भारतीय सेना के लिए अब बर्फीले पहाड़ों में होने वाले हिमस्खलन में अब अपनी जान नहीं गवाने पड़ेगी। भारतीय सेना ने विदेश से 20 अत्याधुनिक एवलॉन्च रेस्क्यू सिस्टम खरीदे हैं, जो बर्फ के नीचे दबे सैनिकों का जल्दी से पता लगाने में सक्षम हैं.
ये पहली बार है जब देश को इस तरह के एडवांस सिस्टम मिले हैं.मीडिया रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्री ने बताया कि इन उपकरणों को सेना की उत्तरी कमान के अलग-अलग सेक्टर स्टोर में भेजा जाएगा. सेना ने ये हिमस्खलन बचाव प्रणालियां स्वीडन की कंपनी से खरीदी हैं. भारत ने इस तरह के उपकरणों को मगवाने का आर्डर दो साल पहले दिया था जो अब जाकर भारत के हाथ लगे हैं.
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भारतीय सेना के बचाव के लिए ये एक बहुत ही बेहतरीन कदम है. सूत्रों ने बताया कि सेना अभी तक हिमस्खलन में सैनिकों को ढूंढने के लिए बेसिक डिटेक्टर और जमीन के अंदर खोज करने वाले रडार से ही कम चला रही थी. पिछले कुछ वर्षों में सियाचिन ग्लेशियर, कश्मीर और पूर्वोत्तर के बेहद ऊंचाई वाले इलाकों में हुए हिमस्खलन में बड़ी संख्या में सैनिकों के शहीद होने के बाद अत्याधुनिक रेस्क्यू सिस्टम की जरूरत महसूस की थी.
बर्फ में दबे सैनिकों को ऐसे बचाएगा
स्वीडन से मंगवाए जाने वाले इन उपकरणों में 150 ट्रांसपोंडर लगे हैं कंपनी की बेवसाइट के मुताबिक, रेस्क्यू सिस्टम में लगे डिटेक्टर रडार सिग्नल छोड़ते हैं, जो रिफलेक्टर से टकराकर वापस संकेत देते हैं. हर सैनिक पर 3 रिफलेक्टर लगाने होते हैं. रेस्क्यू सिस्टम में लगे रडार इन्हीं रिफलेक्टरों से सैनिक का पता लगाते हैं.
इस तरह के हर एक सिस्टम से एक वक्त में 50 सैनिकों का पता लगाया जा सकता है. सूत्रों ने बताया कि जब कोई व्यक्ति बर्फ में दब जाता है, तो शुरुआती 25 मिनट जान बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. अक्सर बर्फ में पता नहीं चलता कि व्यक्ति किस जगह पर दबा है. ऐसे में ये नया सिस्टम काफी काम आएगा.
इसमें लगे रिफ्लेक्टर काफी हल्के होते हैं. इसमें डायोड और एंटीना के साथ-साथ 150 ट्रांसपोंडर लगे हुए हैं. इसे इस्तेमाल करने के लिए बिजली की भी आवश्यकता नहीं है. डिटेक्टर जैसे-जैसे रिफ्लेक्टर के पास पहुंचता है वैसे ही रडार सिस्टम मजबूत हो जाता है इस तरह इस उपकरण से बर्फ़ में दबे व्यक्ति की सही जानकारी मिल जाएगी।
भूस्खलन जैसी आपदाओं में भी है कामयाब
रक्षा सूत्रों के मुताबिक इन उपकरणों का उपयोग भूस्खलन जैसी आपदाओं में भी किया जा सकता है. ऐसे यदि कहीं इमारत ढह जाने पर मलबे में फंसे पीड़ितों की जान बचाने के लिए भी किया जा सकता है. इस तरह के कार्यों के लिए सेना अलग से और बचाव सिस्टम खरीद सकती है.