Tuesday, 23 April 2024

 

 

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हरियाणा में चल रही हैं शिक्षा की दुकानें

छात्रों के भविष्य से खिलवाड

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5 दरिया न्यूज (प्रशांत प्रवीण कौशिक)

घरौण्डा , 19 Jul 2013

हरियाणा में संचालित हो रहे सैकड़ों बीएड कॉलेजों में नियमों को ताक पर रखकर शिक्षा के नाम पर स्टूडेंट्स के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। प्रदेश भर के  481 बीएड कॉलेजों में से अधिकांश सेल्फ फाइनेंस  कॉलेजों में प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है। ये हाल तब है जब स्टूडेंट्स से फीस दाखिले से पहले ही वसूल की जा रही है। गत 5 वर्षों के दौरान प्रदेश में बीएड कॉलेजों की बाढ़ आ गई है। इनमें से अधिकांश कॉलेज सेल्फ फाइनेंस हैं। कहने को तो इनपर एनसीटीई के नियम लागू होते हैं, लेकिन धरातल पर सच्चाई इसके ठीक विपरीत है।

एनसीटीई के  नियमानुसार प्रत्येक कॉलेज में पढ़ाने वाले टीचर की योग्यता नेट अथवा एजुकेशन विषय में पीएचडी होनी चाहिए और प्राचार्य की योग्यता एजुकेशन विषय में पीएचडी, नेट के साथ-साथ दस साल का शिक्षण अनुभव, जिनमें से पांच वर्ष कॉलेज स्तर पर प्रशासनिक अनुभव शामिल है, होना चाहिए।धरातल पर देखने पर पता चलता है कि नब्बे फीसदी कॉलेजों में नियमानुसार स्टाफ नहीं है।प्रदेश के कुल 481 कॉलेजों में वर्तमान में 69704 सीटें हैं। नियमानुसार प्रत्येक 100 छात्रों पर 7 प्रध्यापक होने चाहिए। इस प्रकार प्रदेश में सभी बीएड कॉलेजों में कुल लगभग 4900 योग्यता प्राप्त प्राध्यापक चाहिए। मजेदार बात तो यह है कि प्रदेश में एजुकेशन विषय में पीएचडी अथवा नेट योग्यता प्राप्त कुल 500 प्राध्यापक भी नहीं हैं। इसी प्रकार कुल 481 कॉलेजों के लिए येाग्य प्राचार्य भी चाहिए, जबकि निर्धारित नियमानुसार  प्रदेश में कुल 50 से ज्यादा योग्य प्राचार्य नहीं हैं।ऐसे में प्रश्न उठता है कि बीएड कॉलेजों में वांछित योग्य स्टाफ कहां से आता है, जबकि एनसीटीई व यूनिवर्सिटी द्वारा प्रत्येक वर्ष इन कॉलेजों का निरीक्षण किया जाता है। निरीक्षण कमेटी में 3 से 5 सदस्य होते हैं।

प्राचार्य के लिए भी है ये प्रक्रिया

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्राचार्यों के पद भी विभिन्न समाचार पत्रों में प्रत्येक वर्ष विज्ञापित किए जाते हैं। प्रदेश में निर्धारित योग्यता के दस फीसदी से भी कम प्राचार्य होने के कारण इनकी खानापूर्ति भी प्राध्यापकों की भांति उत्तर प्रदेश व बिहार के  उम्मीदवारों से की जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार कई प्राचार्य तो ऐसे हैं, जिन्हें चार से पांच कॉलेजों का प्राचार्य दर्शाया जाता है। प्रदेश में चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय सहित तीन विश्वविद्यालय हैं। इन तीनों के एक-एक कॉलेज के अलावा राजस्थान व पंजाब के कॉलेजों में कई बार एक ही प्राचार्य दिखाया जाता है। शिक्षण स्टाफ ही नहीं बल्कि विभिन्न कॉलेजों में कई अन्य खामियां भी हैं। कुछ कॉलेज तो ऐसे है जो सिर्फ कागजों में ही चल रहे हैं। इन कॉलेजों में साल में ताला भी एककाध बार खुलता है। दाखिलों के बाद केवल परीक्षा के दिनों में यहां गहमागहमी होती है।

ऐसे चलता है सारा खेल

प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग सभी सेल्फ फाईनेंस कॉलेज प्रत्येक वर्ष निरीक्षण से पहले दो-दो समाचार पत्रों में भर्ती के विज्ञापन छपवाकर औपचारिकताएं पूरी करते हैं। विज्ञापन की एक कॉपी विश्वविद्यालय को भेजी जाती है। खानापूर्ति के बाद निरीक्षण वाले दिन उत्तरप्रदेश व बिहार से विभिन्न उम्मीदवारों के बायोडाटा मंगवा लिए जाते हैं। चर्चा है कि  इनमें से कइयों की डिग्रियां तो बोगस तक होती हैं। इसके अलावा निरीक्षण टीम को मैनेज कर लिया जाता है। इससे न तो प्राध्यापकों की फिजिकल जांच होती है ओर न ही कॉलेज के रिकॉर्ड को खंगाला जाता है। यहां तक कि जांच टीमें प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों व प्राध्यापकों के सर्टिफिकेट्स की जांच कराना भी उचित नहीं समझतीं।

चर्र्चा है कि कि निरीक्षण टीम की सुविधा फीस एक से दो लाख रुपए निर्धारित है। इसके बाद सभी कायदे कानून ठीक मान लिए जाते हैं। यही स्थिति बीएड कॉलेजों में प्राचार्यों की है। चर्चा है कि ऐसे कालेजों मे शिक्षा ग्रहण करने वाले आगे छात्रों को किस तरह की शिक्षा दे पायेंगे।

 

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