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पश्चिमी औद्योगिक देशों को जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व करना चाहिएः केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, संयुक्त राष्ट्र सहित 20 देशों के प्रतिनिधियों, राज्य उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों ने 4000 छात्रों की भागीदारी में चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में किया विचार-विमर्श

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घड़ूआं , 08 May 2022

'भारत जैसे विकासशील देश वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में कम से कम योगदान करते हैं और इसलिए जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए पश्चिमी औद्योगिक देशों को ज्यादा वित्तीय बोझ उठाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई का नेतृत्व करने में भारत की भूमिका को रेखांकित करते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि विकास और प्रदूषण मुक्त वातावरण के बीच संतुलन बनाना समय की मांग है।' इस समय वह चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं में 'पर्यावरण विविधीकरण और पर्यावरण न्यायशास्त्र' विषय पर आयोजित इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे थे। इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण से संबंधित महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर भारत द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक ठोस रोडमैप तैयार करना था। इस दौरान चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी द्वारा माननीय श्री भूपेंद्र यादव और न्यायाधीशों को मानद उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया गया।इस दौरान भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिस संजय किशन कौल, हवाई सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस माइकल विल्सन, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के न्यायाधीश, जस्टिन ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और एन.एस. जीटी के पूर्व अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार ने अपने विचार साझा किए। वहीं, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर स. सतनाम सिंह संधू और सीनियर वाइस प्रेसिडेंट प्रो. हिमानी सूद और यूनिवर्सिटी के प्रो.चांसलर डॉ. आरएस बावा विशेष तौर पर मौजूद रहे। 

इससे पहले, तकनीकी सत्रों के दौरान, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों द्वारा पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विभिन्न गंभीर मुद्दों पर चर्चा की गई, जिसमें श्रीलंका, नेपाल, ब्राजील और मलेशिया के वरिष्ठ न्यायाधीश, जैव विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र के विशेषज्ञ शामिल थे।इस अवसर पर बात करते हुए श्री भूपिंदर यादव ने कहा किॾन केवल आने वाली पीढ़ी के लिए, बल्कि वर्तमान पीढ़ी के लिए भी हमें पर्यावरण का ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि मानव अस्तित्व के लिए एक ही ग्रह है, हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि स्टॉकहोम में एक बार फिर हम पर्यावरणीय चिंतन के लिए एकसाथ आने वाले हैं और मुझे इस तथ्य को साझा करने में गर्व है कि भारत अपनी 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन में तय की गई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को लागू करने में सबसे आगे रहा है। उन्होंने कहा कि हम वर्तमान में 'रााष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना' (एनसीएपी) को लागू कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य स्थानीय से लेकर वैश्विक स्तर पर हस्तक्षेप के माध्यम से भारत की हवा को साफ करना है। उन्होंने कहा कि आज हम दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल हैं, जिन्होंने जैव विविधता पर कन्वेंशन को पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ लागू किया है।

स्थानीय समितियों की भूमिका को इंगित करते हुए श्री भूपिंदर यादव ने कहा कि हमने नागोया प्रोटोकॉल के तहत एक्सेस और बेनिफिट शेयरिंग का संचालन किया है और मेरा मानना है कि जैव विविधता के संबंध में प्रभावी निर्णय लेने की शक्ति स्थानीय समुदायों के पास होनी चाहिए। परिणामस्वरूप  275000 जैव विविधता प्रबंधन समितियां आज भारत में प्रत्येक गांव और स्थानीय निकाय में कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि ग्लासगो में सीओपी 26 में, भारत की पंचामृत की महत्वाकांक्षी घोषणाएं, विशेष रूप से 2030 तक इसकी गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक पहुंचाने की, पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हमारे महत्वपूर्ण योगदान का प्रमाण देती हैं।उन्होंने कहा कि पर्यावरण न्याय सुनिश्चित करना होगा, ताकि पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अधिक बोझ उन लोगों के कंधों पर नहीं आना चाहिए, जो समस्या के लिए जिम्मेदार ही नहीं हैं। 'औद्योगीकरण और पर्यावरण का संरक्षण दो परस्पर विरोधी हित हैं और उनका सामंजस्य देश की न्यायिक प्रणाली और शासन प्रणाली के सामने एक बड़ी चुनौती है। हमें इस तथ्य को हमेशा याद रखना चाहिए कि संसाधनों का हमारा उपयोग 'माइंडफुल एंड डेलिवरेट यूटिलाइजेशन' पर आधारित होना चाहिए न कि 'माइंडलेस एंड डिस्ट्रक्टिव कंजम्पशन' पर।

इस अवसर पर बात करते हुए जस्टिस संजय किशन कौलॾने कहा कि इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन पर्यावरण हृास का कारण बना है, क्योंकि हमनें पर्यावरणीय कानूनों की अवहेलना की है। हम में से प्रत्येक दूसरों पर बोझ डाल रहा है, हमें इस दिशा में कदम उठाने चाहिए, वरना हम खुद को नष्ट होने के लिए छोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को पर्यावरणीय कानूनों को समझने की जरूरत है, वहीं बेहतर और प्रभावी कानूनों का निर्माण समान रूप से महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि बेंच में तकनीकी पहलू की कमी एक अन्य समस्या है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि देश में जो युवा प्रतिभा है, उसे प्रयोग करने की आवश्यकता है। कानूनी प्रक्रिया में नवीनता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, इसके अलावा विशिष्ट और समर्पित लोग इस दिशा में अधिक गुंजाइश पैदा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि प्रगति के नाम पर प्रकृति को नष्ट करने का हमारा लंबा इतिहास रहा है। हम अतीत को नहीं बदल सकते, लेकिन हमारे वर्तमान प्रयास भविष्य सुनिश्चित करेंगे।

इस अवसर पर बात करते हुए जस्टिस माइकल विल्सन ने कहा कि एन्वायरनमेंट इमरजेंसी का सामना करने के लिए हमें एक साथ आना होगा और केवल हमारे सामूहिक प्रयास ही पर्यावरण संरक्षण सुनिश्चित कर सकते हैं। कॉन्फ्रेंस में उपस्थित युवाओं को 'युवा गांधी की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि एक आंदोलन बनो और प्रकृति संरक्षण के लिए एक बड़ा बदलाव करें। हमें एक रूपांतरकारी परिवर्तन के साथ व्यापक स्तर पर बदलाव लाने की आवश्यकता है। उन्होने कहा कि पर्यावरण के लिए हमें नए और श्रेष्ठ कानूनों के साथ आगे आने और उन्हें लागू करने की आवश्यकता है, वहीं वैश्विक स्तर पर गठबंधन इस दिशा में लाभकारी होंगे। उन्होंने गुणवत्तापूर्ण पर्यावरण के निर्माण के लिए प्राप्त सुझावों के साथ-साथ जमीनी स्तर पर पर्यावरण संरक्षण पर तैयार की गई नीतियों को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया।

इस अवसर पर जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह ने कहा कि ह्यूमन रेस को इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि हमने पर्यावरण को हमेशा नजरअंदाज किया है। उन्होंने कहा कि मनुष्य ने अपने लालच के लिए अन्य हर प्रजाति के असतित्व को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि हमारे लालच की वजह से यह मुश्किल है, लेकिन यह हमारी जिम्मेदारी है कि अपनी मानसिकता को बदलें और इस दिशा में बड़े कदम उठाएं। उन्होंने कहा कि जरूरत के अनुसार प्रकृति का उपभोग और संतोष पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार हो सकता है। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय विनाश के लिए केवल मनुष्य जिम्मेदार है, जिसमें सबसे बड़ी कमी कानूनों को सही तरीके से लागू करना है। उन्होंने कहा कि जब तक यह एक आंदोलन नहीं बन जाता, तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा।इस अवसर पर बोलते हुए चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी के चांसलर स. सतनाम सिंह संधू ने कहा कि जैव विविधता के क्षेत्र में विभिन्न खतरों, चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण करने और पर्यावरणीय न्याय प्राप्त करने पर जोर देने के अलावा, इस कॉन्फ्रेंस ने राष्ट्र के विकास में सहायता के लिए जैव विविधता के सतत उपयोग, इकोसिस्टम की समृद्धि और सतत उपयोग पर भी ध्यान केंद्रित किया।

उन्होंने कहा कि कॉन्फ्रेंस के दौरान दुनिया भर के न्यायाधीशों और विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के आधार पर यूनिवर्सिटी के कानूनी अध्ययन संस्थान द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाएगी और भारत सरकार को प्रस्तुत की जाएगी, जिसका पर्यावरण पर सकारात्मक और दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।गौरतलब है कि चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, घड़ूआं में आयोजित 2 दिवसीय इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश, राज्य उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश, सहित श्रीलंका, नेपाल, ब्राजील और मलेशिया सहित 20 देशों के न्यायाधीश, जैव विविधता और पर्यावरण न्यायशास्त्र के विशेषज्ञों और संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों ने पर्यावरण से जुड़े विषयों पर बातचीत कीए जिस दौरान 4000 छात्र उपस्थित रहे।

 

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