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आतंकी हमले की हलचल में हांफती हकीकत

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5 Dariya News (राजीव रंजन तिवारी)

06 Jan 2016

पठानकोट में हुई आतंकी हमले की हकीकत को उलझाने की कोशिश को क्या कहा जाना चाहिए? मैं तो इसे देशद्रोह मानता हूं, बाकी सबकी अलग-अलग राय हो सकती है। सिर्फ यह कहना कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान सरकार का हाथ है तो यह न सिर्फ गलत होगा बल्कि भारत समेत दुनिया भर में हमले की हकीकत पर भ्रम भी पैदा होगा। मुझे लगता है कि भारत सरकार हमले की हकीकत को छिपाने अथवा दबाने की कोशिश में है ताकि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार की खामी उजागर न हो सके। पाकिस्तान से बिल्कुल सटे पठानकोट में चरमपंथी/आतंकी हमले का पूरा दोष सिर्फ पाकिस्तान पर ही मढ़ना ठीक नहीं होगा। भारत सरकार और उसकी सुरक्षा एजेंसियों को भी अपनी गतिविधियों का आकलन करना होगा। आखिर वह कौन सी खामी रह गई जिस वजह से यहां आतंकी हमले हुए। पठानकोट एयरबेस पर और मजार-ए-शरीफ में कंसुलेट पर आतंकी हमले ने पहली बार भारत और पाकिस्तान को एक दूसरे के करीब लाया है। भारत को पड़ोसी की सहयोग की पेशकश को संस्थागत रूप देने की पहल करनी चाहिए। अक्सर यह देखा गया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाने के हर प्रयास के बाद शांति को तोड़ने की बड़ी घटना होती रही है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अचानक लाहौर यात्रा के बाद पठानकोट एयरबेस पर हुआ आतंकी हमला भी उसी परंपरा की कड़ी साबित हुआ। हमला हुआ, भारत के सैनिक जवान मारे गए, लोगों में गुस्सा भी दिखा, लेकिन इस बार वह नहीं हुआ जो इस तरह के हमलों के बाद हर बार होता था। भारतीय नेताओं ने ताबड़तोड़ पाकिस्तान पर आरोप नहीं लगाए। पाकिस्तान ने भारत के साथ संवेदना व्यक्त की, भारतीय अधिकारियों ने हमले के बारे में सूचना साझा की और पाकिस्तान ने कार्रवाई करने का वायदा भी किया। बावजूद इसके अपनी आंतरिक सियासत को समृद्ध करने और भारतीय मुसलमानों को कथित रूप से बदनाम करने के लिए भाजपा नीत केन्द्र सरकार के नेता हकीकत पर परदा डालते हुए इस घटना के लिए सिर्फ पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, जो ठीक नहीं है।

पठानकोट हमले ने कई इस प्रकार के सवाल खड़े किए जिसका जवाब पाकिस्तान को नहीं बल्कि भारत को देना चाहिए घटना के दिन की बात करें तो इस सवाल का मिलना चाहिए कि क्या सीमांत ज़िले में देर रात बिना अपनी निजी सुरक्षा को साथ लिए यात्रा करके एसपी सलविंदर सिंह ने बड़ा जोखिम क्यों लिया? चरमपंथियों ने सलविंदर सिंह की जिस सरकारी गाड़ी को छीना था, उस पर नीली बत्ती लगी थी। इससे किसी को भी इस बात का अंदाज़ा हो सकता है कि उसमें सवार व्यक्ति या तो आला अधिकारी है या फिर एक वीआईपी। फिर चरमपंथियों ने क्या सोच कर सभी को जाने दिया? भारतीय मीडिया में इस तरह की खबरें हैं कि चरमपंथियों ने अपने घरों में या उस देश में फ़ोन मिलाए जहां से वे आए थे। क्या चरमपंथियों के पास सैटेलाइट फोन थे या उन्होंने भारतीय सिम कार्डों का इस्तेमाल किया? अगर उन्होंने किसी अपने कथित 'हैंडलरों' या अपने घरों पर बात करने की कोशिश की तो उससे उनकी नागरिकता का अंदाज़ा क्यों नहीं लगा? भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने घटना के पहले ही दिन किसके कहने पर या किसकी सूचना पर यह ट्वीट किया कि 'सभी पांचों चरमपंथी मारे गए हैं'? जबकि एक दिन बाद भारत सरकार को बयान पलटना पड़ा कि तब तक सिर्फ चार चरमपंथी ही मारे गए थे। यानी दूसरे दिन शाम को इस बात की पुष्टि हुई कि पांचवें चरमपंथी को भी मार दिया गया है। मोदी सरकार यह कहते हुए सुरक्षा एजेंसियों की पीठ थपथपा रही है कि ख़ुफ़िया एजेंसियों की तरफ़ से पहले से मिली सूचना के चलते हमले का असर फीका कर दिया गया। अब. सवाल ये है कि अगर ख़ुफिया जानकारी पहले ही मिल गई थी, तब हमलावर भारतीय वायु सेना के इतने अहम बेस के भीतर कैसे पहुंच गए? इतना ही नहीं, जब एनएसजी कमांडो का एक पूरा दस्ता पठानकोट एयरबेस की सुरक्षा के लिए पहले ही पहुंच चुका था तब जान-माल का इतना नुकसान कैसे हुआ? साथ ही जब ख़ुफिया सूचना पहले ही मिल गई थी तब सरकार ने पठानकोठ में पहले से मौजूद चार सैन्य टुकड़ियों को इस ऑपरेशन में देरी से शामिल क्यों किया? भारत से सटे पंजाब बॉर्डर से पिछले कुछ वर्षों में घुसपैठ की घटनाएं बढ़ी हैं। क्या भारत सरकार को नहीं लगता कि भारत प्रशासित कश्मीर में मौजूद एलओसी की तरह ही एक सुरक्षित सीमा की दरकार पंजाब-पाकिस्तान बॉर्डर पर भी है?

इसके अलावा करीब-करीब पूरी दुनिया जानती है कि नवाज शरीफ की हुकूमत रायविंड से बाहर नहीं चलती। पाकिस्तान को राहिल शरीफ चलाते हैं। वहां तीन चीजें चलती हैं, अल्लाह, आर्मी और अमेरिका। एनएसए के बीच बैंकाक में क्या बात हुई थी। क्या भारत सरकार सियाचीन और सर क्रीक को पाकिस्तान के हवाले करना चाहती है। पाकिस्तान के साथ हो रही ये सब बातें तुंरत समाप्त करनी चाहिए। अगर आतंक चलता रहता है तो सरकार क्या बात करना चाहती है। इस घटना के बाद परम्परा के अनुरूप खासकर बीजेपी बौखला गई है। इतना ही नहीं भाजपा में भी इस बात को लेकर कानाफूसी चल रही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लाहौर क्या करने गए थे। जबकि दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने पाकिस्तान से बातचीत जारी रखने की वकालत की है बशर्ते इस पर सख्त कदम उठाए जाएं। संघ ने कहा है कि पठानकोट हमले के बाद भी भारत-पाक वार्ता जारी रखी जा सकती है, लेकिन हमले को लेकर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।  संघ ने कहा है कि सरकार को मजबूती से भारत को सचिव स्तर की बातचीत में अपना पक्ष सबूतों के साथ पाकिस्तान के सामने रखना चाहिए। दरअसल, पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार और सेना की खींचतान और सेना के वर्चस्व की बात होती रहती है, वहां भी निर्वाचित सरकार और संस्थानों को मजबूत करने की जरूरत है। एक स्थिर लोकतांत्रिक देश के रूप में भारत को इसमें बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। फिलहाल पाकिस्तान के लिए भी यह परीक्षा की घड़ी है कि अब तक वह भारत के आरोपों के पीछे छुपता रहा है। संप्रभुता के नाम पर ऐसा करना उसे छोड़ना होगा। नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी को फोन पर पठानकोट जांच में मदद का आश्वासन देकर अच्छी पहल की है। यह रिश्ता दक्षिण एशिया में आतंकवाद की कमर तोड़ने में कारगर साबित हो सकता है।

उधर, पठानकोट हमले को लेकर राजनीतिक लड़ाई भी तेज हो गई है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने बयानों को दिखाकर निशाने पर लिया। मोदी के पीएम बनने से मुंबई हमलों के दौरान, चुनावी रैलियों में व टीवी चैनल्स पर मोदी के पाक के खिलाफ सख्त बयानों को कांग्रेस ने मुद्दा बना लिया। पीएम नरेंद्र मोदी पर हमले के लिए कांग्रेस ने पूर्व गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे को आगे किया। कांग्रेस ने मोदी के साथ पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को भी निशाने पर लिया। शिंदे ने कहा कि १९९९ में आईसी-१८४ हाइजैक हुआ। तत्कालीन विदेश मंत्री (जसवंत सिंह) आतंकियों को कंधार लेकर गए और छोड़कर आए।  जब वाजपेयी जी पाकिस्तान गए तो करगिल हो गया और अब मोदी पाकिस्तान गए तो पठानकोट हो गया। सभी जानते हैं कि २६/११ के बाद मोदी के विचार क्या थे और वह क्या मांग कर रहे थे। शिंदे ने कहा कि मौलाना मसूद अजहर को छोड़ने से आतंकियों को संदेश गया कि ये लोग नरम हैं। इसी के बाद तमाम हमले हुए और आखिर में संसद पर हमला हुआ। बीजेपी जब भी सत्ता में आती है तो आतंक बढ़ जाता है। पीएम के अचानक लाहौर पहुंचने पर भी पूर्व गृहमंत्री ने कटाक्ष किया। शिंदे ने कहा, च्मैंने अभी तक कभी नहीं सुना कि कोई प्रधानमंत्री अचानक कहीं पहुंच जाए। वहां उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई इसका भी कोई विवरण नहीं आया। टेरर अटैक के बाद नवाज शरीफ के साथ जो बात हुई है प्रधानमंत्री कम से कम वह तो देश को बताएं।ज् बहरहाल, इन घटनाओं के लिए केवल पाकिस्तान को दोषी ठहरा दना ही ठीक नहीं है। भारत को अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए।

संपर्कः राजीव रंजन तिवारी, द्वारा- श्री आरपी मिश्र, ८१-एम, कृष्णा भवन, सहयोग विहार, धरमपुर, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), पिन- २७३००६. फोन- ०८९२२००२००३.

 

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