पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), चंडीगढ़ के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग ने 11 सितंबर 2024 को "इमेज प्रोसेसिंग फॉर बायोमेडिकल एप्लीकेशंस (CPWIP-2024)" पर एक जॉइंट वर्कशॉप का आयोजन किया। यह वर्कशॉप CSIR-CSIO, चंडीगढ़ और PEC, चंडीगढ़ के सहयोग से आयोजित की गई।
इस वर्कशॉप में प्रमुख विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें प्रो. दिनेश कुमार (RMIT यूनिवर्सिटी, मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया), डॉ. प्रशांत के. महापात्रा (सीनियर साइंटिस्ट, CSIR-CSIO), प्रो. तिर्लोक चंद (चेयरपर्सन), प्रो. पद्मावती (कोऑर्डिनेटर) और प्रो. सुदेश रानी (कोऑर्डिनेटर) शामिल थे। वर्कशॉप का मुख्य उद्देश्य बायोमेडिकल एप्लीकेशंस में इमेज प्रोसेसिंग में हुई रीसेंट डेवेलपमेंट पर केंद्रित था।
इसमें देशभर से 100 से अधिक प्रतिभागियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से हिस्सा लिया। वर्कशॉप के बारे में प्रो. पद्मावती ने बताया कि इसका उद्देश्य बायोमेडिकल एप्लीकेशंस, मेडिकल डायग्नॉस्टिक्स, ट्रीटमेंट प्लानिंग और हेल्थकेयर सॉल्यूशंस में नवीनतम प्रगति पर ध्यान केंद्रित करना है। CSIO, PEC और RMIT ऑस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध विशेषज्ञों की उपस्थिति ने इस कार्यशाला को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
प्रतिभागियों को बायोमेडिकल क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीकों और उनकी व्यावहारिक उपयोगिता के बारे में गहरी जानकारी भी प्रदान की गई। प्रो. दिनेश कुमार (RMIT, ऑस्ट्रेलिया) ने पार्किंसंस रोग के लिए इमेज प्रोसेसिंग पर अपनी विशेषज्ञता साझा की। उन्होंने एआई और इमेजिंग विधियों के उपयोग के बारे में बताया, जो इसके डायग्नोसिस और उपचार में मदद करते हैं।
साथ ही, उन्होंने हिप्पस और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों की पहचान के लिए ऑप्टिकल नर्व के लाइट रिफ्लेक्स मैकेनिज्म और डेटा विश्लेषण के बारे में चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि एआई हेल्थकेयर डिवाइस का उपयोग निदान में सहायक हो सकता है, लेकिन अंतिम निर्णय हमेशा चिकित्सक के हाथ में होता है, जो आवश्यकतानुसार डिवाइस के सुझावों को अस्वीकार भी कर सकता है।
आगे बढ़ते हुए, डॉ. प्रशांत के महापात्रा ने बायोमेडिकल एप्लीकेशंस में थर्मल इमेजिंग (थर्मोग्राफी) पर प्रकाश डाला, विशेष रूप से सॉफ्ट-टिशू इंजरी के संदर्भ में। उन्होंने बताया कि यह तकनीक बिना किसी रेडिएशन के और बिना किसी इनवेसिव प्रक्रिया के निदान का एक सटीक तरीका प्रदान करती है, जो विभिन्न रोगों के उपचार की सटीकता को बढ़ाती है।
साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि वर्चुअल रियलिटी का भी चिकित्सा सेवाओं में काफी उपयोग हो रहा है। डॉ. सुदेश रानी ने हेल्थकेयर में डीप लर्निंग पर अपना दृष्टिकोण साझा किया। उन्होंने UG, PG और PhD छात्रों के साथ मिलकर डीप लर्निंग तकनीकों का इस्तेमाल किया, खासतौर पर मेडिकल इमेजिंग के लिए।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में इन तकनीकों का उपयोग ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) के लिए किया गया, और बाद में इन्हें निमोनिया, COVID-19, टीबी और चेस्ट इंफेक्शन जैसी बीमारियों की पहचान के लिए भी इस्तेमाल किया गया। यह वर्कशॉप एक सकारात्मक और ऊर्जावान माहौल के साथ समाप्त हुई, जिसमें सभी प्रतिभागियों ने नई तकनीकों और बायोमेडिकल इमेज प्रोसेसिंग के भविष्य पर महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की।