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अगली सरकार को बनाने में प्रदेश के छह जिलों की इस बार सबसे अहम भूमिका रहेगी

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5 दरिया न्यूज (विजयेन्दर शर्मा)

धर्मशाला , 14 Dec 2012

अगली सरकार को बनाने में प्रदेश के छह जिलों की इस बार सबसे अहम भूमिका रहेगी। कांगड़ा, शिमला, मंडी, हमीरपुर, सोलन और सिरमौर की 48 सीटों के परिणाम ही राजनीतिक दल को सियासत का ताज पहनाएंगे। प्रदेश के सबसे बड़े कांगड़ा में बहुमत लेने वाले दल की सरकार अब तक बनती रही है। इसके विपरीत कांग्रेस ने जब-जब यहां से पांच से अधिक सीटें अपनी झोली में डाली हैं, तब-तब सियासत का ताज उसके सिर सजता रहा है। यही कारण है कि इसी जिला से सबसे बड़े सियासी मुद्दे उठते रहे हैं। जनता पार्टी ने 1977 में 16 में से 14 सीटें लेकर प्रदेश में गैर कांग्रेस सरकार बनाई थी। इसके बाद भाजपा ने 1990 में 13, 1998 में 11, 2003 में भी 11, 2007 में नौ सीटें लेकर सत्ता कब्जाई है। अहम है कि उक्त सभी चुनावों में भाजपा को निर्दलीय बागी उम्मीदवारों का भी समर्थन मिला है। जिला से भेदभाव होने पर कांगड़ा ने हमेशा सत्ता पक्ष की खिलाफत कर सरकारों को पलटा है। स्थानीय मुद्दों को आधार बनाकर कांगड़ा की जनता ने अपने जिला के मुख्यमंत्री को भी सत्ता से बाहर किया है। यह जिला हमेशा ही सरकार की कार्यप्रणाली के आधार पर बहुमत देता रहा है।  सरकार बनाने में दूसरी सबसे अहम भूमिका शिमला जिला की रही है। वीरभद्र सिंह के प्रभाव वाले इस जिला में हमेशा ही कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। वर्ष 1998 में भाजपा ने यहां छह में से कोटखाई तथा सदर शिमला की सीट जीत कर कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाई थी। इस बार हुए रोहड़ू विधानसभा उपचुनाव की सीट को जीत कर शिमला जिला से तीन सीटें झटकने का रिकार्ड बनाया है। इसके अलावा सभी चुनावों में कांग्रेस का शिमला जिला में एकछत्र साम्राज्य रहा है। इतिहास गवाह है कि शिमला जिला से कांग्रेस ने छह से अधिक सीटें जीत कर हर बार प्रदेश में सरकार बनाई है। जिला में हर बार वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस का खुलकर समर्थन किया है। मुख्यमंत्री की चाहत रखने वाले मंडी जिला से हमेशा ही चौंकाने वाले नतीजे आते रहे हैं। इस जिला में कांग्रेस की मजबूत पकड़ होने के बावजूद भाजपा भी जबरदस्त सेंधमारी करती रही है। यही कारण है कि मंडी जिला बारी-बारी से भाजपा तथा कांग्रेस दोनों दलों को बहुमत देता रहा है। वर्ष 2003 के चुनावों में मंडी से अधिक सीटें जीतने वाली कांग्रेस पिछले चुनावों में यहां से बुरी तरह पिछड़ गई थी। वर्ष 2007 में कांग्रेस को दस में से मात्र तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इसके विपरीत भाजपा ने छह सीटें तथा करसोग से पार्टी के बागी नेता हीरा लाल विजयी हुए थे। पंडित सुखराम और कौल सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के लिए मंडी जिला में ख्वाब जरूर देखे हैं। इसी कारण 90 के दशक से मंडी जिला हमेशा से ही पंडित सुखराम के साथ खड़ा रहा है। इस बार शुरुआती दौर में कौल सिंह की दावेदारी के चलते मंडी जिला एकजुट दिख रहा था। मंडी जिला आमतौर पर सरकार के खिलाफत में रुचि दिखाता रहा है। सत्ता की दौड़ में हमीरपुर जिला की भी अहम भूमिका रहती है। वर्ष 1998 से हमीरपुर जिला की पांच सीटों में चार सीटें भाजपाकी झोली में डालकर बहुमत देता रहा है। 2003 के चुनावों में सत्ता से बाहर होने के बावजूद हमीरपुर जिला में भाजपा को तीन सीटें दी थीं। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के प्रभाव वाले हमीरपुर जिला ने हमेशा ही सभी छोटे-बड़े मुद्दों को दरकिनार कर सीएम पद को सबसे ऊपर रखा है। कांग्रेस प्रभाव वाला सिरमौर जिला भी सरकार के गठन में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता रहा है। वर्ष 2003 से पांवटा सीट जीत कर भाजपा ने सिरमौर में कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंधमारी की है। वर्ष 2007 में भाजपा ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा और उक्त चुनावों में रेणुका की सीट भी कांग्रेस से हथिया ली। प्रदेश को पहला मुख्यमंत्री देने वाले सिरमौर जिला में भाजपा लगातार अपनी स्थिति बेहतर कर रही है। इस बार सिरमौर जिला की भूमिका नई सरकार के गठन में सबसे अहम रहने वाली है। अगली सरकार का ताज पहनाने वाले सोलन जिला सत्ता के खिलाफ वोटिंग के लिए जाना जाता है। वर्ष 2007 के चुनाव में भाजपा ने सोलन जिला में क्लीन स्वीप कर सनसनी मचा दी थी। हालांकि नालागढ़ की सीट पर हुए उपचुनाव पर यहां की जनता एक बार फिर सरकार के विरोध में उतर आई

 

Tags: himachal election

 

 

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