मध्य प्रदेश में निवेश को बढ़ावा देने के लिए चल रही कोशिशों के बीच एसोसिएटेड चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्टीज ऑफ इंडिया (एसोचैम) द्वारा कराए गए एक अध्ययन से सरकार के लिए निराशाजनक खबर आई है। यह अध्ययन बताता है कि बीते वित्त वर्ष 2015-16 में नए निवेश में 14 प्रतिशत गिरावट आई है। जबकि कुल 53 हजार करोड़ निवेश में से 44 हजार करोड़ सिर्फ घोषणाओं तक सीमित है। एसोचैम ने बीते दिनों गुजरे वित्त वर्ष 2016-16 के लिए 'एनालिसिस ऑफ मध्य प्रदेश : इकॉनोमी, इंफ्रास्ट्रक्च एण्ड इंवेस्टमेंट' (मध्य प्रदेश का विश्लेषण : अर्थव्यवस्था, मूलभूत ढांचा एवं निवेश) विषय पर अध्ययन किया। अध्ययन की रपट सोमवार को जारी की गई।
रपट में कहा गया है कि गुजरे वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान राज्य में आकर्षित 53 हजार करोड़ रुपये नए निवेश का करीब 86.5 प्रतिशत (लगभग 44 हजार करोड़) हिस्सा अब भी केवल घोषणा तक ही सीमित है। निवेश से शुरू हुईं शेष परियोजनाएं अपनी स्वीकृतियों के विभिन्न स्तरों या चरणों में हैं।अध्ययन में कहा गया है, "वर्ष 2013-14 में करीब 60 प्रतिशत गिरावट के बाद वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन के आयोजन के फलस्वरूप राज्य में नए निवेश में साल दर साल 700 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई, लेकिन गिरावट का दौर फिर शुरू हुआ और वर्ष 2015-16 में इसमें 14 प्रतिशत की कमी आई।"पिछले वित्त वर्ष के दौरान राज्य में निर्माण क्षेत्र में सर्वाधिक लगभग 68 प्रतिशत नया निवेश आया। इसके अलावा बिजली (19 प्रतिशत), सेवा (11़ 5 प्रतिशत) और निर्माण (01 प्रतिशत) क्षेत्र में नया निवेश आया।
अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2015-16 तक कुल 5़ 75 लाख करोड़ रुपये का लाइव (सक्रिय) निवेश हासिल हुआ था। इस तरह एक साल में 4़ 5 प्रतिशत की वृद्घि दर प्राप्त हुई, जबकि एक साल (2014-15) पहले तक राज्य में 5़ 50 लाख करोड़ रुपये का लाइव निवेश आया था। इस निवेश के प्रस्तावों में से लगभग तीन लाख करोड़ की परियोजनाएं विभिन्न कारणों से अटकी पड़ी हैं। राज्य में कुल सक्रिय निवेश का सर्वाधिक करीब 55 प्रतिशत हिस्सा बिजली क्षेत्र में है। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में 20 प्रतिशत, गैर-वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में 12 प्रतिशत, सिंचाई क्षेत्र में छह प्रतिशत, खनन में चार प्रतिशत, निर्माण एवं रियल एस्टेट में तीन प्रतिशत ऐसा निवेश आकर्षित हुआ है।
एसोचैम के इकोनॉमिक रिसर्च ब्यूरो (एईआरबी) द्वारा तैयार इस अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2015-16 में कुल सक्रिय निवेश परियोजनाओं में से तीन लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं अपने क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। ऐसी परियोजनाओं में सर्वाधिक 60़ 5 प्रतिशत हिस्सेदारी बिजली क्षेत्र की है। वहीं गैर वित्तीय सेवाओं (13 प्रतिशत), सिंचाई (10़ 5 प्रतिशत), विनिर्माण (लगभग आठ प्रतिशत), निर्माण एवं रियल एस्टेट (4़ 5 प्रतिशत) और खनन (करीब चार प्रतिशत) क्षेत्रों की परियोजनाएं अपने क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।अध्ययन के अनुसार, राज्य में करीब 87 प्रतिशत निवेश परियोजनाएं ऐसी हैं, जो औसतन 57 महीने विलम्ब से चल रही हैं। देरी के कारण 57 निवेश परियोजनाओं की लागत 35 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ गई, जिससे करीब 67 हजार करोड़ रुपये तक की लागत बढ़ चुकी है।
रपट के अनुसार, इन परियोजनाओं की वास्तविक लागत लगभग दो लाख करोड़ रुपये ही थी। जो बढ़कर दो लाख 67 हजार करोड़ रुपये हो गई है। पूर्ण होने में विलम्ब के कारण परियोजनाओं की बढ़ी कुल लागत में बिजली क्षेत्र की सर्वाधिक 60.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है। वहीं सिंचाई (27 प्रतिशत), गैर-वित्तीय सेवाओं (सात प्रतिशत) और विनिर्माण (06 प्रतिशत) की हिस्सेदारी है।सिंचाई क्षेत्र की परियोजनाओं की लागत में सर्वाधिक 76 प्रतिशत वृद्घि हुई है और विनिर्माण (35 प्रतिशत), बिजली (30 प्रतिशत), सेवा (24 प्रतिशत) तथा अन्य क्षेत्रों की परियोजनाओं पर भी यह मार पड़ रही है।
अध्ययन में स्पष्ट है कि परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलम्ब चिंताजनक है और यह समस्या सिर्फ मध्य प्रदेश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में कमोबेश ऐसी ही स्थितियां हैं।
इसके मुख्य कारणों में भूमि अधिग्रहण तथा पर्यावरण व अन्य सम्बन्धित स्वीकृतियों में विलम्ब, कच्चे माल की आपूर्ति में रुकावटें, कुशल श्रमिकों की कमी, वित्तीय संसाधनों की कमी, प्रोत्साहकों तथा अन्य लोगों की घटती दिलचस्पी आदि शामिल हैं।एसोचैम के अध्ययन के अनुसार, भौतिक तथा सामाजिक ढांचे के अव्यवस्थित विकास की वजह से भागीदारी के मामले में निजी क्षेत्र की दिलचस्पी घटी है। इसकी वजह से मध्य प्रदेश में निवेश परिदृष्य की चमक फीकी हुई है। रपट के अनुसार, देश की अर्थव्यवस्था में मध्य प्रदेश का योगदान वर्ष 2005-06 के चार प्रतिशत के स्तर के मुकाबले 2013-14 में 3. 9 प्रतिशत रहा। यानी इसमें मात्र 0़ 1 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अध्ययन के अनुसार, राज्य के करीब 70 प्रतिशत कामगार अपनी रोजी-रोटी के लिए कृषि पर निर्भर हैं, फिर भी राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में इस क्षेत्र का योगदान आशा के अनुरूप नहीं है। वर्ष 2004-05 में जहां मध्य प्रदेश के जीएसडीपी में कृर्षि क्षेत्र का योगदान 27.7 प्रतिशत था, वहीं वर्ष 2014-15 में यह 28़1 प्रतिशत तक ही पहुंच सका।चिंताजनक पहलू यह भी है कि राज्य की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान वर्ष 2010-11 में सर्वाधिक 26 प्रतिशत के मुकाबले 2014-15 में 22 प्रतिशत के स्तर तक जा गिरा। इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्र में कामगारों की निर्भरता भी वर्ष 2001 में चार प्रतिशत के मुकाबले 2011 में घटकर तीन प्रतिशत हो गई।