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सपा को कितना डराएगा देवबंद का संदेश?

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5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

17 Feb 2016

देश के विभिन्न राज्यों में विधानसभा उपचुनाव में  कौन जीता-कौन हारा से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम का संदेश क्या है। यहां वर्ष २०१७ में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। भाजपा ने यूपी की सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मुजफ्फरनगर विधानसभा सीट पर जीत हासिल की है, जिससे राज्य में सत्तारूढ़ सपा को झटका लगा और उसे उपचुनाव में अपनी तीन सीटों में से दो पर हार का सामना करना पड़ा। बिहार में करीब तीन महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में कामयाबी हासिल करने वाले सत्तारूढ़ जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा और हरलाखी सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा की सहयोगी आरएलएसपी से पराजित हो गए। अन्य पांच राज्यों मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगाना और त्रिपुरा में भी एक-एक सीट के लिए उपचुनाव हुए थे। उन राज्यों में सत्तारूढ़ दलों क्रमश: भाजपा, शिवसेना, अकाली दल, टीआरएस और माकपा ने उपचुनाव में जीत हासिल की। उत्तर प्रदेश में जहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां सत्तारूढ़ अखिलेश यादव सरकार को झटका लगा और उसे दो सीटों मुजफ्फरनगर तथा देवबंद पर हार का सामना करना पड़ा। पार्टी ने हालांकि बीकापुर सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। मुजफ्फरनगर सीट पर भाजपा ने सपा प्रत्याशी को ७,३५२ मतों से पराजित किया। यह सीट भाजपा के लिए अहम थी जिसने मुजफ्फरनगर में २०१३ में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद हिंदुत्व मुद्दे को लेकर अभियान चलाया था। देवबंद सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार माविया अली ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सपा प्रत्याशी को हराया। दुनियाभर में मशहूर इस्लामी शिक्षण संस्थान दारूल उलूम देवबंद में ही है। इसलिए इस समीक्षा में देवबंद की ही चर्चा होगी, क्योंकि देवबंद का असर दूर तक जाएगा।

उपचुनावों में दो सीटों पर मिली हार को अखिलेश सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। १६  फरवरी को आये तीन उपचुनावों के नतीजों के बाद सत्तारूढ़ सपा के शीर्ष नेतृत्वक के बीच इस सवाल के जवाब पर चिंता और चिंतन का माहौल है। गत १३ फरवरी को हुए मतदान के बाद आये नतीजों में सपा को केवल एक सीट पर जीत मिली, जबकि एक-एक सीट बीजेपी और कांग्रेस के खाते में गयी। गौरतलब है कि अभी तक ये तीनों सीटें सपा के पास थीं और तीनों जगह निवर्तमान विधायकों के निधन के बाद उपचुनाव हुए थे। सपा में ऐसे नतीजे की बिलकुल उम्मीद नहीं थी। तीनों सीटों पर मुकाबला सपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच रहा और बहुजन समाज पार्टी चुनाव मैदान में नहीं थी। तीनों ही जगह मतदान का प्रतिशत कम (४५ से ५० प्रतिशत तक) था और प्रचार के दौरान किसी प्रकार के ध्रुवीकरण का माहौल नहीं बन पाया था। जहां बाकी पार्टियां प्रचार और मतदान के दौरान सत्तारूढ़ दल पर सरकारी मशीनरी के बेजा इस्तमाल का आरोप लगाती रहीं, वहीं सपा रक्षात्मक मुद्रा में दिखी। शायद इसीलिए हार के कारण को सपा के नेता च्च्विभाजन की राजनीतिज्ज् का नतीजा बता रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। पिछले कुछ समय से अखिलेश सरकार अपने विज्ञापनों और प्रचार में प्रदेश में चल रहीं तमाम योजनाओं का बखान करती आ रही है, ऐसे में तीन में से दो सीटों पर हारना पार्टी के गले नहीं उतर रहा है। जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दोनों सीटों, मुज़फ्फरनगर और देवबंद (सहारनपुर) पर सपा को अपने भूतपूर्व विधायकों चित्तरंजन स्वरूप और राजेन्द्र सिंह राणा की मृत्यु पर क्षेत्रीय मतदाताओं के सहानुभूति वोट नहीं मिले, वहीं फैजाबाद के बीकापुर में सपा के दिवंगत विधायक मित्रसेन यादव के बेटे आनंदसेन यादव ने जीत हासिल की। सपा के आनंद सेन यादव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राष्ट्रीय लोकदल के मुन्ना सिंह चौहान को लगभग ७००० वोटों से हराया। 

सहारनपुर की देवबंद सीट से कांग्रेस उम्मीदवार माविया अली ने जीत हासिल की। माविया को ५०९२१ वोट, सपा की मीणा राणा को ४७२३१ वोट और बीजेपी के रामपाल पुंडीर को ४५३२७ वोट मिले। तीनों उम्मीदवारों को मिले वोटों के बीच इतने कम अंतर से किसी एक उम्मीदवार के प्रति कोई एकतरफा समर्थन नहीं दिखता।  मुजफ्फरनगर में बीजेपी उम्मीदवार ने सपा उम्मीदवार को ७३६४ वोटों से हराया। सपा को ५८०२६ वोट मिले, जबकि राष्ट्रीय लोक दल व कांग्रेस के प्रत्याशी को १५००० से कम वोट में संतोष करना पड़ा। वर्ष २०१३ में यहाँ हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद से ही यहां का माहौल प्रदेश सरकार के खिलाफ बना हुआ था और दंगा पीड़ितों में सरकार के द्वारा की गयी कार्यवाही के प्रति असंतोष था। बीजेपी की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं प्रदेश प्रभारी ओम प्रकाश माथुर ने कहा कि ये नतीजे सपा सरकार के कुशासन को जनता का जबाव है। माथुर ने कहा कि मुज़फ्फरनगर के उपचुनाव और गाज़ियाबाद के मेयर के चुनाव में बीजेपी की जीत से सिद्ध हो गया है कि राज्य की जनता अखिलेश सरकार के कुशासन एवं ध्वस्त कानून-व्यवस्था से त्रस्त है। सपा के लिए ये नतीजे इसलिए भी चिंताजनक हैं कि २०१२ में सत्ता में आने के बाद से पार्टी १४ में से ११ उप चुनाव जीत चुकी है। सपा प्रमुख कई मौकों पर अखिलेश सरकार की कार्यशैली, मंत्रियों के भ्रष्टाचार और पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की अनुशासनहीनता पर टिप्पणी कर चुके हैं। इन चुनावों के पहले भी उनकी ओर से पार्टी कार्यकर्ताओं को यही सन्देश दिया गया था कि ये चुनाव किसी भी हालत में जीतने हैं। इस उप चुनाव से बसपा बाहर थी। इसलिए यह उम्मीद थी कि निश्चित ही कुछ उलटफेर होगा। यानी बसपा का दलित वोटबैंक चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा। वही हुआ भी। वर्ष २०१२ के चुनाव में मुजफ्फरनगर को छोड़कर बसपा अन्य सीटों देवबंद व बीकापुर में दूसरे स्थान पर रही, हार का अंतर भी मामूली रहा था। 

उधर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बने सपा विरोधी माहौल का लाभ लेने की भाजपा और रालोद में होड़ थी। देवबंद सीट पर वर्ष २०१२ में सपा व बसपा के बीच वोटों का दो प्रतिशत से कम का अंतर रहा। सपा के राजेंद्र राणा ने ३४.०५ फीसद वोट पाए थे तो बसपा प्रत्याशी मनोज चौधरी ३२.५० फीसद मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे। यहां भाजपा की स्थिति गत चुनाव में कमजोर रही और मात्र ५.०६ प्रतिशत वोट मिल पाए जबकि कांग्रेस के अनिल तंवर ने २३.२३ फीसद मत हासिल किए थे। चूंकि चर्चा देवबंद के चुनाव परिणाम के बाद के संदेश की हो रही है, इसलिए यह बताना जरूरी है कि देवबंद ने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी की सरकार को आईना दिखाया है। दरअसल, सपा प्रदेश के मुसलमानों को अपना वोट बैंक मानती है और उन पर अपना हक जताती है, लेकिन देवबंद के चुनाव परिणाम ने सपा की गलतफहमी को दूर कर दिया है। चूंकि देवबंद में मुसलमानों की आबादी अधिक है और उनमें भी पढ़े-लिखे मुसलमान भारी संख्या में है। देवबंद का दारूल-ऊलूम मुसलमानों का प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान हैं, जहां देश के कोने-कोने से मुस्लिम युवक शिक्षार्थ आते हैं। जानकार बताते हैं कि समय-समय पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव की भाजपा नेताओं के साथ अनौपचारिक निकटता की खबरें मुसलमानों को सपा को दूर कर रही है। यदि देवबंद के संदेश को समझें तो यह कहा जा सकता है कि मुसलमान अब समाजवादी पार्टी से ज्यादा कांग्रेस में खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इतना ही नहीं देवबंद के चुनाव परिणाम को भापकर कांग्रेस भी सक्रिय हो गई है। सूत्रों को कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पूर्व विधायक इमरान मसूद और पूर्व मंत्री व दलित नेता दीपक कुमार के माध्यम से खुद को मजबूत करने में जुटी है।

राजनीति के जानकार बताते हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम गठजोड़ कामयाब हो जाता है को कांग्रेस के लिए यह मील का पत्थर साबित होगा, जिसकी शुरूआत देवबंद से हो गई है। शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस च्दलित जोड़ोज् अभियान तेजी से चला रही है, जिसकी कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता पीएल पुनिया के हाथों में है। इतना ही नहीं कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी खुद इस अभियान की मॉनिटरिंग कर रहे हैं। इसी सिलसिले में वे लगातार यूपी के नेताओं से संपर्क बनाए हुए हैं। बहरहाल, यदि देवबंद के संदेश के आधार पर कांग्रेस अपने अभियान में सफल हो जाती है तो यह यूपी की सत्तारूढ़ पार्टी सपा के लिए डरने वाली बात होगी और उसे अपनी रणनीतियों की पुनर्समीक्षा करनी होगी। खैर, देखा यह जाना है कि क्या होता है?

संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.

 

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