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मौतें जो भारत को रुला गईं

सिंहावलोकन-2016

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5 Dariya News

नई दिल्ली , 25 Dec 2016

यह ऐसा साल रहा, जिसमें भारत को लगभग सभी क्षेत्र से प्रमुख हस्तियों को खोना पड़ा। राजनीति को तो खासकर जबर्दस्त झटका लगा है। बहुत सारे राजनेता अपने अनुयायियों की बड़ी संख्या को रोते हुए छोड़ गए। गत पांच दिसंबर को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन से लोगों को जितना ज्यादा दुख हुआ, उतना किसी की मौत से नहीं हुआ। इसे राज्य से सिनेमा के प्रभाव वाली राजनीति और भारत की एक सर्वाधिक करिश्माई नेता के युग के अंत के रूप में देखा गया। आम्मा के चले जाने के बाद लाखों लोग सड़कों पर उतर आए, बहुतों को रोते-बिलखते देखा गया। यह भी एक संयोग ही है कि एक सम्मानित पत्रकार और अभिनेता चो रामास्वामी का अगले ही दिन चेन्नई स्थित उसी अस्पताल में निधन हो गया। वह जयललिता के साथ कई फिल्मों में काम भी कर चुके थे। उन्हें सलाह-मशविरा भी देते थे।

इस साल की शुरुआत जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन से हुई थी। सईद भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी गठबंधन सरकार के प्रमुख थे। उनके बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने राज्य की कमान संभाली। सिर्फ एक माह बाद ही देश ने दो पूर्व लोकसभा अध्यक्ष खो दिए। पहले बलराम जाखड़ तीन फरवरी को और दूसरे पूर्णो अगितोक संगमा पांच फरवरी को। दोनों कांग्रेस के थे। संगमा ने बाद में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल की होने का मुद्दा उठाकर पार्टी छोड़ दी थी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे।अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल ने जुलाई में सत्ता से हटने के बाद लगातार कई घटनाओं को लेकर 9 अगस्त को आत्महत्या कर ली। दो प्रमुख नगा अलगाववादी नेताओं में एक आइजक शिषि स्वू की लंबी बीमारी के बाद 28 जून को मौत हो गई। 

निराकारी पंथ के नेता बाबा हरदेव सिंह का 13 मई को विदेश में एक कार दुर्घटना में निधन हो गया। उनके लाखों अनुयायी शोक मना रहे हैं।भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कृष्णा राव का 30 जनवरी को निधन हो गया। इससे पहले 4 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया का भी निधन हो गया। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ' ब्रायन के पिता और भारत के पहले क्विज मास्टर नील ओ' ब्रायन 24 जून को रुखसत हो गए। हीरो समूह के सह-संस्थापक सत्यानंद मुंजाल ने 14 अप्रैल को अंतिम सांसें ली थीं। अयोध्या बाबरी ढांचा विध्वंस के सबसे बुजुर्ग वादी हाशिम अंसारी की 20 जुलाई को अयोध्या में ही मौत हो गई। जानीमानी कूटनीतिज्ञ अरुं धति घोष जो कभी जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रही थीं। उन्होंने 25 जुलाई को आखिरी सांस ली। 

टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक दिलीप पडगांवकर का 25 नवंबर को निधन हो गया। मलयालय के प्रमुख कार्टूनिस्ट और कवि ओ.एन.वी. कुरुप इससे पहले 13 फरवरी को परलोक सिधार गए। प्रख्यात लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता महाश्वेता देवी का 28 जुलाई को निधन हो गया। कला और संगीत क्षेत्र में इस वर्ष ने कई प्रमुख हस्तियों को खोया है। इनमें प्रख्यात नृत्यांगना और कोरियोग्राफर मृणालिनी साराभाई का निधन 21 जनवरी को हो गया। कर्नाटक संगीत के एम. बालमुरली कृष्ण का 22 नवंबर को और पेंटर हैदर रजा का 23 जुलाई को निधन हो गया। 22 अप्रैल को शायर मलिकजादा मंजूर अहमद का 87 वर्ष की अवस्था में लखनऊ में इंतकाल हो गया। खेल की दुनिया में हॉकी के स्टार खिलाड़ी रहे मोहम्मद शाहिद भी 20 जुलाई को हमें छोड़ गए। 

 

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