नेशनल कांफ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला को एक समय लोगों को अपनी तरफ खींचने में कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ती थी। आज वही अब्दुल्ला जब अपनी 'शेर लौट आया है' वाली छवि को लोगों के बीच पेश करना चाह रहे हैं तो लोगों की तरफ से इसे लेकर कोई खास उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है।फारूक अब्दुल्ला (79) हमेशा से कश्मीरियों में हलचल पैदा करते रहे हैं। चाहे वह उनकी प्लेब्वॉय वाली छवि हो या फिर अपने पिता शेख अब्दुल्ला की एक सदी पुरानी राजनीतिक विरासत का मामला हो, उन्हें लेकर किसी न किसी रूप में चर्चा होती ही रहती थी।उत्तरी कश्मीर के गांदेरबल के एक मतदाता ने जो कुछ कहा, उससे फारूक की मौजूदा राजनीतिक हैसियत का अंदाजा होता है। मतदाता ने कहा, "हां, पुरानी यादों की वजह से मैं उन्हें मत दे सकता हूं। वह (जम्मू एवं) कश्मीर के मुख्यधारा के सबसे वरिष्ठ नेता हैं और यह भी है कि औरों की तुलना में अधिक खराब नहीं हैं।"इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोकसभा उप चुनाव में उन्हें मत मिल सकते हैं लेकिन यह साफ है कि घाटी में 'शेर' की दहाड़ में अब गूंज बाकी नहीं रह गई है।
श्रीनगर लोकसभा सीट पर हो रहे संसदीय उप चुनाव में फारूक नेशनल कांफ्रेंस एवं कांग्रेस के संयुक्त प्रत्याशी हैं। उनका मुकाबला राज्य में सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नजीर अहमद खान से है। 2014 में इस सीट पर हुए चुनाव में पीडीपी के तारिक हमीद कार्रा ने फारूक को हराया था। इस बार कार्रा, फारूक के लिए मत मांग रहे हैं।कार्रा ने बीते साल घाटी में हिंसा को लेकर पीडीपी और लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और कांग्रेस में शामिल हो गए थे। उनके इस्तीफे के कारण श्रीनगर-बडगाम सीट पर उप चुनाव हो रहा है।क्षेत्र में उप चुनाव होने में दो हफ्ते से भी कम समय बचा है लेकिन चुनाव संबंधी गतिविधियां बेहद कम नजर आ रही हैं।बेहद कड़ी सुरक्षा वाले पार्टी दफ्तरों में 'कार्यकर्ताओं की बैठकों' की प्रेस विज्ञप्तियों का जारी होना ही चुनाव की सबसे बड़ी गतिविधि है। श्रीनगर, बडगाम और गांदेरबल में इन दफ्तरों में सुरक्षा कारणों से आम लोगों को सुरक्षा कर्मी जाने नहीं देते। क्षेत्र में पीडीपी प्रत्याशी की एक भी जनसभा नहीं हुई है।
राहत की बात यही है कि लोगों को पता है कि नौ अप्रैल को यहां वोट पड़ेंगे। खुफिया विभाग के अधिकारी ने आईएएनएस से कहा कि श्रीनगर-बडगाम का चुनाव इस बात के लिए मायने नहीं रखता कि कौन जीतता है और कौन हारेगा। सुरक्षा की दृष्टि से सवाल यह है कि कितने मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।राज्य सरकार ने शांतिपूर्ण चुनाव के लिए केंद्र से अर्धसुरक्षा बलों की 250 अतिरिक्त कंपनियों की मांग की है।आतंकियों ने धमकी दी हुई है, अलगाववादियों ने चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया है और आम कश्मीरी चुनाव प्रचार को लेकर उदासीन बना हुआ है। इन सभी वजहों से चुनावी माहौल ठंडा बना हुआ है।संसदीय क्षेत्र के कुछ इलाकों में नेशनल कांफ्रेंस का प्रभाव है, जहां हो सकता है कि चुनाव बहिष्कार के आह्वान का शायद कोई खास असर न हो।श्रीनगर, गांदेरबल और बडगाम में 1,327,000 मतदाताओं को वोट देने का हक है। मतदान 9 अप्रैल को होगा, नतीजे 15 अप्रैल को आएंगे।