वर्ष 1953 की बात है जब काँगड़ा जिला के थुरल तहसील का गांव है गढ़- जमुला। इस गांव का एक नवयुवक 19 वर्ष की आयु में कांगड़ा स्थित अपने निवास स्थान से छोटी बहन के कहने पर टमाटर लाने बाजार के लिए निकलता है और पंहुच जाता है पठानकोट जहां जन-संघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आह्वान पर कश्मीर सत्याग्रह किया जा रहा था। वो नवयुवक अपने युवा साथियों के साथ सत्याग्रह में भाग लेता है और उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। पहले उसे गुरदासपुर और फिर हिसार जेल ले जाया जाता है और 9 महीने के कारावास के बाद जब इस राजनैतिक कैदी को जेल से रिहा किया जाता है तो वह घर पंहुचता है तो बहन पूछती है, टमाटर लाने में नौ महीने लगा दिए भईया ?यह उस नवयुवक शांता कुमार के राजनैतिक जीवन के संघर्ष की शुरुआत है जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं एवं संस्थापक सदस्यों में से एक है और उन्हें हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के पितामह के रूप में जाना जाता है। 12 सितंबर 1934 को गढ़- जमुला के पंडित जगन्नाथ शर्मा और कौशल्या देवी के घर एक बच्चा जन्म लेता है जिसका नाम शांता रखा जाता है तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह शख्स आगे चलकर हिमाचल का नेतृत्व करेगा और मुख्यमंत्री बनेगा। प्रांरभिक शिक्षा के बाद जेबीटी की पढ़ाई पूर्ण करने के पश्चात शांता कुमार ने एक स्कूल में अध्यापन का कार्य किया लेकिन स्वयंसेवक संघ में मन लगने की वजह से वे दिल्ली चले गए। वहां जाकर संघ का काम किया और ओपन यूनिवसर्सिटी से वकालत की डिग्री की।शांता कुमार ने 1963 में पहली बार गढ़जमूला पंचायत से पंच का चुनाव जीता। उसके बाद वह पंचायत समिति के भवारना से सदस्य नियुक्त किए गए। बाद में 1965 से 1970 तक कांगड़ा जिला परिषद के भी अध्यक्ष रहे। इस दौरान वे स्वतंत्रता काल के क्रन्तिकारी लेखक यशपाल को नादौन स्थित उनके पैतृक गांव लेकर आये थे।शांता कुमार ने 1971 में ने पालमपुर विधानसभा से पहला चुनाव लड़ा और कुंज बिहारी से बहुत कम अंतर से हार गए। एक साल बाद प्रदेश को पूर्णराज्य का दर्जा मिल गया और 1972 में फिर चुनाव हुए शांता कुमार खैरा से विधानसभा पहुंचे। देश पर जबरन थोपे गए आपातकाल में उन्हें 19 महीने तक जेल में दूसरी बार राजनैतिक कैदी बना कर रखा गया। इस दौरान लेखक शांता कुमार के रूप में उनका एक नया रूप सामने आया और उनकी एक के बाद एक तीन पुस्तकें प्रकाशित हुईं। अब तक वे अनेक विषयों पर करीब बीस पुस्तकें लिख चुके हैं और साहित्य जगत में अपना लोहा मनवा चुके हैं। उन्हें अन्य राजनीतिज्ञों से भिन्न इसलिए भी माना जाता है कि वे एक मात्र राजनेता हैं जिन के साहित्यिक व् राजनैतिक जीवन पर शोध हुआ है।
साल 1977 में आपातकाल के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो जनसंघ समर्थित जनता पार्टी को 68 में से 54 सीटें मिलीं, युवा शांता कुमार ने कांगडा के सुलह विधानसभा से चुनाव लड़ा और फिर प्रदेश के पहले गैर-कोंग्रेसी मुख्यमंत्री बने। उस समय हिमाचल के अनेक क्षेत्रों से पीने के पानी को प्राकृतिक स्त्रोतों से वर्तनों में लाया जाता था। गर्मियों में जब ये प्राकृतिक स्त्रोत सूख जाते थे तो पीने के पानी के लिए आपस में लोगों को लड़ते हुए भी देखा जा सकता था। मुख्यमंत्री बनते ही शांता कुमार ने रक्षा बंधन पर अपने रेडिओ संदेश में बहिनों को पानी नल के द्वारा पंहुचाने का संकल्प लिया। इसके लिए विशेष रूप से एक अलग सिंचाई और जन-स्वास्थ्य विभाग बनाया गया। हिमाचल के दुर्गम क्षेत्रों में घर-घर तक नल द्वारा जल पंहुचना शरु हुआ और उन्हें पानी वाले मुख्यमंत्री के रूप में पहचान मिली। 1978 में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, सैनिक स्कुल सुजानपुर और आयुर्वेदिक कॉलेज पपरोला सहित बरमाणा में सीमेंट उद्योग स्थापना को ह्री झंडी उनके मुख्यमंत्री रहते दी गयी।स्वामी विवेकानंद की 'दरिद्र नारायण'एवं महात्मा गाँधी की 'अंत्योदय' की भावना से प्रेरित होकर शांता कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में 2 अक्टूबर 1978 को प्रदेश के अति निर्धन परिवारों के लिए अंत्योदय योजना शुरू की जिसके तहत प्रत्येक पंचायत से पांच अति निर्धन परिवारों को आर्थिक मदद देने का प्रावधान किया गया था। बाद में जब 1999 में अटल विहारी वाजपेयी में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने तो उन्होंने इस योजना का देश भर में विस्तार किया और यह अंत्योदय अन्न योजना के नाम से जाने लगी। फरवरी 1980 में पूर्व मुख्यमंत्री और कोंग्रेसी नेता ठाकुर राम लाल के नेतृत्व में 22 विधायकों ने पाला बदल लिया। मुख्यमंत्री शांता कुमार ने सरकार को अल्पमत में देख कर कोई मोल- भाव किये अपने पद से त्यागपत्र दे दिया और अपनी पत्नी संग 'जुगनू' फिल्म देखने चले गए।1989 के लोकसभा चुनावों में शांता कुमार सासंद निर्वाचित हुए। फरवरी 1990 में हिमाचल में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए। भारतीय जनता पार्टी को 51 में से 44 और उनके राजनैतिक सहयोगी जनता पार्टी को 11 सीटें मिलीं थीं कांग्रेस मात्र 8 सीट तक सिमट गयी।
दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शांता कुमार ने संस्कृत में शपथ ली और शपथ ग्रहण समारोह व् विजय रैली के लिए चुना गया ऐतिहासिक रिज मैदान को। लेकिन कांग्रेस ने इस का बहिष्कार किया। दरअसल कांग्रेस का मत था कि अब तक रिज मैदान से देश का प्रधानमंत्री ही प्रदेशवासियों को सम्बोधित करता था और शांता कुमार ने जीत के उन्माद में इस परम्परा को तोड़ दिया।बतौर मुख्यमंत्री शांता कुमार के दूसरे कार्यकाल में अनेक योजनाओं की शुरुआत हुई, प्रदेश के पानी पर रॉयल्टी दिलाना, हिमाचल प्रदेश में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाए गए, नो वर्क-नो पे जैसे सख्त फैसले लिए गए। जन सहयोग से 'काम भी अपना व् गांव भी अपना' योजना शुरू की गयी जिसे बाद में कांग्रेस सरकार ने विकास में जन सहयोग नाम दियाऔर यह योजना आज भी प्रदेश में ग्रामीण विकास की रीढ़ सिद्ध हो रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए 'वन लगाओ रोजी कमाओ' योजना का शुभारम्भ तत्कालीन प्रधानमंत्री चंदरशेखर द्वारा करवाया गया। मुख्यमंत्री शांता कुमार विकास गति को तेज कर ही रहे थे कि 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद सरकार जबरन गिरा दी गयी और शांता कुमार एक बार फिर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।राजनैतिक संघर्ष जारी रहा। 1998 में पुनः एक बार लोकसभा सांसद बने और साल 1999 से 2002 तक वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रायल के मंत्री भी शांता कुमार को बनाया गया। पालमपुर में विवेकानद मेडिकल रिसर्च ट्रस्ट के माध्यम से योग और प्राकृतिक चिकित्सा का एक बड़ा संस्थान उनके मार्गदर्शन में बन पाया जहां आज देश और विदेश से सैंकड़ों मरीज आयुर्वेद की अनेक विधाओं के द्वारा स्वास्थ्य लाभ पा रहे हैं। यह उत्तर भारत का एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से शरीर को स्वस्थ रखने पर बल दिया जाता है।2008 में राज्य सभा में उन्हें राज्यसभा के लिए अनुमोदित किया गया। मई 2014 में काँगड़ा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा सासंद निर्वाचित हुए। अपने लम्बे राजनैतिक सफर को विराम लगाते हुए उन्होंने इस वर्ष उन्होंने सक्रिय राजनीती को अलविदा कह दिया। वे आज भी देश भर के उन गिने चुने नेताओं में से एक हैं जो सिद्धांतो के लिए जाने जाते हैं। लम्बी राजनैतिक पारी के बाद साफ छवि के संवेदनशील राजनेता शांता कुमार को 'अंत्योदय पुरुष' के रूप में पहचान मिली है। ईश्वर उन्हें स्वस्थ रखें और वे दीर्घायु हों।