सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन को लेकर एक याचिका पर टिपण्णी कर रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन अनुचित नहीं है. तलाक का अधिकार महिलाओं के पास भी उतना ही है जितना पुरषों के पास है. इस मामले पर कोर्ट अगली सुनवाई 29 अगस्त को करेगा।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई इस याचिका में याचिकाकर्ता का आरोप है कि 19 अप्रैल को उसके पति ने पहला तलाक भेजा, जिसके बाद अगले दो महीने लगातार उसे दूसरी और तीसरी बार तलाक दिया गया. ऐसे में याचिकाकर्ता का कहना है कि यह पूरी तरह से महिलाओं के साथ भेदभाव है, क्योंकि सिर्फ पुरुष ही ऐसा कर सकते हैं.
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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एसके कॉल और एमएम सुंदर्श की बेंच ने मुस्लिम महिला की ओर से दाखिल इस याचिका पर सुनवाई की है. याचिकाकर्ता महिला ने तलाक-ए-हसन के जरिए तलाक की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया.
यहां जानिए आखिर क्या है तलाक-ए-हसन ?
मुस्लिम लॉ बोर्ड में तलाक-ए-हसन को शादी तोड़ने का एक तरीका बताया गया है. तलाक-ए-हसन में कोई भी मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को तीन महीनों में तीन बार तलाक बोल के अपनी शादी के बंधन को तोड़ सकते हैं. उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कोई भी मुस्लिम मर्द अपनी पत्नी को मार्च में तलाक बोलता है तो तभी उनका तलाक नहीं माना जाएगा. फिर वो दूसरा तलाक अप्रैल में बोलता है जिसके बाद भी दोनों के साथ रहने की गुंजाइश बची रहेगी इस बीच भी अगर दोनों के बीच सब कुछ ठीक नहीं होता है तो तीसरे यानी मई महीने में एक बार फिर आखिरी बार तलाक देगा.
तलाक-ए-हसन के अनुसार, यह आखिरी तलाक होगा जिसके बाद दोनों के बीच शादी खत्म मानी जाएगी. हालांकि, इन तीन महीनों में अगर दोनों के बीच सब ठीक हो जाता है तो उन्हें फिर से निकाह की जरूरत नहीं होगी. लेकिन एक बार दोनों का तलाक हो गया तो फिर शादी टूटी हुई मानी जाएगी.
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महिलाओं के लिए तलाक का खुला विकल्प है
खुला तलाक पर औरत का पूरा हक है. खुला तलाक के जरिए महिलाएं पति से तलाक मांग सकती हैं. अगर किसी महिला को लग रहा है कि वह अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो वह पहले उससे बात कर सकती है. अगर पुरुष तलाक के लिए राजी नहीं है तो महिला दारूल कदा कमिटी के सामने जाकर अपनी परेशानी को रख सकती है. जिसके बाद पक्षों की सुनवाई की प्रक्रिया के बाद कोर्ट महिला को तलाक की इजाजत दे सकते हैं.
तलाक-ए-अहसन में तीन महीने के अंदर तलाक दिया जाता है. हालांकि, इसमें तीन बार तलाक बोलना जरूरी नहीं होता. एक बार ही तलाक कहने के बाद पति और पत्नी एक ही छत के नीचे तीन महीनों तक रह सकते हैं. अगर दोनों की इस दौरान सहमति बन जाती है तो तलाक नहीं होता है.