी घोषित किया गया था, लेकिन आंध्र प्रदेश ने तीसरे साल में ही अपने प्रशासन को नई जगह स्थानांतरित कर लिया।आंध्र प्रदेश के लगभग सभी विभाग वेलागापुड़ी गांव में निर्मित अंतरिम सरकारी परिसर (आईजीसी) में स्थानांतरित हो चुके हैं। हजारों कर्मचारियों के लिए हैदराबाद को छोड़कर बुनियादी सुविधाओं से मरहूम एक सुदूर और निर्जन स्थान पर स्थानांतरित होना आसान नहीं था।मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने भी अपने नए आईजीसी कार्यालय से कार्य संचालन शुरू कर दिया है।अविभाजित आंध्र प्रदेश के सबसे लंबे समय (1995-2004) तक मुख्यमंत्री रहे नायडू ने नम आंखों से शहर छोड़ दिया। राज्य विधानसभा के अंतिम सत्र में शामिल होने के बाद उनकी भावनाएं साफ दिखाई दे रही थीं।आईजीसी के पास नया विधान परिसर बनने वाला है और राजधानी में स्थायी सरकारी परिसर की आधारशिला भी रखी जा चुकी है।सचिवालय को स्थानांतरित करके सरकार को केवल बेहतर प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने में ही नहीं, बल्कि राजधानी के विकास में लॉन्च पैड के तौर पर इस्तेमाल करने में भी मदद मिलेगी।

नकदी की कमी से जूझ रहे राज्य की राजधानी को विकसित करने की योजना को विश्व बैंक, हुडको और आंध्र बैंक द्वारा 17,500 करोड़ रुपए मंजूर किए जाने से बल मिला। राज्य की अगले चार सालों में राजधानी के बुनियादी ढांचे पर 32,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है।राज्य की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही है। 2016-17 की पहली छमाही में राज्य का राजस्व घाटा 6,641 करोड़ रुपये था, जबकि पूरे साल के लिए इसके 4,868 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया गया था।मुख्यमंत्री ने खुद भी स्वीकार किया है कि राज्य के पास अपने कर्मचारियों का वेतन देने के पैसे भी नहीं हैं। उस पर नोटबंदी ने राज्य के राजस्व को और नुकसान पहुंचाया है।भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के सहयोगी नायडू ने पहले नोटबंदी का श्रेय लिया था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे लागू किए जाने के तरीके को लेकर सार्वजनिक तौर पर नाखुशी भी जाहिर की।

हालांकि, राज्य को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब केंद्र ने राज्य को विशेष दर्जा देने से इनकार कर दिया, जैसा कि 2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में घोषित किया था। विडंबना यह है कि भाजपा ने 2014 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान जीतने पर राज्य को 10 साल के लिए विशेष दर्जा देने का वादा किया था। बाद में ये चुनावी वादे भी 'जुमले' साबित हो रहे हैं।केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस पर सफाई देते हुए कहा है कि इस घोषणा पर इसलिए अमल नहीं किया जा सकता, क्योंकि 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक, विशेष दर्जा केवल पर्वतीय राज्यों और पूर्वोत्तर राज्यों को ही दिया जा सकता है।जेटली ने इसके स्थान पर बाह्य-संपोषित परियोजनाओं के जरिए समान वित्तीय सहायता देने का वादा किया।केंद्र से पड़ोसी राज्यों के बराबर पहुंचने तक आंध्र प्रदेश का हाथ थामे रहने की मांग करने वाले नायडू के लिए यह एक करारा झटका था। लेकिन कोई विकल्प न देख, तेदेपा प्रमुख ने बिना किसी विरोध के ही यह मांग छोड़ दी। 

हालांकि, वह 16,000 करोड़ रुपये की लागत वाली पोलावरम सिंचाई परियोजना का जिम्मा राज्य को दिए जाने पर संतुष्ट हो गए, जिसका पूरा खर्च केंद्र उठाएगा। उम्मीद है कि यह परियोजना राज्य की जीवन रेखा होगी।भाजपा के इस वादे से पलटने के बीच तेदेपा-भाजपा गठबंधन के सहयोगी और लोकप्रिय अभिनेता पवन कल्याण ने तेलुगू लोगों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाने को लेकर नायडू की निंदा की थी। उन्होंने साथ ही 2019 लोकसभा चुनाव में अकेले उतरने का इरादा भी जाहिए किया।नायडू को इन राजनीतिक चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ेगा, लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह राज्य की अर्थव्यवस्था को कैसे पटरी पर लाते हैं और स्थानातंरण के बाद नई राजधानी को कैसे संभालते हैं।

 

Tags: Demonetisation

 

 

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